वाकया 1981-82 का है। ज्यॉफ बॉयकॉट भारत आए थे। उन्हें टेस्ट क्रिकेट में गैरी सोबर्स के सर्वोच्च कुल स्कोर के रिकॉर्ड की बराबरी के लिए 230 रन की जरूरत थी। उस आंकड़े को पार करने के एक पखवाड़े बाद वे एक टेस्ट से गायब हो गए। उनके बजाय उन्होंने गोल्फ खेलना बेहतर समझा और उन्हें वापस भेज दिया गया। शायद उन्हें राहत मिली होगी। तब मैंने बतौर रिपोर्टर शुरुआत ही की थी। बॉयकॉट के रवैये से प्रेस बॉक्स में कोई भी हैरान नहीं था। कतारबद्ध लकड़ी की बेंचों पर टाइपराइटरों की खटर-पटर के बीच लगातार सिगरेट का धुंआ उड़ाते रिपोर्टरों में कोई उत्सुकता नहीं थी (धुएं से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था क्योंकि वह जगह तीन तरफ से खुली हुई थी।)
तब आम राय यह थी कि भारत क्रिकेट दौरे के लिए डरावनी जगह है। गर्मी, धूल-धक्कड़, फिरकी गेंदबाजी वाली पिचें, ठहरने की खराब जगहें, बुरा खानपान, खराब अंपायरिंग जैसी फेहरिस्त कोई भी विदेशी खिलाड़ी बता सकता था। सिर्फ छह देश टेस्ट क्रिकेट खेलते थे, और जबसे मैंने ककहरा सीखा, तबसे भारत ने पाकिस्तान के साथ नहीं खेला था।
‘‘हाथी चले गए, गरीबी चली गई”: जब भारत दौरे के लिए सबसे खराब जगह थी
भारत की बदनामी दशकों से बनी हुई थी। इंग्लैंड के फिल टफनेल ने एक बार कहा था कि “हाथी देखी, गरीबी देखी,” और बस लौटने को लिए तैयार। ऑस्ट्रेलियाई सलामी बल्लेबाज गेविन स्टीवंस हेपेटाइटिस के संक्रमण से चेन्नै में लगभग मरणासन्न ही हो गए थे। उनकी जीवनी का शीर्षक ही है, नियर डेथ ऑन द सब-कॉन्टिनेंट।
मेहमान टीमों के लिए भारत का दौरा 1990 के दशक से पहले किसी खेल आयोजन में हिस्सेदारी से ज्यादा भावनात्मक परीक्षा जैसा था। हर ड्रेसिंग रूम में फ्लश टॉयलेट और होटलों की शृंखला के सुकून से पहले क्रिकेटर दस्त रोकने की गोलियां, मच्छरदानी और भरपूर बीयर की खेप साथ लेकर आते थे। कानपुर में पांच ओवरों के भीतर ऑफ-स्टंप और सारा सामान खो बैठने का डर सताता रहता था।
आरसीबी का जश्न
पिचों पर गेंद घूमती थी और लोग खिलखिला उठते थे, लेकिन ज्यादातर मेहमान खिलाडि़यों के चेहरे खाली होते थे, आखिर उन्हें अपने कमरों में कॉकरोचों से ज्यादा जूझना पड़ता था।
कहने का मतलब यह कि क्रिकेट के प्रति हल्की दिलचस्पी से भारत के क्रिकेट महाशक्ति में बदल जाना अचानक नहीं हुआ। इसके लिए बड़ी जीत (1983 विश्व कप), आर्थिक उदारीकरण (जिससे नाक चढ़ाने वाली सुविधाएं मौजूदा स्थिति में पहुंचीं), विश्व स्तरीय टीम (सचिन तेंडुलकर के साथ) और प्रशासकों की जानकार टोली की दरकार थी, जिसने क्रिकेट को सिर्फ औपनिवेशिक विरासत की तरह नहीं, बल्कि सांस्कृतिक अनिवार्यता की तरह देखा।
विराट कोहली
आइपीएल 2008 में शुरू हुआ और अचानक भारतीय क्रिकेट के पास इतना पैसा आ गया कि वह सब कुछ शानदार और मनचाहा कर सके। आइपीएल ने बॉलीवुड के ग्लैमर को क्रिकेट के ड्रामा से जोड़ दिया, जिससे लड़के करोड़पति बन गए और नाक-भौं सिकोड़ने वाले फैन बन गए (पर पुराने खेल-प्रेमी बिदक उठे।) लेकिन इस तमाशे के नीचे कुछ स्थायी आकार ले रहा था। इन्फ्रास्ट्रक्चर, स्काउटिंग, फिटनेस और रणनीति हर पहलू को पेशेवर बनाया गया।
कभी अनाड़ी नौकरशाही का डेरा रहा भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) भारी मालदार दिग्गज बन गया। पूंजीवाद के मनपसंद साथी टेलीविजन ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई। सैटेलाइट डिश बरसात में मशरूम की तरह छतों पर उग आए और उनके साथ एक मध्यम वर्ग का उदय हुआ, जिसने अपने मिथकीय नायक खोजे और ये नायक उसे क्रिकेटरों में मिले।
