छत्तीसगढ़ में अब तक कांग्रेस कहती रही कि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के बीच नूरा-कुश्ती का खेल चल रहा है, लेकिन अजीत जोगी को राज्य सरकार की हाईपावर कमेटी ने कंवर आदिवासी मानने से इनकार कर दिया तो एक बात साफ हो गई कि रमन सिंह ने जोगी को पटखनी दे दी है। हाईपावर कमेटी की रिपोर्ट से अजीत जोगी की उलझनें बढ़ने के साथ ही उनके विधायक बेटे अमित जोगी पर राजनैतिक संकट मंडराने लगा है। बाप-बेटे के जाति मामले में उलझने से राज्य में जोगी कांग्रेस (छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस-जे) को तीसरी शक्ति के रूप में स्थापित करने के प्रयास को भी झटका लगा है। जोगी भले तीन दशक से बतौर आदिवासी नेता राजनीति कर रहे हैं, लेकिन राज्य के मैदानी और सतनामी (अनुसूचित जाति) बहुल इलाकों में उनकी पकड़ ज्यादा दिखाई देती रही है। अभी आदिवासी सीटों पर कांग्रेस की बढ़त है और एससी सीटों पर भाजपा की। ऐसे में सतनामी बहुल इलाका जैजेपुर नगर पंचायत में जोगी कांग्रेस की जबर्दस्त जीत भाजपा के लिए खतरे की घंटी जैसी रही। वैसे जातिगत समीकरण में जोगी की पकड़ ढीली होने से फायदा भाजपा को मिल सकता है।
हाईपावर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में अजीत जोगी को आदिवासी समुदाय का कंवर नहीं माना है। लेकिन उनकी जाति क्या है, यह साफ नहीं किया है। जोगी भी सवाल कर रहे हैं कि वे आदिवासी नहीं हैं तो फिर क्या हैं, सरकार साफ करे। अजीत जोगी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित हाईपावर कमेटी के फैसले के खिलाफ कोर्ट जाने की बात कर रहे हैं। कोर्ट जोगी को हाईपावर कमेटी के फैसले के खिलाफ स्टे दे देता है तो वे आदिवासी नेता के रूप में राजनीति करेंगे, अगर ऐसा नहीं होता है और उन्हें पिता की जाति के आधार पर एससी माना जाता है तो राजनैतिक दृष्टि से उनके लिए फायदेमंद हो सकता है। असल में, आदिवासियों के मुकाबले एससी वर्ग पर उनकी पकड़ ज्यादा है। 2003 के विधानसभा चुनाव में जोगी के नेतृत्व में कांग्रेस मैदानी इलाकों में ही 37 सीटें जीती थी। बस्तर-सरगुजा जैसे आदिवासी इलाकों में तो वह साफ हो गई थी। 2008 और 2013 में जोगी से किनारा कर कांग्रेस चुनाव लड़ी तो उसे आदिवासी इलाकों में ज्यादा सीटें मिलीं। इन दोनों चुनावों में भाजपा को परोक्ष रूप से मदद करने के आरोप जोगी पर लगे थे। कहा तो यह जा रहा है कि सरकार जाति मुद्दे को खींचकर जोगी को उलझाए रखना चाहती थी, लेकिन 31 मई 2017 तक जोगी की जाति पर रिपोर्ट देने के हाईकोर्ट के अल्टीमेटम से कमेटी को फैसला करना पड़ा। लेकिन जोगी के अलग पार्टी बनाने से 2008 और 2013 जैसा फायदा भाजपा को मिलता नहीं दिखाई पड़ रहा है। जैजेपुर नगर पंचायत के नतीजे ने भाजपा के कान खड़े कर दिए। हालांकि भाजपा नेता नरेश गुप्ता कहते हैं, ''इस फैसले से कांग्रेस को नुकसान होगा क्योंकि कांग्रेस ही जोगी को अनुचित लाभ दिलाती रही है। भाजपा 2008 और 2013 में जोगी के कारण नहीं, बल्कि राज्य के लोगों में अपने आकर्षण से जीती।’’ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल का कहना है, ''मुख्यमंत्री हमेशा अजीत जोगी की मदद करते रहे हैं। कांग्रेस को तो जोगी के पार्टी छोड़कर जाने के बाद से ही लाभ होने लगा है।’’
छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस के अपने-अपने वोट बैंक हैं। 2013 के चुनाव में दोनों के बीच वोटों का अंतर मात्र 0.7 फीसदी था। अजीत जोगी तीसरी शक्ति बनने में लगे हैं। इसके अलावा यह भी संभावना व्यक्त की जा रही है कि टिकट न मिलने से असंतुष्ट भाजपा और कांग्रेस के नेता जोगी की शरण में जा सकते हैं। भाजपा के कई वर्तमान विधायकों का टिकट कटने की संभावना है। ऐसे में कांग्रेस के मुकाबले भाजपा में असंतुष्टों की संख्या ज्यादा हो सकती है। जोगी तीन-चार फीसदी वोट काट देते हैं तो भी राजनैतिक समीकरण बिगड़ जाएगा। जोगी वोट काटने या राजनीतिक समीकरण बिगाड़ने की ताकत आदिवासी इलाकों से ज्यादा मैदानी और एससी बहुल इलाकों में रखते है। इसलिए एक आकलन के मुताबिक, जोगी फैक्टर से कांग्रेस को कम और भाजपा को ज्यादा नुकसान हो सकता है।
छत्तीसगढ़ में फिलहाल कांग्रेस कमजोर दिखाई पड़ रही है जबकि भाजपा चौथी बार सरकार बनाने के लिए ताल ठोंक रही है। लगातार तीन बार सत्ता में रहते एंटी इंकंबेंसी फैक्टर से जूझ रही भाजपा मैदानी और एससी सीटों पर पकड़ बनाकर अपना लक्ष्य साधना चाहती है। अभी राज्य की दस एससी सीटों में से नौ भाजपा के पास है। इनके अलावा राज्य की 12-15 सीटें ऐसी हैं, जहां सतनामी वोट हार-जीत का कारण बनते हैं। 29 आदिवासी सीटों में से 16 कांग्रेस के कब्जे में हैं। मरवाही से कांग्रेस विधायक अमित जोगी अभी पार्टी से सस्पेंड हैं। मरवाही आदिवासी सीट है। जोगी को आदिवासी नहीं माना गया तो फिर अमित को आदिवासी सीट छोड़नी पड़ेगी। भाजपा-कांग्रेस दोनों अमित पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
अजीत जोगी भले आदिवासी सीट से लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ते रहे लेकिन आदिवासी नेताओं से उनका छत्तीस का आंकड़ा रहा है। उनकी बस्तर के आदिवासी नेता स्व. महेंद्र कर्मा से कभी पटरी नहीं बैठी। अरविंद नेताम और दूसरे नेताओं से भी उनकी दूरी रही। बस्तर में मनोज मंडावी और कवासी लकमा जैसे नेताओं को लेकर उन्होंने आदिवासियों की राजनीति की। सरगुजा में सिंहदेव परिवार से भी पटरी नहीं बैठी। डॉ. प्रेमसाय सिंह और दूसरे नेताओं के दम पर राजनीति की। इस कारण जोगी पर से आदिवासी का ठप्पा हट भी जाता है तो कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। अमित को आदिवासी सीट मरवाही छोड़नी पड़ेगी। उन्हें सामान्य सीट से चुनाव लड़कर राजनीति करनी होगी।
छत्तीसगढ़ के गठन के बाद कुछ आपत्तियों के बावजूद कांग्रेस आलाकमान ने अजीत जोगी को आदिवासी नेता के तौर पर प्रोजेक्ट कर मुख्यमंत्री बनाया। जोगी की जाति का मामला बड़ा पेचीदा है। 1987 से विवाद चल रहा है। हाईकोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट से होते हुए हाईपावर कमेटी तक आया। कोर्ट से जोगी को छह बार राहत मिल चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने 13 जनवरी 2011 को जोगी की जाति की जांच के लिए छत्तीसगढ़ सरकार को हाईपावर कमेटी बनाने का निर्देश दिया। शिकायतकर्ता संत कुमार नेताम का कहना है, ''सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद नियमानुसार जोगी की जाति का फैसला तीन महीने में हो जाना चाहिए था।’’ लेकिन रिपोर्ट छह साल में आई। इसी से रमन सरकार पर टालमटोल का आरोप लगता रहा है। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंदकुमार साय का कहना है, ''अजीत की जाति के मामले में हाईपावर कमेटी की रिपोर्ट प्रशंसनीय है। जोगी के खिलाफ एफआईआर दर्ज होनी चाहिए और अब तक विभिन्न पदों पर उन्होंने जो लाभ लिया है, उसकी रिकवरी होनी चाहिए।’’
उधर, जोगी हाईपावर कमेटी की 27 जून 2017 की रिपोर्ट पर कई सवाल खड़े कर रहे हैं। कमेटी के तीन पदों पर आदिवासी विभाग की विशेष सचिव रीना बाबा कंगाले ही प्रभारी हैं। रीना कंगाले कमेटी की अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, और सदस्य सचिव हैं। किसी कमेटी में एक ही व्यक्ति तीन पदों की जिम्मेदारी कैसे संभाल सकता है? सरकार ने काफी जूनियर अफसर को कमेटी का चेयरमैन बना कर रिपोर्ट तैयार करवाया। विजिलेंस कमेटी की रिपोर्ट नहीं मानी गई। जोगी कहते हैं, जाति मुद्दे पर भाजपा-कांग्रेस एक हो गए हैं, जबकि कांग्रेस मेरे खिलाफ डॉ रमन सिंह से दोस्ती का आरोप लगा रही थी। 1970 बैच के आईएएस रहे जोगी की जाति का फैसला 2003 बैच की आईएएस रीना कंगाले ने किया। हाईपावर कमेटी ने फैसले में जोगी के रिश्तेदारों को ईसाई होना वजह बताई है। छत्तीसगढ़ में जशपुर इलाके के कई आदिवासी समूह ऐसे हैं जो ईसाई धर्म स्वीकार करने के बाद भी अनुसूचित जनजाति को मिलने वाली सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं। पूर्व आईएएस अधिकारी डॉ. सुशील त्रिवेदी का कहना है, ''पुराने कानून के मुताबिक कोई व्यक्ति अपने पिता या मां की जाति को स्वीकार कर उसका लाभ ले सकता था। ऐसे में अब अजीत जोगी को कई बातें कोर्ट में साफ करनी होंगी।’’
अजीत जोगी ने राजनीति की सीढ़ी चढ़ने के लिए आदिवासी होने के प्रमाण-पत्र का सहारा लिया, लेकिन इंजीनियरिंग की पढ़ाई और आईपीएस-आईएएस बनने में उसका सहारा नहीं लिया। सामान्य कोटे से पढ़ाई करते मैकेनिकल इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडलिस्ट बने। 1970 बैच के आईएएस जोगी मध्यप्रदेश में इंदौर जैसे जिले के रेकॉर्ड समय तक कलेक्टर रहे। राजीव गांधी और अर्जुन सिंह से निकटता के कारण वे राज्यसभा में पहुंचे। फिर आदिवासी सीट रायगढ़ और शहडोल से चुनाव लड़े। वे छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बने। 2003 में विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप में कांग्रेस ने पार्टी से निलंबित कर दिया। करीब एक साल बाद महासमुंद से विद्याचरण शुक्ला के खिलाफ उम्मीदवार बनाकर बहाल कर दिया। अंतागढ़ टेप कांड में अमित के निष्कासन के बाद अजीत जोगी ने कांग्रेस छोड़कर छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस-जे का गठन किया।
अब जाति के मुद्दे पर जोगी भाजपा-कांग्रेस में से किसे नुकसान पहुंचाते हैं, यह समय बताएगा। लेकिन इससे 2018 के विधानसभा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला का साफ संकेत मिलने लगा है।