बढ़ रही ठंड भले ही लोगों को आग तापने पर मजबूर कर रही हो, लेकिन भाजपा के कई दिग्गजों के परिजनों ने अपनी पारिवारिक विरासत पर हक जता कर मध्य प्रदेश के सियासी गलियारों में एक अलग ही गरमाहट पैदा कर दी है। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और भाजपा के कई दिग्गज नेता अपने परिजनों को टिकट दिलवाने के लिए एड़ी-चोटी का पसीना एक कर रहे हैं। अपने परिजनों को राजनीति में एंट्री दिलवाने के लिए कुछ कद्दावर नेताओं ने खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी के 12 ऐसे नेता हैं, जिनके अपने अब टिकट की दावेदारी में हैं। प्रदेश में विधानसभा चुनाव में 11 महीने से कम समय बचा है। प्रदेश में सत्ताधारी भाजपा के कुछ नेता इस बार खुले तौर पर अपनी विरासत अगली पीढ़ी को सौंपने के लिए जोर लगा रहे हैं। बालाघाट से सात बार के विधायक और पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने चुनाव लड़ने से इनकार किया है। बिसेन 70 बसंत देख चुके हैं और अपनी बेटी मौसम बिसेन को भावी विधायक कहकर चुनाव के लिए तैयार कर रहे हैं। हाल ही में वे भोपाल में एक बड़ा डिनर भी दे चुके हैं। ठीक ऐसी ही कहानी नागौद विधानसभा क्षेत्र के विधायक नागेंद्र सिंह की है। उन्होंने बयान दिया है कि वे अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे। उनकी उम्र 80 साल है। पार्टी के गलियारों में सुना जा रहा है कि नागेंद्र सिंह अपने दोनों बेटों या फिर भतीजे में से किसी एक के लिए आगामी चुनाव में दावेदारी करेंगे।
प्रदेश की भाजपा के लिए यह पहला मौका नहीं है जब चुनाव पूर्व उम्रदराज कद्दावर नेता स्वेच्छा से रिटायरमेंट की घोषणा कर अपने परिजनों को राजनीति में सक्रिय करने जा रहे हैं। 2018 में चुनाव के ठीक पहले भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने अपने बेटे आकाश को आगे कर के विधायक का साफा पहनाने का काम किया था। ठीक ऐसा ही पूर्व मंत्री गौरीशंकर शेजवार ने बेटे को आगे बढ़ाने का काम किया पर उन्हें कामयाबी हाथ नहीं लगी। पूर्व मंत्री शेजवार एक बार फिर सक्रिय हो चुके हैं और 2023 के चुनाव में अपने बेटे को टिकट दिलवाने की पैरवी जम के कर रहे हैं।
वैसे, प्रदेश की भाजपा में पारिवारिक कोटे का चलन नहीं है पर इस बार भी कुछ नेता खामोशी से अपने परिजनों के लिए सियासी जमीन तैयार कर रहे हैं। ग्वालियर, चंबल और मालवा अंचल के कुछ हिस्सों में प्रभाव रखने वाले सिंधिया परिवार और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेटे महाआर्यमन भी राजनीति में उतरने के संकेत दे रहे हैं। उनके पिता के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने के फैसले के दौरान महाआर्यमन के ट्वीट ने खासी सुर्खियां बंटोरी थीं। उन्होंने अपने पिता के फैसले पर गर्व करते हुए ट्वीट किया था। फिलहाल ट्विटर एकाउंट प्रोफाइल में लगी महाआर्यमन की फोटो राजनीति में उनकी सक्रियता को बल देने के लिए काफी है। फोटो में महाआर्यमन हाथ जोड़ कर शुभचिंतकों के बीच तेजी से आगे बढ़ते हुए नजर आ रहे हैं। भाजपा कार्यकर्ताओं का कहना है कि पिछले कुछ वक्त से वे कई सार्वजनिक कार्यक्रमों में नजर आ रहे हैं। जाहिर है, सिंधिया घराने की चौथी पीढ़ी सियासत में पांव जमाती नजर आ रही है।
ग्वालियर संसदीय सीट से निर्वाचित मोदी सरकार के केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेंद्र प्रताप सिंह भी राजनीति में सक्रिय हो चुके हैं। देवेंद्र को अपने पिता के उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जा रहा है और भविष्य में वे टिकट के लिए दावेदारी कर सकते हैं। ग्वालियर से ही राज्य भाजपा के पूर्व अध्यक्ष तथा पूर्व सांसद प्रभात झा के बेटे तुष्मुल झा भी अपना पैर राजनीति के अखाड़े में जमाने में लगे हैं और ग्वालियर क्षेत्र में सक्रिय हो चुके हैं।
इस बीच गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के बेटे सुकर्ण मिश्रा ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में सक्रिय हो चुके हैं। प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य सुकर्ण अपने पिता की तरह लोगों के बीच जगह बना रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय सिंह चौहान अपने पिता के विधानसभा क्षेत्र बुदनी में सक्रिय हैं। पिछले दो विधानसभा चुनाव में अपने पिता के प्रचार की जिम्मेदारी संभाल चुके कार्तिकेय ने पिछले विधानसभा चुनाव में बयान दिया था, “अगर परिवारवाद की बात करें, तो दो प्रकार के लोग होते हैं। एक वे, जो बचपन से चांदी का चम्मच मुंह में लेकर आते हैं। तुरंत कोई पद लेकर कुछ न कुछ बन जाते हैं। दूसरे मेरी तरह होते हैं। मैं न कोई पद की उम्मीद कर रहा हूं और न मुझे पार्टी से टिकट चाहिए।”
