भारत में खेलों के प्रति दीवानगी सिर्फ भावना नहीं है, एक आस्था है। क्रिकेट के मैदानों से लेकर फुटबॉल के मैदानों तक, देश के फैंस अपने सितारों को पूजते हैं, और यही असीम प्यार अक्सर अव्यवस्थित भीड़ में बदलकर अराजकता का रूप ले लेता है। याद कीजिए, आरसीबी की आइपीएल जीत के बाद चिन्नास्वामी स्टेडियम में हुई भगदड़ को, या अतीत के उन तमाम वाकयों को जहां जुनून ने व्यवस्था को धराशाई कर दिया। यह दिखाता है कि भारत में जब कोई बड़ा खेल इवेंट होता है, तो उसका प्रबंधन बड़ी अग्निपरीक्षा बन जाता है। 13 दिसंबर 2025 इसी अग्निपरीक्षा का गवाह बना, जब फुटबॉल के जादूगर लियोनेल मेसी अपने ऐतिहासिक गोट (ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम) दौरे के लिए भारत आए। मेसी का भारत आना सिर्फ एक खबर नहीं थी, यह साल पुरानी एक दुआ थी जो पूरी होने जा रही थी।
लेकिन जैसे ही इस दौरे का आगाज हुआ, यह साफ हो गया कि दीवानगी तो जबरदस्त है, मगर इवेंट संभालने की तैयारी नदारद है। कोलकाता, जिसे फुटबॉल का घर कहा जाता है, वहीं से इस दौरे की चमक फीकी पड़नी शुरू हुई। यह यात्रा मेसी के स्टारडम, भारत के प्यार और आयोजकों की अक्षमता की ऐसी कड़वी दास्तान बन गई, जिसकी गूंज बरसों तक सुनाई देगी। कोलकाता में जैसे ही मेसी का कार्यक्रम घोषित हुआ, शहर की फुटबॉल प्रेमी आत्मा जोरों से जाग उठी। यह वही शहर है जहां की गली, मोहल्ले, स्थानीय क्लबों से लेकर महानगरों तक लोगों ने बचपन से ही फुटबॉल को अपनी पहचान बनाया है। मोहन बगान से लेकर ईस्ट बंगाल तक।

मेसी को करीब से देखन के लिए कोलकाता में बेकाबू प्रशंसक
वातावरण उत्साह से भरा था। टिकटों की कीमतें काफी मंहगी थीं। कुछ वर्गों ने इसे हाइ एंड अनुभव माना, कइयों ने अपनी बचत से टिकटें खरीदीं। लोगों ने सोचा था कि उन्हें मेसी को करीब से देखने-सुनने का मौका मिलेगा। लेकिन जैसे ही मेसी ने कोलकाता के सॉल्ट लेक स्टेडियम में कदम रखा, वातावरण में पहले से बना उत्साह अचानक आकर्षण से उमंग, फिर निराशा और फिर बेकाबू भीड़ में बदल गया। सॉल्ट लेक स्टेडियम के बाहर, सुबह तक फुटबॉल प्रेमियों में असाधारण उत्साह था। कई लोग हजार से पंद्रह सौ किलोमीटर की यात्रा कर पहुंचे थे।
मेसी के कार्यक्रम का आगाज एक छोटे से सांकेतिक समारोह से शुरू हुआ, जहां उन्होंने 70 फुट ऊंचे स्मारक का वर्चुअल अनावरण किया, जो विशेष रूप से उनके लिए बनाया गया था। फैंस को लग रहा था कि वे मेसी को सुन पाएंगे, वे वहां मौजूद लोगों से फुटबॉल टिप्स साझा करेंगे। लेकिन मेसी की उपस्थिति मात्र से ही मैदान में सरगर्मी बढ़ने लगी। उन्होंने भारी सुरक्षा घेरे में बीस मिनट से भी कम समय में मैदान का एक चक्कर लगाया। इतने भर से उनके प्रशंसकों का दिल नहीं भरा। कई फुटबॉल प्रेमियों को उन्हें करीब से देखने का मौका तक नहीं मिला। स्टेडियम में उपस्थित हजारों फुटबॉल दीवाने को यह कहां बर्दाश्त था। कुछ थे, जिन्हें मेसी की झलक तक नहीं मिली थी। वे वीआइपी सुरक्षा और कुछ अनजाने लोगों के घेराव में खो गए।
उत्साह का पल पहले निराशा, फिर उन्माद में बदल गया। उन्हें देखने वालों का शोर बढ़ने लगा, भीड़ में गुस्से का उबाल आया और देखते ही देखते मैदान का माहौल नियंत्रण से बाहर निकल गया। किसी ने बोतलें फेंकी, कुछ ने कुर्सियां। देखते ही देखते स्टैंड का सामान उखड़-उखड़ कर मैदान में आने लगा। अपने हीरो की झलक पाने के लिए शांति से बैठे लोग चीजें उठा उठाकर मैदान में फेंकने लगे। थोड़ी देर पहले स्टेडियम का उत्सवी माहौल अराजक भीड़ में बदल गया। सबकी एक ही शिकायत थी, इतना पैसा खर्च करने के बाद भी मेसी को करीब से नहीं देख पाए। स्थिति बिगड़ते ही इसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होने लगीं। मैदान में भगदड़ मच गई। मामला इतना बढ़ा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी सार्वजनिक रूप से इस अराजकता के लिए माफी मांगनी पड़ी। उन्होंने घटना की जांच के लिए एक कमेटी गठित करने की भी घोषणा की। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि स्टेडियम में जो भी अव्यवस्था हुई, वह ‘‘व्यवस्थाओं की कमी’’ और ‘‘भीड़ नियंत्रण की खराबियों’’ का नतीजा था।

भीड़तंत्रः मैदान में बिखरी कुर्सिया
इससे राजनीतिक सरगर्मी भी बढ़ गई। विपक्षी दलों ने इस मामले में सरकार की घेर लिया और आलोचना करने लगे। विपक्ष की मांग है कि इस घटना की जवाबदेही तय हो। उनका कहना है कि इसके लिए माफी पर्याप्त नहीं है। दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होना चाहिए ताकि जिम्मेदार लोगों को सबक मिले। जाहिर सी बात है, अब यह केवल खेल का विषय नहीं रहा। यह प्रशासन, सुरक्षा, और फैंस की भावनाओं का मुद्दा बन गया है। दूसरी ओर, ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन ने स्पष्ट किया है कि वे इस आयोजन के सीधे आयोजक नहीं थे फिर भी इस की घटना ने उन्हें चिंता में डाल दिया है। फेडरेशन के बयान से स्पष्ट होता है कि खेल संगठनों, प्रशासन और निजी आयोजकों के बीच सामंजस्य की कितनी कमी है। सांमजस्य की इसी कमी ने मेरी के दौरे को यादगार के बजाय शर्मनाक बना दिया। इस बीच, आयोजक सताद्रु दत्ता को पुलिस ने हिरासत में लिया है, ताकि उनके बयान लिए जा सके और जांच आगे बढ़ाई जा सके। इससे भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सकेगा।
कोलकाता की गलत शुरुआत के बावजूद, मेसी ने हैदराबाद की भीड़ का दिल जीता। फुटबॉल स्टेडियम में उन्होंने फैंस के साथ इंटरेक्शन किया, खेल कौशल दिखाया और एक शांतिपूर्ण माहौल में कार्यक्रम आयोजित हुआ। यहां वे कांग्रेस नेता राहुल गांधी से भी मिले। हालांकि इस मुलाकात से एक सवाल भी उठा कि क्या मेसी भारत में राजनीतिक संदेश का माध्यम बन रहे हैं? हैदराबाद के बाद मेसी मुंबई पहुंचे जहां, उनकी मुलाकात सचिन तेंडुलकर और सुनील छेत्री से हुई।

मुंबई में सचिन तेंडुलकर के साथ मेसी
मेसी का भारत दौरा और बेहतर हो सकता था यदि कोलकाता का वाकया न हुआ होता। क्योंकि किसी अंतरराष्ट्रीय व्यक्ति के आने पर यदि इस तरह के वाकये होते हैं, तो पूरे विश्व में भारत की छवि को धक्का पहुंचता है। कोलकाता की घटना सिर्फ भगदड़ या भीड़ के बेकाबू होने की घटना नहीं है। यह इशारा है, आयोजन के पहले तैयारियों में कमी का, मेहमान की सुरक्षा का और भीड़ नियंत्रण के उपाय न किए जाने का।
भारत में पहले भी भगदड़ की कई घटनाएं हुईं है। कभी किसी धार्मिक प्रवचन में, मंदिर में, तीर्थस्थलों पर। इससे भारत की छवि भीड़तंत्र की दिखाई देती है। इससे कोई भी खिलाड़ी या राजनेता सार्वजनिक रूप से कार्यक्रम करने या लोगों से मिलने से कतराने लगेगा। यह भारत का बड़ा नुकसान होगा। बाहर के लोग इसे ‘सिविक सेंस’ की कमी कह कर खारिज कर दें लेकिन हमें नागरिक का बोध पैदा करना ही होगा।