इंसान का विकास ज्ञान के लिए उसकी उत्सुकता के परिणामस्वरूप हुआ है। इस उत्सुकता की अभिव्यक्ति के रूप में ही विश्वविद्यालयों का गठन हुआ, जो गहन चिंतन, विकास और विचारों के आदान-प्रदान के केंद्र बने। विश्वविद्यालय कई सदियों में सामाजिक और वैचारिक बदलाव, नए ज्ञान और कुशल श्रम-शक्ति विकसित करने का माध्यम बनकर उभरे हैं। उच्च शिक्षा लोगों को अपनी आय बढ़ाने और बेहतर जीवन की ओर आगे बढ़ने के लिए साधन उपलब्ध कराती है।
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के विजन के अनुसार, देश में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन और ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) जैसे विश्वस्तरीय शिक्षण संस्थान स्थापित किए गए। समय के साथ इन संस्थानों ने शिक्षा और शोध की बेहतरीन क्वालिटी के लिए अपनी पहचान बनाई, और देश में सबसे पसंदीदा शिक्षण संस्थान बन गए।
इसके बाद से देश में विश्वविद्यालयों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अनुसार इस साल मार्च तक देश में 900 से ज्यादा विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा के अन्य संस्थान थे। लेकिन अफसोस की बात है कि अब भी 18 से 24 वर्ष की आयु के सिर्फ 26 फीसदी युवा उच्च शिक्षा में प्रवेश ले पाते हैं। 2002-03 में तो इनकी संख्या सिर्फ 9 फीसदी थी। तुलनात्मक रूप से देखें तो ब्रिटेन में 59 फीसदी और जापान में 55 फीसदी युवा उच्च शिक्षा में प्रवेश लेते हैं। हमारे देश में उच्च शिक्षा की काफी मांग है। सरकार इसका एक मात्र आर्थिक स्रोत है, और वह इस मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं है। सीटें कम और छात्र अधिक होने के कारण कई बार प्रवेश पाने के लिए 99 फीसदी अंक भी नाकाफी हो जाते हैं। कहानी का यह सिर्फ एक पहलू है। दूसरा पहलू यह है कि अधिकांश संस्थानों को अच्छी शिक्षा प्रदान करने में कठिनाई हो रही है। सामाजिक बदलाव लाने के लिए ज्ञान देने और अनुसंधान के जरिए नया ज्ञान विकसित करने पर उनका फोकस नहीं के बराबर है। सर्वेक्षणों से पता चलता है कि हमारे अधिकांश ग्रेजुएट उद्योगों में रोजगार पाने के लायक ही नहीं हैं।
इन वजहों से उच्च शिक्षा में निजी क्षेत्र की भूमिका अनिवार्य हो जाती है। कंपनियां यहां बहुआयामी भूमिका निभाती हैं- कभी इनमें प्रवेश लेने वाले छात्रों के अभिभावक के रूप में, कभी नौकरियां देने, तो कभी प्रायोजक के रूप में। वे पाठ्यक्रम की तैयारी में जुड़ाव को उचित मानती हैं, ताकि एक प्रोफेशनल के तौर पर छात्रों को बेहतर ढंग से तैयार किया जा सके। इसी वजह से निजी विश्वविद्यालयों का विकास हो रहा है। उनमें उच्च शिक्षा की क्वालिटी और अवसरों की उपलब्धता बढ़ाकर मानव और पूंजीगत संसाधनों को एक साथ लाने की क्षमता है। कई नए विश्वविद्यालय देश में नया पाठ्यक्रम, नए विचार, शिक्षा पद्धति और शोध क्षमता ला रहे हैं। ये विश्वविद्यालय सरकारी संस्थानों के मुकाबले भले ही ज्यादा खर्चीले हों, लेकिन अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के मुकाबले बहुत कम खर्च पर देश में उच्च शिक्षा की कमी पूरी करने में सक्षम हैं। अनंत नेशनल यूनिवर्सिटी, अशोका यूनिवर्सिटी, ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी, अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी, शिव नाडर यूनिवर्सिटी और क्रिया यूनिवर्सिटी उन चुनिंदा विश्वविद्यालयों में हैं जो पारंपरिक उच्च शिक्षा की सीमाओं से निकलकर छात्रों को लचीले वातावरण में अंतरराष्ट्रीय फैकल्टी सदस्यों से शिक्षा दिला रहे हैं। ये विश्वविद्यालय मन की राह पर चलने के सिद्धांत का अनुसरण करते हुए छात्रों को उनकी पसंद का विषय चुनने का अवसर प्रदान करते हैं। इससे छात्रों में लिबरल आर्ट्स और डिजाइन के प्रति नया रुझान दिख रहा है।
उदाहरण के लिए, अहमदाबाद की अनंत नेशनल यूनिवर्सिटी (अनंतयू) छात्रों को उनकी पसंद के आधार पर क्रेडिट सिस्टम उपलब्ध करा रही है। इससे वे हर सेमेस्टर में अपनी रुचि के अनुसार विषयों का चयन कर सकते हैं। यहां पारंपरिक शिक्षा प्रणाली के ढांचे से अलग, छात्रों के लिए शुरुआत में एक कठिन ‘अनलर्निंग मॉड्यूल’ होता है। यह हर विषय के छात्रों के लिए है। सुसज्जित लैब, स्पोर्ट्स अकादमी आदि आधुनिक सुविधाओं के साथ ‘अनंतयू’ अपने यहां करीब 700 छात्रों को व्यापक व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करती है। इस तरह वह छात्रों के समग्र विकास पर फोकस कर रही है। वह छात्रों को अपने परिवेश और समाज के साथ जुड़ने, चुनौतियों और संभावनाओं का पता लगाने और स्थायी समाधान के रास्ते बना रही है।
अनंतयू के एक वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएट प्रोग्राम के छात्रों, अनंत फेलो को देखिए। वे एक तय माहौल में मौजूद समस्या की पहचान करते हैं और पूरे साल उससे जुड़े सभी पक्षों के साथ मिलकर नया और उचित समाधान निकालते हैं। वे सरकारी संगठनों, गैर सरकारी संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाकर्मियों के साथ मिल कर काम करते हैं ताकि अपने विजन को व्यावहारिक समाधान में बदल सकें। अपनी इस नवीन पद्धति की वजह से ‘अनंतयू’ देश में ‘वैचारिक लीडर’ के रूप में उभर रही है। वह समाज में बदलाव लाने और भारत में नया ज्ञान विकसित करने में उत्प्रेरक बनकर छात्रों के बीच निजी विश्वविद्यालयों के प्रति विश्वसनीयता और आकांक्षा पैदा करना चाहती है।
(आर्टिस्ट ऐंड प्रोवोस्ट, अनंत नेशनल यूनिवर्सिटी, अहमदाबाद)