कांग्रेस से भाजपा में आए सिंधिया समर्थक दो मंत्रियों के पुत्रों को भी उनके उत्तराधिकारी के रूप में देखा जा रहा है। राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के छोटे बेटे आकाश ने राजपूत सुरखी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में प्रचार का जिम्मा संभाला। मंत्री तुलसीराम सिलावट के बेटे नीतीश कोविड काल के दौरान क्षेत्र में काफी सक्रिय रहे।
जानकारों का कहना है कि प्रदेश की भाजपा में ऐसे नेताओं की लंबी लिस्ट है जिनके परिजन राजनीति में सक्रिय होने जा रहे हैं- इनमें पूर्व लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन के बेटे मंदार, उम्रदराज मंत्रियों में गोपाल भार्गव अपने बेटे अभिषेक, दिवंगत भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन सिंह, मंत्री विजय शाह के बेटे दिव्यादित्य शाह, विधायक सुलोचना रावत के बेटे विशाल रावत, पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह के बेटे राकेश सिंह शामिल हैं। सभी ने अपने पुत्र-पुत्रियों के लिए दावेदारी तेज कर दी है।
भाजपा भले ही अपने आप को परिवारवादी पार्टी कहने से बचती है पर मध्य प्रदेश में इसके विपरीत ही नजर आता रहा है। प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, सांसद और विधायक के परिजन राजनीति में सक्रिय हैं। जैसे पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के भतीजे सुरेंद्र पटवा (पूर्व मंत्री), पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सखलेचा के पुत्र ओमप्रकाश सखलेचा (मंत्री), पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर की बहू कृष्णा गौर (विधायक), पूर्व मुख्य मंत्री कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी (पूर्व मंत्री), पूर्व केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत के पुत्र जितेंद्र गहलोत (पूर्व विधायक), पूर्व मंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय (विधायक), पूर्व विधानसभा अध्यक्ष बृजमोहन मिश्रा की पुत्री अर्चना चिटणीस (पूर्व मंत्री), पूर्व सांसद कैलाश सारंग के पुत्र विश्वास सारंग (मंत्री) और पूर्व विधायक सत्येंद्र पाठक के पुत्र संजय पाठक के नाम प्रमुखता से उभर कर सामने आते हैं।
कतार में : पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन बेटे मंदार के लिए चाहती हैं टिकट
इस बीच केंद्रीय संसदीय बोर्ड के सदस्य सत्यनारायण जटिया ने नेताओं के बेटे-बेटियों को टिकट देने का बचाव करके सभी को चौंका दिया। बीते महीने मध्य प्रदेश भाजपा कोर ग्रुप की बैठक में भाग लेने आए जटिया ने कहा कि नेता का पुत्र होने में उनका दोष नहीं है। योग्य नेताओं को टिकट मिलना चाहिए। पार्टी में ऐसी कोई अवधारणा नहीं है। जो योग्य है उसे टिकट मिलना चाहिए, चाहे वह नेता पुत्र या पुत्री क्यों न हो। भाजपा में पिछड़े वर्ग की कद्दावर नेता, पूर्व मंत्री कुसुम मेहदेले ने जटिया के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। पिछले चुनाव में उम्र के चलते अपना टिकट गंवा चुकी मेहदेले का आरोप है कि किसी नेता पुत्र को टिकट देना होगा इसलिए नियम में बदलाव किए जा रहे होंगे। वे कहती हैं, “मैं बिल्कुल फिट हूं, पार्टी अगर टिकट देगी तो चुनाव लड़ूंगी, टिकट के लिए आग्रह करूंगी। अगर मुझे टिकट नहीं दिया जाता तो मेरे भाई आशुतोष मेहदेले को टिकट दिया जाए।” उन्होंने कहा कि बार-बार नियम बदलने से पार्टी की विश्वसनीयता खत्म होती है।
जानकारों के मुताबिक, एक ही परिवार से दो टिकट न देने की बात पर अगर भाजपा कायम रहती है तो मध्य प्रदेश में कुछ दिग्गज नेताओं की उम्मीदों को झटका लगा सकता है। दरअसल, भाजपा संसदीय दल की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने सांसदों से जो कहा और गुजरात विधानसभा चुनावों को लेकर भाजपा ने जो फॉर्मूला लागू किया है, उससे मध्य प्रदेश के भाजपा नेताओं में अजीब-सी मायूसी छा गई है। खासकर ऐसे नेताओं के बीच, जो अपने बेटे या बेटी को आगे बढ़ाना चाहते हैं। वैसे भी भाजपा संसदीय दल की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी सांसदों से कह चुके हैं कि “अगर विधानसभा चुनाव में आपके बच्चों के टिकट कटे हैं, तो उसकी वजह मैं हूं। मेरा मानना है कि वंशवाद लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है। उन्होंने आगे कहा कि परिवारवाद से जातिवाद को बढ़ावा मिलता है।”
भाजपा भले ही कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगाती हो, पर प्रदेश में पार्टी इसमें पीछे नहीं है। नेता पुत्रों को टिकट देना है या नहीं देना है, यह हमेशा से बड़ा मुद्दा रहा है और 2023 के महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव में भाजपा के भीतर यह जबरदस्त चर्चा का विषय बनता दिख रहा है।