कहते हैं, ‘कोई किरदार छोटा नहीं होता, छोटे सिर्फ कलाकार होते हैं।’ आधुनिक अभिनय के जनक कॉन्स्टेंटिन स्टेनिस्लावस्की का यह कथन बॉलीवुड में महामारी के बाद सच होता नजर आ रहा है। लॉकडाउन के बाद जब पूरी दुनिया घर में सिमट गई, तब एक-एक कर कई प्रतिभाशाली कलाकारों ने अपने लिए सफलता के दरवाजे खोले। पहले अगर किसी फिल्म में ए-ग्रेड एक्टर, स्टार या स्टार-किड होता था, तो आम तौर पर मान लिया जाता था कि फिल्म बॉक्स-ऑफिस पर सफल होगी। नसीरुद्दीन शाह और ओम पुरी जैसे कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो ‘कैरेक्टर आर्टिस्ट’ के लिए खुद को स्थापित करना मुश्किल था। वक्त बदला, सिनेमा के प्रति लोगों का नजरिया बदला, नए निर्देशक आए, कहानी कहने का लहजा बदला और फिर मनोज वाजपेयी, पंकज त्रिपाठी, इरफान खान, राजकुमार राव और नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे कलाकारों का उदय हुआ। अब आलम यह है कि यूपी-बिहार और मध्य प्रदेश के ग्रामीण पृष्ठभूमि के अभिनेता भी अपने दम पर ‘स्टार’ बन रहे हैं।
पहचानः पाताल लोक में जयदीप अहलावत और अभिषेक बनर्जी
आखिर इस बदलाव के पीछे क्या कारण है? इस पर फिल्म समीक्षक सुमित कडेल आउटलुक से कहते हैं, ‘‘इसमें सबसे बड़ी भूमिका ओटीटी की है। महामारी के बाद लोगों के कंटेंट देखने के तरीके बदल गए हैं। लॉकडाउन के दौरान जब लोग घर में बंद थे और उनके पास करने को कुछ नहीं था, तो उन्होंने ओटीटी का सहारा लिया। ऐसे में लोगों ने नए कलाकारों को भी देखना और पहचानना शुरू किया। पंचायत के लीड एक्टर जितेंद्र (सचिव जी) ने भी हिट होने से पहले आठ साल तक संघर्ष किया। वह यूट्यूब पर एक्टिंग करते थे लेकिन पंचायत के बाद उनकी किस्मत चमक गई।”
दरअसल, 2021 और 2022 में महामारी के चलते पूरी दुनिया में सिनेमा हॉल बंद थे, स्ट्रीमिंग सर्विसेज के लिए सुनहरा दौर साबित हुआ। इस दौरान महामारी के चलते लोगों की फिल्म देखने की आदत बदली और भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। लोग सिनेमाघरों और बड़े मल्टीप्लेक्स में जाने की बजाय घर बैठे भारत की मूल कहानियां-फिल्में और वेब सीरीज देखने लगे। इनमें बड़े अभिनेता नहीं, बल्कि बॉलीवुड में नाम कमाने के लिए दशकों से संघर्ष कर रहे कलाकार काम कर रहे थे। 2021 में पहली बार कई नए अभिनेता, निर्देशक और लेखक सबसे ज्यादा देखी जाने वाली आइएमडीबी सूची में जगह बनाने में सफल हुए थे। इस दौरान ग्रहण, द लास्ट अवर, ढिंढोरा जैसी फिल्में और सीरीज खूब लोकप्रिय हुईं।
साल 2021 में शुरू हुआ यह सिलसिला 2024 में भी जारी रहा। मीडिया कंसल्टिंग फर्म ऑरमैक्स मीडिया के मुताबिक, 2024 के पहले छह महीनों में कोटा फैक्ट्री, गुल्लक और पंचायत जैसी वेब सीरीज सबसे ज्यादा देखी गईं। पंचायत को पहले छह महीनों में सबसे ज्यादा 28 लाख लोगों ने देखा। खास बात यह है कि इन फिल्मों में किसी बड़े डायरेक्टर या एक्टर ने काम नहीं किया, बल्कि ऐसे एक्टरों ने काम किया जिन्हें अपने करियर के 20 साल बाद भी पहचान नहीं मिली थी। लेकिन आज ये एक्टर इन फिल्मों में निभाए गए छोटे-मोटे रोल से भी स्टार बन गए हैं। इतना ही नहीं, जिनके पास कभी एक रोल भी नहीं था, उनके पास आज कई फिल्मों के ऑफर हैं।