कभी भारत आने से नखरे दिखाने और खूंटा तुड़ाने को बेताब बॉयकॉट जैसे कई खिलाडि़यों को कमेंटेटर, कोच और विशेषज्ञ के नाते लुभावना मालदार रोजगार मिला। भारत दूसरे नंबर के सबसे बुरे क्रिकेट ठिकाने से सबसे लाजवाब ठौर बन गया (पाकिस्तान हमेशा सबसे बुरा माना जाता रहा है, बकौल इयान बॉथम, वहां तो अपनी सास को ही भेजिए!) लेकिन अब हर कहीं रसूखदार और ताकतवर लोग भारत की वाहवाही करते हैं, इसे सम्मान से देखा जाता है। अब 180 डिग्री का यह बदलाव पूरा हो चुका है। अब सबसे बुरा विकेट या बेशऊर भीड़ की बदतमीजियां, खाने-पीने या गर्मी-उमस को भी नई दलीलों से बेहतर बताया जाता है।
रोहित शर्मा
भारतीय टीम के साथ पहुंचे पत्रकारों के साथ भी अब सम्मानजनक व्यवहार किया जाने लगा है। 1960 और 70 के दशक में दौरे पर गए कुछ पत्रकारों से हमने कई कहानियां सुनी थीं। हल्के-फुल्के लहजे में कहें तो कई विदेशी ठिकानों पर ‘सहयोग न मिलने’ की कहानियां। इस सदी में, इंग्लैंड दौरे पर जब मैंने अपना मीडिया पास लेने के लिए लॉर्ड्स में फोन किया, तो उधर से इतने दोस्ताना और नरमी से बात की गई। एकबार को मुझे लगा कि कहीं गलत नंबर तो नहीं लग गया है। उस महिला ने मुझे लॉर्ड्स में दर्शनीय स्थलों की सैर कराने की पेशकश भी की। मैं चौंक गया, मेरे दिमाग में कई बातें टकराने लगीं।
बदलाव सिर्फ यही नहीं है कि दुनिया का रवैया भारत के प्रति कैसे बदला; इसका देश के भीतर काफी असर पड़ा है। तेंडुलकर हमारे क्रिकेट के पहले सुपरस्टार नहीं थे, लेकिन वे मीडिया के विस्फोट का फायदा उठाने वाले पहले खिलाड़ी थे, जिसमें टेलीविजन चैनलों से लेकर इंटरनेट की दुनिया भी थी। टेलीविजन कवरेज पेशेवर बन गया और खेल में भारी मात्रा में पैसा लगाया गया। जब उन्होंने शुरुआत की, तब बीसीसीआइ टेलीविजन कवरेज के लिए भुगतान करता था। आज यह विश्वास करना मुश्किल है, अब बीसीसीआइ को टेलीविजन से अरबों डॉलर मिलते हैं।
इसका एक खास नतीजा प्रतिभा का लोकतंत्रीकरण था। अब भारत के क्रिकेट के शीर्ष खिलाड़ी सिर्फ महानगरों या एलिट स्कूलों से नहीं उभरे रहे हैं। क्रांति छोटे शहरों से आई। रांची से महेंद्र सिंह धोनी आए। वे ऐसे कप्तान थे, जो जीत-हार में शांत रहते थे और धमाकेदार फिनिशिंग उनकी सबसे बड़ी ताकत थी। वडोदरा से इफान पठान, मेरठ से प्रवीण कुमार, पलारीवत्तम से एस. श्रीसंत, जालंधर से हरभजन सिंह आए। अब क्रिकेट सपना नहीं; सुलभ है। पिछले दशक में पहली बार खेलने वाले चार खिलाड़ियों ने रणजी ट्रॉफी जीती है।
भारत प्रतिभा, सही वक्त, टाइमिंग, तेवर और हां, टेलीविजन की वजह से टॉप पर पहुंचा। भारत बदल गया और उसके साथ क्रिकेट बदल गया। तेंडुलकर से बुमराह तक भारत का क्रिकेट डीएनए बदला।
भारत ने 2011 का विश्व कप घरेलू पिच पर जीता और धोनी की शांतचित्त कप्तानी में खुदमुख्तार बन गया था। विराट कोहली के दौर में फिटनेस, आक्रामकता के नए मानक आए। पहले भारत की कमजोरी तेज गेंदबाजी हुआ करती थी, लेकिन अब यह इसमें अगुआ बन गया है। घरेलू पिचों पर कभी दूसरे दिन लंच तक धूल उड़ने लगती थी, लेकिन अब ये पिचें उछाल और घुमाव वाली हैं। नंबर 1 रैंक वाले टेस्ट गेंदबाज जसप्रीत बुमराह हैं, जिन्हें अधिकांश लोग आज के महानतम गेंदबाज मानते हैं।
टीम इंडिया विश्व टी20 चैंपियन है, विश्व कप (50 ओवर) की उपविजेता है और पहले दो विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल तक पहुंचे वाली है। वे इस साल चूक गए; अब इंग्लैंड में पांच टेस्ट मैचों की शृंखला 20 जून को शुरू हो रही है, जिसमें आगे जाने का मौका है। पीढ़ीगत बदलाव से शुभमन गिल को ऐसी टीम का मुखिया बना दिया गया है, जिसमें तीन दिग्गज खिलाड़ी कोहली, रोहित शर्मा और रविचंद्रन अश्विन नहीं होंगे।
