फिल्मों में मामूली भूमिका पाने के लिए वर्षों कास्टिंग डायरेक्टरों के दफ्तरों के चक्कर लगाने वाले अभिनेता आजकल मुंबई में पहचाने नाम बन गए हैं, उन्हें न सिर्फ फिल्में मिल रही हैं बल्कि छोटी और दमदार भूमिकाओं से उन्होंने अपना अलग दर्शक वर्ग भी बना लिया
सिंगल स्क्रीन सिनेमाहॉल का दौर खत्म होने और मल्टीप्लेक्स आने के संक्रमण काल में किसी ने भी गांव-कस्बे में रह रहे लोगों के मनोरंजन के बारे में नहीं सोचा, ओटीटी का दौर आया तो उसने स्टारडम से लेकर दर्शक संख्या तक सारे पैमाने तोड़ डाले
फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर के लगभग सभी कलाकार आज बड़े नाम हो चुके हैं, लेकिन उसके जरिये एक्टिंग की दुनिया में कदम रखने वाले फैसल मलिक के लिए संघर्ष के दिन कुछ और साल तक जारी रहे।
बचपन में गांव-गांव रुई बेचने से लेकर फिल्मी दुनिया की सबसे बड़ी महफिलों में से एक कान फिल्म फेस्टिवल तक का सफर तय करना अशोक पाठक के लिए आसान नहीं रहा है
ओटीटी की बदौलत तीसरी श्रेणी के स्टारों का उदय हुआ, जो साधारण भूमिकाओं को भी असाधारण बना देते हैं। ऐसे कलाकार बॉलीवुड की तीसरी दुनिया की नुमाइंदगी करते हैं। इस दुनिया में उनकी प्रतिस्पर्धा किसी स्टार किड से नहीं, बल्कि उनसे होती है जो समान पृष्ठभूमि से आते हैं