खनकः गुल्लक के जमील खान, हर्ष मायर, वैभव राज गुप्ता, गीतांजलि कुलकर्णी (बाएं से दाएं)
इनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ये लोग अपने ‘रियल’ नाम से नहीं बल्कि ‘रील’ नाम से ज्यादा पहचाने जाते हैं। कुमार सौरभ, हर्ष मयर, सनी हिंदुजा, अशोक पाठक, फैसल मलिक को आज भी उनके नाम से कितने लोग जानते होंगे? लेकिन सोशल मीडिया पर सक्रिय शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जो निर्मल पाठक की घर वापसी के लबलबिया, गुल्लक के अमन, एस्पिरेन्ट के संदीप भैया, पंचायत के विनोद, प्रह्लाद चा और प्रधान जी को नहीं जानता होगा।
वरिष्ठ फिल्म समीक्षक तरण आदर्श आउटलुक को बताते हैं, “पंचायत के दमदार कंटेंट की वजह से इन अभिनेताओं को लोकप्रियता मिली। जब दर्शक आपकी कहानी और एक्टिंग सें जुड़ते हैं, तभी आपको हीरो बनाते हैं।” तरण आदर्श के मुताबिक, “चाहे फिल्म हो, वेब सीरीज हो या टीवी सीरियल- अगर कंटेंट अच्छा हो तो एक्टर चर्चा में आ ही जाते हैं। पंचायत, गुल्लक और जामताड़ा जैसी वेब सीरीज अपने कंटेंट के दम पर दर्शकों के बीच पहचान बनाने में सफल हो पाई हैं।”
ओटीटी बनी संजीवनी
दरअसल, ओटीटी प्लेटफॉर्म ने पिछले कुछ साल में भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को पूरी तरह हिलाकर रख दिया है। बॉलीवुड की घिसी-पिटी लाइनों और कथानकों से अलग ओटीटी प्लेटफॉर्म की कहानियों में एक नयापन है, जिसके कारण इसका कंटेंट काफी हिट हो रहा है। खास बात यह हैं कि ओटीटी पर आपको स्थापित निर्देशक और लेखक बहुत कम ही नजर आएंगे। थ्रिलर स्पेस में अवरोध, अनदेखी और कैंडी जैसे ओरिजिनल शो देने वाले सोनी लिव ने इन शो में अपेक्षाकृत नए निर्देशकों को रखा है। यही हाल अमेजन पर रिलीज हुई पंचायत और एस्पिरेंट, नेटफ्लिक्स पर चर्चित बुलबुल और स्केटर गर्ल का भी है। इनमें भी आपको नए निर्देशक और एक्टर नजर आएंगे।
पंचायत में विनोद का किरदार निभाने वाले अशोक पाठक ने सफलता हासिल करने से पहले 30 फिल्मों में काम किया था लेकिन उन्हें वह पहचान नहीं मिली, जिसकी उन्हें तलाश थी। हालांकि, ओटीटी पर रिलीज हुई पंचायत में उनके एक छोटे से सीन ने उन्हें वह सफलता दिलाई, जिसके लिए वे बॉलीवुड में 14 साल से संघर्ष कर रहे थे। आउटलुक से बातचीत में वे कहते हैं, ‘‘मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं कि पंचायत ने मेरी जिंदगी बदल दी। लेकिन इसमें एक्टिंग करते हुए मैंने कभी नहीं सोचा था कि इसके जरिए मुझे इतना प्यार मिलेगा’’ (देखें इंटरव्यू)। लोगों ने अशोक पाठक की एक्टिंग को पंचायत के जरिये जाना और पसंद किया, जिसका नतीजा ये हुआ कि उन्हें एक के बाद एक कई काम मिलने लगे। पंचायत के बाद उन्होंने एक फिल्म सिस्टर मिड-नाइट में काम किया, जो कान महोत्सव में चुनी गई। अशोक पाठक ही नहीं बल्कि उनके जैसे दर्जनों ग्रामीण परिवेश से उठकर मुंबई में संघर्षरत एक्टरों की जिंदगी ओटीटी ने बदल दी।