इंग्लैंड दौरे में 1950 और 60 के दशक में भारतीय कप्तान को यह कहा जाता था कि टीम का जोर अनुभव हासिल करने और मास्टर खिलाडि़यों से सीखने पर होना चाहिए। अब भारतीय टीम जीत के लिए जा रही है; सीरीज जीत से कम कुछ भी फैन और मीडिया में नाकामी के तौर पर देखा जाएगा। पिछले कुछ वर्षों में दुनिया भर का हर मैदान भारत का घरेलू मैदान बन गया है, जहां आप्रवासियों की भीड़ जुट जाती है।
जसप्रीत बुमराह
औपनिवेशिक खेल का भारतीयकरण हो चुका है। विश्व क्रिकेट काउंसिल पर भी कब्जा हो गया है, जिसमें भारत एकमात्र महाशक्ति है। हालांकि इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया को यह दिखाने से इनकार नहीं करता है कि खेल पर शासन करने वाला ‘बिग थ्री’ का राज है। जब वेस्टइंडीज दुनिया की बेहतरीन टीम थी, तो उसके पास क्रिकेट काउंसिल नहीं थी। पिछली सदी के मध्य में इंग्लैंड का काउंसिल में बोलबाला था, तो टीमें कम थीं। भारत के पास मजबूत टीम और काउंसिल दोनों हैं; यह संगम मालदार और अनूठा है।
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल (आइसीसी) के शीर्ष पर केंद्रीय गृहमंत्री के बेटे जय शाह हैं। जियोस्टार में लाइव स्पोर्ट के प्रमुख संजोग गुप्ता के अगला सीईओ बनने की संभावना है। दुनिया भर में फ्रैंचाइज टीमों का स्वामित्व भारतीय कंपनियों के पास है। इंग्लैंड में द हंड्रेड- क्रिकेट के अजीबोगरीब टूर्नामेंट में भारतीय मालिकों ने नई जान फूंक दी है। कुल मिलाकर, विश्व क्रिकेट पर भारत का दबदबा जारी रहने वाला है, भले ही ताकतवर बीसीसीआइ को कई टीमों के कॉर्पोरेट मालिक ने धीरे-धीरे पृष्ठभूमि में धकेल दिया है।
भारतीय टीम का पहला इंग्लैंड दौरा 1932 में हुआ और उसके बाद 64 वर्षों में सिर्फ 13 दौरे हुए। 2002 से यह नौवां दौरा है। इसमें भारत के क्रिकेट के साथ-साथ टेलीविजन की कमाई का भी योगदान है- दोनों, जाहिर है, जुड़े हुए हैं। इंग्लैंड के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी घर पर या भारत में खेलते हैं, जहां कभी-कभी इंग्लिश टीमों का नेतृत्व ऐसे लोगों के हाथ होता था जो पहले टेस्ट क्रिकेट नहीं खेले थे, और ‘बी’ टीम होने की भावना बनी रह सकती थी।
कोहली निजी उपलब्धियों की कगार पर होने के बावजूद इंग्लैंड दौरे से ठीक पहले संन्यास लेने का फैसला करते हैं। इससे इंग्लैंड में भी निराशा है। बॉयकॉट के विपरीत, उन्हें नहीं लगता कि आंकड़े और औसत महत्वपूर्ण हैं। अगर उन्होंने अपने साथियों और कुछ प्रशंसकों को कुछ सिखाया है, तो वह यह है कि व्यक्तिगत रिकॉर्ड मायने नहीं रखते, टीम का हित ही सब कुछ है। भारतीय क्रिकेट को अपने कंधों पर उठाने वाले उनके किसी भी पूर्ववर्ती ने ऐसा नहीं सोचा था। उनके लिए आंकड़े मायने रखते थे।
युवा कप्तान के नेतृत्व में एक नई टीम भारतीय कहानी का अगला अध्याय लिखने की तैयारी कर रही है। शुभमन गिल से सभी को बड़ी उम्मीद है। उनके कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी है। वे बेशक आशीष नंदी के उस कथन में जान डालने की कोशिश करेंगे कि क्रिकेट भारतीय खेल है, जिसे अंग्रेज गलती से खोज बैठे थे। यह नजरिया दिलचस्प है और गहरा भी।
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं, उनकी ताजा किताब व्हाई डोंट यू राइट समथिंग आई माइट रीड है)