महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को सरकारी विमान इस्तेमाल न करने देने का मामला तूल पकड़ता दिख रहा है। वैसे भी कोश्यारी और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बीच सियासी मतभेद पहले से हैं। अब भाजपा विमान न देने के इस मुद्दे पर जिस अंदाज में मुखर हो रही है, उससे सियासी गलियारों में चर्चा है कि कोश्यारी और ठाकरे के बीच तल्खी आगे और बढ़ने वाली है। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री कोश्यारी को पिछले दिनों मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री प्रशासनिक अकादमी के एक कार्यक्रम में आना था। वहां उन्हें प्रशिक्षु आइएएस अफसरों को संबोधित करना था। कोश्यारी ने महाराष्ट्र सरकार के राजकीय विमान से मुंबई से देहरादून आना तय किया। इस बारे में राजभवन की ओर से महाराष्ट्र सरकार को सूचित भी कर दिया गया था।
तय समय पर कोश्यारी मुंबई एयरपोर्ट पहुंचे और राजकीय विमान में बैठ गए। 10 मिनट तक इंतजार के बाद उन्हें बताया गया कि सरकार ने विमान से यात्रा करने की अनुमति नहीं दी है। महाराष्ट्र सरकार की ओर से कहा गया कि विमान न दे पाने के बारे में राजभवन को यात्रा तिथि से एक रोज पहले ही अवगत करा दिया गया था। अब अगर राजभवन के अफसरों ने उन्हें इस बारे में कोई सूचना नहीं दी तो इसमें सरकार की क्या गलती।
इसके बाद कोश्यारी को मजबूरन सामान्य उड़ान से देहरादून आना पड़ा। इस मामले में राज्यपाल ने सिर्फ इतना ही कहा कि यह उनका निजी दौरा नहीं था। चर्चा है कि बाद में कोश्यारी दिल्ली गए और गृह मंत्री अमित शाह से मिले। इस घटना के बाद से उत्तराखंड भाजपा ने उद्धव ठाकरे को निशाने पर ले लिया है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बंशीधर भगत ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने अपनी तानाशाही के चलते राज्यपाल का अपमान किया है। राज्यपाल किसी भी राज्य में राष्ट्रपति का प्रतिनिधि होता है। इसके बाद भी सरकार ने अपमान किया है। भाजपा इसे सहन नहीं करेगी। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी इस घटना पर आक्रोश व्यक्त किया। उन्होंने तो यहां तक कहा कि अगर कोश्यारी जी कहेंगे तो उत्तराखंड सरकार उन्हें अपना राजकीय विमान उपलब्ध कराएगी।
इस प्रकरण के बाद माना जा रहा है कि आने वाले समय में महाराष्ट्र में राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच तल्खी और बढ़ेगी। दरअसल, दोनों के बीच खींचतान लंबे समय से चल रही है। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के बाद जब शिवसेना और महाअघाड़ी के बीच सरकार बनाने को लेकर बातचीत चल रही थी, तो उस समय राज्यपाल ने भाजपा नेता देवेंद्र फणनवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। वहीं से विवाद की शुरुआत हुई। बाद में उद्धव मुख्यमंत्री बने तो विधान परिषद में सदस्य नामित करने को लेकर राजभवन और सरकार के बीच लंबे समय तक तनातनी रही।
लॉकडाउन के दौरान महाराष्ट्र में मंदिर खोलने को लेकर भी विवाद हुआ। भाजपा ने मंदिरों को खोलने की मांग की तो सरकार ने कोरोनावायरस के फैलने का हवाला देते हुए ऐसा करने से इनकार कर दिया। इसके बाद राज्यपाल कोश्यारी ने एक खत लिखा। इस खत की भाषा को लेकर भी दोनों नेताओं की तल्खी सामने आई। कोश्यारी ने मुख्यमंत्री को लिखे इस खत में उन पर सवाल दागा था कि क्या अब आप सेक्युलर हो गए हैं। इस पर उद्धव ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया कि मुझे किसी से हिंदुत्व के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है।
इस समय भी सरकार ने विधान परिषद में 12 सदस्यों को नामित करने का प्रस्ताव राजभवन को भेज रखा है। इसमें कांग्रेस, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के चार-चार नेताओं को सदस्य मनोनीत करने का आग्रह राज्यपाल से किया गया है। राजभवन के स्तर से इस खत पर पर भी लंबे समय से कोई फैसला नहीं हुआ है। इससे विधान परिषद में सदस्यों का मनोनयन नहीं हो पा रहा है।
माना जा रहा है कि शायद इन्हीं तल्खियों की वजह से उद्धव ठाकरे ने सरकारी विमान के इस्तेमाल की मंजूरी कोश्यारी को नहीं दी। जहां तक सदस्यों के मनोनयन की बात है, तो महाराष्ट्र कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष नाना पटोले ने कहा है कि पार्टी राज्यपाल के रवैये के खिलाफ हाइकोर्ट में याचिका दायर करेगी। इस बीच, शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में लिखा है कि सरकारी विमान निजी यात्रा के लिए नहीं होता है। राज्यपाल विमान उड़ने की अनुमति न होने के बाद भी सरकारी विमान में बैठ गए। केंद्र सरकार को ऐसे राज्यपाल को तत्काल वापस बुला लेना चाहिए। जाहिर है, तल्खी बढ़ रही है।