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चेहरे नहीं, मुद्दे हावी

भाजपा और कांग्रेस दोनों के सामने स्थानीय मुद्दों से पार पाने की चुनौती
कसौटी परः मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर (बाएं से दूसरे) के दमखम की भी होगी परीक्षा

चार लोकसभा सीटों वाले हिमाचल प्रदेश में मुद्दों की भरमार है। चाहे विस्थापित परिवार हों या कर्मचारी, किसान, सैनिक या फिर भूमिहीन, सबकी पीड़ा चुनावी फिजाओं में गूंज रही है। दलितों के खिलाफ हिंसा भी बड़ा मुद्दा है। भाजपा और कांग्रेस दोनों को इन मसलों की तपिश बराबर झेलनी पड़ रही है।

पिछले आम चुनाव में भाजपा ने प्रदेश की चार सीटों पर बड़े अंतर से कब्जा जमाया था। लेकिन, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर का कहना है कि इस बार ऐसा नहीं होगा। वे कहते हैं, “यूपीए सरकार को बदनाम करने के लिए अन्ना हजारे और बाबा रामदेव को आगे कर भाजपा ने आंदोलन चलाया जिसके छलावे में मतदाता आ गए। अब वे ठगे महसूस कर रहे हैं।” जबकि, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सती फिर से चारों सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं।

लेकिन, जमीनी हालात कुछ और ही हैं। न्यू पेंशन स्कीम से प्रभावित करीब 80 हजार और आउटसोर्सिंग पर काम कर रहे करीब 42 हजार कर्मचारी आंदोलन की राह पर हैं। एनपीएस कर्मचारी संघ के महासचिव नरेश शर्मा का कहना है कि उनकी मांगों पर गौर नहीं किया गया तो कर्मचारी या तो चुनावों का बहिष्कार करेंगे या फिर नोटा दबाएंगे। राज्य में 12 लाख किसान परिवार हैं जो अपनी घटती आय से चिंतित हैं।

प्रदेश में दलितों की आबादी करीब 25.6 फीसदी है और शिमला आरक्षित सीट है। आरटीआइ कार्यकर्ता तथा दलित नेता केदार सिंह जिंदान की हत्या पर कांग्रेस और भाजपा की चुप्पी से यह वर्ग दोनों दलों से नाराज है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में दो लाख 27 हजार परिवार भूमिहीन हैं और इनमें भी अस्सी फीसदी दलित हैं। दलित संगठन अपना घोषणा-पत्र तैयार करने में भी जुटे हैं। प्रदेश में 1.30 लाख भूतपूर्व सैनिक और 1.20 लाख फौज में सेवारत हैं। अर्ध-सैनिक बलों की तादाद अलग है। हमीरपुर और कांगड़ा संसदीय हलकों में फौजी परिवार सबसे ज्यादा हैं। यही कारण है कि बीते दिनों कांगड़ा की रैली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सरकार बनने पर अर्धसैनिक बलों के जवानों को भी शहीद का दर्जा देने का ऐलान किया था।

हमीरपुर से पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम सिंह धूमल के पुत्र अनुराग ठाकुर सांसद हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राठौर ने बताया कि अनुराग को घेरने के लिए पार्टी ने खास रणनीति बनाई है। पौंग बांध परियोजना से विस्थापित परिवारों को बसाने का मसला भी चर्चा में है।

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