पल्लव सिंह
ऐसा ही एक नाम मिर्जापुर-3 में अपने शायराना रोल के कारण हिट हुए पल्लव सिंह का भी है। एक वक्त था जब वे घर चलाने के लिए अमेजन में काम करते थे लेकिन मिर्जापुर-3 में उनके एक मिनट के रोल ने उन्हें वायरल स्टार बना दिया और आज उनके पास कई फिल्मों के ऑफर हैं। एक साक्षात्कार में वे कहते हैं, ‘‘मिर्जापुर-3 के बाद से मुझे सांस लेने की भी फुरसत नहीं है। मेरा फोन लगातार बजता रहता है। फैन तरह-तरह के स्केच बनाकर मुझे भेजते रहते हैं।’’
दरअसल भारत में फिल्म उद्योगों के विपरीत, ओटीटी प्लेटफॉर्म पर कोई सीमा निर्धारित नहीं है। नतीजतन, दर्शक आखिरकार स्क्रीन पर ऐसे कलाकारों को देख पा रहे हैं, जो उनके जैसे दिखते हैं या उनके सांस्कृतिक मूल्यों को साझा करते हैं। पाताल लोक में हथौड़ा त्यागी जैसा रूह कंपा देने वाला किरदार निभाने वाले अभिषेक बनर्जी के मुताबिक, ‘‘जब ओटीटी शुरू हुआ, तो ए-लिस्टर (कथित तौर पर स्टार अभिनेता) यहां काम नहीं करना चाहते थे क्योंकि उन्हें लगा कि यह छोटा माध्यम है। फिर उन्होंने देखा कि इतने सारे अभिनेता इस माध्यम से पहचाने जा रहे हैं, तो उन्होंने भी यहां आना शुरू कर दिया। लेकिन ओटीटी पर कौन स्टार है यह मायने नहीं रखता है।’’ वे आगे कहते हैं, ‘‘हमारे पास ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें गैर-सितारे वाले शो भी हिट हो रहे हैं और बड़े सितारों वाले भी। यहां आप रचनात्मकता और मौलिकता को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं।’’
नाम भी दाम भीः अनदेखी वेब सीरीज के कलाकारों को मिली पहचान
हालांकि, फिल्म समीक्षक कडेल नए एक्टरों की एक जमात के लाइमलाइट में आने के पीछे दूसरा तर्क भी देते हैं। उनका मानना है कि बड़े स्टार अब भी ओटीटी को छोटे पर्दे जैसा ही मनाते हैं। आज भी बड़े स्टार ओटीटी पर काम करने में हिचकते हैं, कंटेंट चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो। उन्हें लगता है कि अगर एक बार वे यहां आ गए, तो फिर वे बड़े पर्दे पर दर्शकों को नहीं खींच पाएंगे। अजय देवगन और अक्षय कुमार जैसे अभिनेताओं ने ओटीटी से लगभग किनारा किया हुआ है। सिद्धार्थ मल्होत्रा की ओटीटी पर लगातार 3 फिल्में रिलीज हुईं और जब उन्होंने बड़े पर्दे वापसी करना चाही, तो उन्हें कोई खास रिस्पॉन्स नहीं मिला। बड़े स्टारों का ओटीटी पर न होना छोटे और संघर्षरत कलाकारों के लिए सुनहरा मौका साबित हुआ है। यही वजह है कि मार्केट में नए-नए एक्टरों का उदय हो रहा है। वह आगे कहते हैं, आज जो एक्टर लोकप्रिय हो रहे हैं अगर उनकी