हिंदी फिल्मों में ’50-’60 के दशक में लता-आशा के वर्चस्व के बावजूद कुछ एक गायिकाएं कायम रहीं उनमें मुबारक बेगम भी थीं। सन 1965 में आई मगधी फिल्म, मोरे मन मितवा, दत्ताराम का संगीत और मुबारक बेगम के स्वर में अद्भुत कर्णप्रिय रचना थी, ‘मेरे आंसुओं पे न मुस्करा, मेरे ख्याब थे जो मचल गए’। मैं निस्संदेह इस गीत को उनका सर्वश्रेष्ठ गीत मानता हूं। मुंबई में कम उम्र में वह रेडियो के लिए गाने लगी थीं। सन 1949 में फिल्म आइए के लिए संगीतकार नौशाद के निर्देशन में उन्होंने अपना पहला फिल्मी गीत, ‘मोहे आने लगी अंगड़ाई’ गाया। इसी फिल्म में लता मंगेशकर के साथ उन्होंने ‘आइए आहाहा आओ चलें चलें वहां’ भी गाया। सन् ’50 के दशक में लता आगे बढ़ गईं पर मुबारक बेगम के हिस्से में अधिकांशत: बी और सी ग्रेड फिल्में आईं। बावजूद इसके उन फिल्मों के भी कुछ गीत मकबूल हुए। जैसे के. दत्ता के संगीत निर्देशन में हिस्सा (1954) का कर्णप्रिय गीत ‘क्या खबर थी यूं तमन्ना खाक में मिल जाएगी’, बेरहम डाकू (1959) का ‘तेरे सितम की दास्तां हम न जुबां पे लाएंगे’, जालिम जादूगर (1960) का ‘कैसे बीन बजाई तूने सांवरिया’, सर्कस क्वीन (1959) का क्लब सांग ‘ओ दिलवाले निगाहें मिला ले’ आदि। उन्हें बड़े बैनर की भी कुछ फिल्में मिलीं। कमाल अमरोही की दायरा, जिसमें रफी के साथ उनका गीत ‘देवता तुम हो मेरा सहारा’ आज भी अपनी गायकी से अभिभूत करता है। लेखराज भाखरी निर्देशित, धनीराम द्वारा संगीतबद्ध फिल्म डाक बाबू (1954) में भी तलत महमूद और मुबारक बेगम के स्वर में संभवत: राग केदार का पुट लिए तीन ताल सोलह मात्रा में ‘घिर घिर आए बदरवा कारे’ अविस्मरणीय रचना है। सलिल चौधरी ने मधुमती में ‘हम हाल-ए-दिल सुनाएंगे’ और सचिन देव बर्मन ने देवदास में ‘वो न आएंगे पलटकर उन्हें लाख हम बुलाएं’ जैसे लाजवाब मुजरानुमा गीतों के लिए मुबारक बेगम को चुना। इन गीतों के बाद उनकी मांग मुजरानुमा गीतों के लिए अधिक होने लगी। आगे के वर्षों में भी मुहब्बत इस को कहते हैं (1965) के ‘महफिल में आप आए जैसे कि चांद आया’ (सुमन कल्याणपुर के साथ), सरस्वतीचंद्र (1968) के ‘वादा हमसे किया, दिल किसी को दिया,’ सुनहरी नागिन के ‘मैं तो हो गई बदनाम’ (कमल बारोट के साथ), सी. अर्जुन के संगीत निर्देशन में मर्डर इन हाईवे (1970) के ‘वो जो आंखों से पिला दो तो मजा आ जाए’, कोबरा गर्ल (1963) के. एन. त्रिपाठी के द्वारा स्वरबद्ध ‘निगाहों से दिल का सलाम आ रहा है’ (सुमन के साथ) और इन सब से बेहतरीन मदन मोहन की गजलनुमा मुजरा शैली का नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे के ‘साकिया एक जाम वो भी तो दे’ (आशा के साथ) जैसे कई मुजरानुमा गीत मुबारक बेगम के हिस्से में आए। कव्वाली की रात (1964) के ‘ऐ जाने चमन चिलमन से अगर हल्का सा इशारा हो जाए’ (रफी के साथ) और ‘देख कर मेरी तरफ खामोश हो जाना’ (रफी के साथ) में जहां मुशायरा की शैली झलकती है, वहीं गोगोला (1966) के क्रमश: तलत और महेंद्र कपूर के साथ गाए युगल गीत में ‘जरा कह दो फिजाओं से’ और ‘आज आजा प्यार करें’ के उस जमाने के लोकप्रिय गीतों में मुबारक के स्वर में सुंदर शोखी उभरती है। शगुन (1964) में खय्याम द्वारा संगीतबद्ध और साहिर द्वारा लिखे ‘इतने करीब आ के भी क्या जाने किसलिए’ में मुबारक बेगम के स्वर में एक शालीन रूमानियत प्रकट होती है। कल्याणजी आनंदजी के संगीत निर्देशन में जुआरी (1968) के ‘नींद उड़ जाए तेरी चैन से सोने वाले’ (सुमन और कृष्णा बोस के साथ) में आवाज की मोहक कशिश झलकती है। आरजू (1965) के राग अडाना पर कंपोज किए गए कव्वालीनुमा ‘जब इश्क कहीं हो जाता है’ (आशा के साथ) और ये दिल किसको दूं (1963) के ‘हमें दम दई के सौतन घर’ (आशा के ही साथ) में मुबारक बेगम का स्वर नवयुवतियों की अल्हड़ता के साथ खुलता है।
60 के दशक में मुबारक बेगम के कई खूबसूरत गीत सी ग्रेड स्टंट और फैंटेसी फिल्मों से हैं। अरब का सितारा (1961) में सादत के संगीत निर्देशन में ‘शमां गुल करके न जा यूं कि जला भी न सकूं’ अपनी कर्णप्रिय धुन और कशिश भरी गजलनुमा गायकी के कारण मुबारक बेगम के यादगार गीतों में गिना जाएगा। इसी वर्ष की फिल्म डाकू मंसूर में कृष्ण कमल के संगीत निर्देशन में ‘ए जी ए जी याद रखना सनम प्यार की दास्तां’ में मुबारक की आवाज में एक आकर्षक मासूम सी शोखी है तो खूनी खजाना (1965) के एस. किशन द्वारा संगीतबद्ध ‘ऐ दिल बता हम कहां आ गए’ और हमीर हठ (1964) के ‘निगाहों से दिल में चले आइएगा’ में गजब की अभिव्यक्ति है। सी. अर्जुन ने मुबारक बेगम से ‘दिन सरापा आरजू है इन दिनों’ जैसी कुछ गैर फिल्मी कर्णप्रिय गजलें भी रिकॉर्ड करवाईं। कम लोगों को पता है, तीसरी कसम (1966) के साउंडट्रैक पर ग्रामीण नौटंकी शैली के फिल्माए कई टुकड़ों में ‘मैं सुनाती हूं एक माजरा-ए-अजब’ में शंकर शंभु के साथ मुबारक बेगम की पुरजोर आवाज है। शंकर जयकिशन के साथ मुबारक बेगम का सबसे मशहूर गीत है, मिश्र खमाज आधारित हमराही (1963) का ‘मुझको अपने गले लगा लो ऐ मेरे हमराही’ (रफी के साथ) है। इस गीत को लता गाने वाली थीं किसी कारण वह नहीं आ पाईं केदार शर्मा ने कुछ फिल्मों में मुबारक बेगम को मौका दिया। स्नेहल भाटकर के संगीत निर्देशन में ‘फरिश्तों की नगरी में मैं आ गया हूं’ (मुकेश के साथ) और इससे बढ़कर राग भीमपलासी की छाप लिए स्वरों के उतार-चढ़ाव के साथ ‘कभी तनहाइयों में यूं हमारी याद आएगी’ मुबारक बेगम के सदाबहार गीत हैं।
(लेखक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एवं संगीत विशेषज्ञ हैं)