फिल्में सिनेमाघरों में लगेंगी तो कोई खास प्रतिक्रिया नहीं मिलेगी। लापता लेडिज का ही लें। इस फिल्म को सिनेमाघरों में वैसा प्यार नहीं मिला, जो ओटीटी पर मिला। बड़े परदे और ओटीटी का यही फर्क है। ओटीटी को आसानी से घर बैठकर देखा जा सकता है। इस वजह से ओटीटी पर जो फिल्में/सीरीज रिलीज हो रही हैं वह हिट हो रही हैं और इसके कलाकार लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं।
बहरहाल, वजह चाहे कंटेंट क्रिएशन में बढ़ोतरी की हो या ओटीटी पर रिलीज होने वाली फिल्मों तक लोगों की आसान पहुंच तक, यह सच्चाई है कि फिल्मों में छोटी भूमिका पाने के लिए वर्षों मुंबई में कास्टिंग डायरेक्टरों के दफ्तरों के चक्कर लगाने वाले अभिनेताओं को अब फिल्में मिलने लगी हैं। ये कलाकार अपनी छोटी-छोटी भूमिकाओं में भी अपने दमदार अभिनय की वजह से सफलता हो रहे हैं। उन्हें वैसी सफलता मिल रही है, जिसकी उन्हें दशकों से तलाश थी।
कास्टिंग में बदलाव
नेटफ्लिक्स, हॉटस्टार और प्राइम जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म के उदय ने सिर्फ यथार्थवादी कंटेंट की मांग में बढ़ोतरी की है, बल्कि कंटेंट क्रिएशन के दायरे को भी बढ़ाया है। कंटेंट क्रिएशन में वृद्धि भी एक कारण है, जिसने प्रतिभाशाली अभिनेताओं की मांग बढ़ी है। इससे भारतीय सिनेमा में कास्टिंग के तरीकों में भी बदलाव आया है। ये कहा जा रहा है कि कास्टिंग डायरेक्टर्स को आखिरकार अब उनका हक मिलना शुरू हो गया है। वे साबित भी कर रहे हैं कि फिल्मों में ए-लिस्ट एक्टरों का नाम होना जरूरी नहीं, बल्कि प्रतिभा और सही फिट होना ही दर्शकों को खींचने और अंत तक बांधे रखने का फार्मूला है। अगर आप पिछले कुछ समय में हिट हुए कंटेंट को देखेंगे तो आपको ये अंदाज लगेगा कि अभिनय बोलता है; आज के दौर में सिर्फ स्टारकास्ट ही सफलता की गारंटी नहीं है। मुकेश छाबड़ा, नंदिनी श्रीकांत, अभिषेक बनर्जी, टेस जोसेफ और श्रुति महाजन जैसे कास्टिंग निर्देशकों की फौज देश की कई ऐसी प्रतिभाओं को सामने लाई है, जो अपनी विस्फोटक प्रतिभा के साथ एक भूमिका के लिए तरस रहे थे।
आखिरकार बीते कुछ साल में कास्टिंग का महत्व इतना क्यों बढ़ गया है? तरण आदर्श कहते हैं, ‘‘चयन काफी छोटे लेवल पर हो रहा है, जिसमें हर बारीकी पर ध्यान दिया जा रहा है। ये भी एक वजह है जिससे छोटे-छोटे एक्टर और थियेटर एक्टर आजकल पॉपुलर हो रहे हैं।’’ सुमित कडेल की मानें तो लोगों का फिल्मों को लेकर एक्सपोजर बढ़ा है। उन्होंने कहा, ‘‘आज सभी लोग कोरियाई, जापानी, रूसी, अमेरिकी और यूरोपीय कंटेंट देख रहे हैं। ऐसे में भारतीय फिल्मों को लेकर भी उनकी उम्मीदें बढ़ गई हैं। भारत में भी अब यथार्थवादी कंटेंट पर ध्यान दिया जा रहा है। यही वजह है जिससे कैरेक्टर का चुनाव सबसे अहम हो गया है।’’ कडेल आगे कहते हैं, ‘‘आजकल किरदार देखकर कलाकारों का चयन किया जाता है। अगर कोई भीड़ में भी दिख जाए कि फलां व्यक्ति किसी कैरेक्टर में फिट हो सकता है, उसे वह भूमिका दे दी जाती है। किसी बड़े स्टार के बेटे होना या थियेटर की पढ़ाई अब मायने नहीं रखती। पंचायत के विनोद को ही देखें, उनका कोई फिल्मी बैकग्राउंड नहीं था। लेकिन उन्हें ऐसे ग्रूम किया गया कि वे आज स्टार बन गए हैं।’’
गैंग्स ऑफ वासेपुर में एक से बढ़कर एक 384 एक्टरों को कास्ट करने वाले मुकेश छाबड़ा अपने एक इंटरव्यू में कहते हैं, ‘‘मैंने अनुराग कश्यप से गैंग्स ऑफ वासेपुर में पंकज त्रिपाठी और काई पो चे में सुशांत सिंह राजपूत को कास्ट करने के लिए लड़ाई लड़ी। मेरे दोनों दांव सफल रहे।’’ वे आगे कहते हैं, ‘‘अभिनेता महान हो सकता है, लेकिन क्या वह सभी भूमिकाओं के लिए अच्छा हो सकता है? चाहे 12वीं फेल में विक्रांत मैसी हो या चमकीला में दिलजीत दोसांझ, उन्हें रोल इसलिए मिला क्योंकि वे इसमें फिट बैठते थे। इसके लिए उनका करियर ग्राफ नहीं देखा गया।’’ पंचायत के बाद सफलता का स्वाद चखने वाले बुल्लू कुमार भी इन बातों से इत्तेफाक रखते हैं। उन्होंने आउटलुक से कहा, “अब कास्टिंग के तरीके बदल गए हैं, जिससे कैरेक्टर आर्टिस्ट की मांग बहुत बढ़ गई है।” वे कहते हैं, ‘‘अब कास्टिंग डायरेक्टर्स खुद मांग करते हैं कि फलां रोल के लिए थिएटर से जुड़ा कोई व्यक्ति चाहिए। क्योंकि थियेटर में इतना अभ्यास किया होता है कि फिल्मों में 2-4 मिनट का सीन शूट करना आसान होता है। कलाकार किरदार की मांग आसानी से पूरा कर देता है।’’ (देखें इंटरव्यू) वहीं, अभिषेक बनर्जी के मुताबिक, ‘‘बड़े कलाकार कैरेक्टर आर्टिस्ट के रोल को लेकर असहज होते हैं। हालांकि ओटीटी पर कैरेक्टर आर्टिस्ट भी बड़ा स्टार हो सकता है और हुए भी हैं।"
आ गया नंबरः जामताड़ा में स्पर्श, मोनिका और अंशुमन (बाएं से दाएं)
दरअसल लॉकडाउन ने स्टार की परिभाषा को बदला है। साथ ही हिंदी सिनेमा के दर्शकों की पसंद में भी बड़ा बदलाव आया है। एक दौर था जब अभिनय में गांव के नाम पर सेट होते थे और ग्रामीण की भूमिका भी शहरी बाबू नुमा अभिनेता गमछा बांध कर निभा लिया करते थे। लेकिन ओटीटी आने के बाद यह नजरिया बदला और माहौल एकदम वास्तविक बनाने पर जोर दिया जाने लगा। नतीजन ऐसे अभिनेता दिखने लगे, जो विश्वसनीयता की गारंटी बन गए। उनके संवाद बोलने का तरीका, उनकी चाल-ढाल उनके चरित्रों से सिर्फ मेल ही नहीं खाती थी, बल्कि वे बिलकुल वैसे ही लगते थे। अब कहानियां फिल्म स्टूडियो से निकल कर बाहर चली आईं। जामताड़ा का माहौल और उसके कलाकार देख कर कोई नहीं कह सकता कि यह झारखंड का जामताड़ा नहीं है। कलाकारों ने अपना सौ प्रतिशत दिया और वे दर्शकों के चहेते बन गए। इंस्पेक्टर बिस्वा पाठक बने दिब्येंदु भट्टाचार्य, गुड़िया बनी मोनिका पंवार, रॉकी के रूप में अशंुमन पुष्कर और सनी के रूप में स्पर्श श्रीवास्तव दर्शकों के सामने आते हैं, तो जामताड़ा की विश्वसनीयता दर्शकों को बहुत गहरे तक छूती है।