मुकुंदन के लिए इससे पहले दफ्तर कभी भी इतना आकर्षक नहीं था। या कहें दोपहर के भोजन में आकर्षण नहीं था। दोपहर में तेल से सना, शोरबे से लिथड़ा और अजीब-सा महकने वाला खाने का डब्बा खोलना मुकुंदन के लिए पूरे दिन का सबसे कठिन काम था। सालों से उनकी यही दिनचर्या थी। फिर अचानक क्या हुआ कि उन्हें यह सब दिलचस्प लगने लगा? मुकुंदन को एक जादुई प्लेट मिल गई, जिसे वह धोने या फेंकने के बजाय खा सकते थे!
पर्यावरण के अनुकूल, उदरस्थ करने वाली क्रॉकरी जिसमें ऐसे चम्मच हैं जिनसे न सिर्फ खाना खा लिया जाए बल्कि इन चम्मचों को खा कर मीठे की तलब भी शांत की जा सकती है। मुकुंदन लगभग साल भर से खाई जा सकने वाली क्रॉकरी के प्रति निष्ठावान हैं। बेंगलूरू में रहने वाले मुकुंदन कहते हैं, “इस कटलरी को बैग में रखा जा सकता है। ताकि वक्त पड़ने पर खाया जा सके। यह सिर्फ कटलरी ही नहीं बल्कि प्रोटीन का स्रोत भी है।” मुकुंदन ने खाए जा सकने वाले ये चम्मच ‘एडिबलप्रो’ से खरीदे थे। इस कंपनी को आइबीएम की दो पूर्व कर्मचारी लक्ष्मी भीमाचार और शैला गुरुदत्त चलाती हैं।
59 साल की भीमाचार कहती हैं, “हम कुछ अलग हट कर और पर्यावरण के अनुकूल करना चाहते थे। हम रक्षा खाद्य अनुसंधान प्रयोगशाला के संपर्क में थे, जो इसी तर्ज पर कुछ विकसित कर रहे थे। उन लोगों से बेसिक तकनीक समझने वाले हम पहले थे। हमारी कटलरी सौ फीसदी खाने योग्य है। इसमें कोई प्रिजरवेटिव इस्तेमाल नहीं किया गया है।” सितंबर 2017 में इस पर विचार मंथन शुरू हुआ था। जून 2018 तक आते-आते दोनों गजमुख फूड कंपनी लेबल ‘एडिबलप्रो’ के तहत खाने योग्य बर्तन बाजार में उतारने के लिए तैयार थीं। इसमें चम्मच से लेकर कलछुल तक, कॉफी मग से लेकर प्लेट तक हर आकार-प्रकार के बर्तन थे। ‘एडिबलप्रो’ के पास मीठे दिलकश स्वाद वाले बर्तनों की पूरी शृंखला है। भीमाचार कहती हैं, “वनीला, अनानास, चुकंदर, गाजर, पालक, नीबू जो चाहे उस स्वाद का बर्तन चुनिए...अब हमें बड़ी बर्थडे पार्टियों और कॉरपोरेट पार्टियों के भी ऑर्डर मिलते हैं। वह बताती हैं कि उनकी दालों और अनाज से बनी क्रॉकरी एक साल तक चल सकती है और कुछ बर्तन में गरम तरल पदार्थ भी रखा जा सकता है। ‘एडिबलप्रो’ मुख्य रूप से वेबसाइट और ऑनलाइन माध्यम से अपने उत्पाद बेचती है। साढ़े पांच रुपये से लेकर 55 रुपये कीमत वाले इन उत्पादों को कहीं से भी खरीदा जा सकता है। भीमाचार के अनुसार, ‘एडिबलप्रो’ को मौखिक प्रचार ने शीर्ष पर पहुंचाया है। यह कंपनी पर्यावरण के अनुकूल और सामाजिक रूप से जागरूक फर्म के रूप में नए मील के पत्थर पर आंखें गड़ाए हुए है। भीमाचार कहती हैं, “हमारे यहां सिर्फ महिला कर्मचारी ही हैं, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाली, जिन्हें नौकरी की जरूरत है।”
यह उम्मीद तो की ही जा सकती है कि गैर-बायोडिग्रेडेबल कचरे के खिलाफ युद्ध में, खाद्य कटलरी-क्रॉकरी अपने प्लास्टिक समकक्षों के खिलाफ अधिक दिनों तक टिकी रहे और अलमारी में जगह बना पाए। क्योंकि हम भारतीय, कुल्हड़ की चाय और दोने में चाट खाने से अनजान नहीं हैं। पत्तों की महक की वजह से प्लेटों को त्यागने के कारण गुरुदत्त और भीमाचार ने लोगों को प्लेट चाट कर साफ करने से भी आगे जाकर प्लेटों को खा जाने का विकल्प दिया।
मुकुंदन जैसे ग्राहकों को इसमें दोहरा लाभ मिलता है, एक तो खाने के बाद थाली साफ करने का झंझट खत्म, दूसरा सिर्फ थाली में मौजूद खाने से ही संतुष्टि पर निर्भर न होना, क्योंकि प्लेट चम्मच खाने का अलग मजा है। वडोदरा के 26 वर्षीय क्रुविल पटेल, जिनकी कंपनी ‘त्रिशुला’ 2015 में स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्थापित की गई थी, कहते हैं, “यदि आप प्लेट-चम्मच खाना नहीं चाहते तो कोई बात नहीं इन्हें छोड़ दें, ये जानवरों के लिए भी सुरक्षित हैं।” शुरुआती हिचक और संदेह के बावजूद, मैकेनिकल इंजीनियर ने खुद को खाद्य प्रौद्योगिकी में शिक्षित किया और एक स्थायी, पर्यावरण के अनुकूल ब्रांड स्थापित करने के लिए सेट किया, जिसने न्यूयॉर्क में इंटरनेशनल रेस्तरां और फूड्स सर्विस शो में एक पुरस्कार जीता। पटेल कहते हैं, “हमारे पास मल्टीग्रेन आटा और प्राकृतिक मसालों और फ्लेवर जैसे चॉकलेट, पुदीना, मसाला पेपरकॉर्न, नमक और अजवाइन से बने छह प्रकार के चम्मच हैं। मैं खाने वाली स्ट्रॉ भी बनाने की कोशिश कर रहा हूं।
अमेरिका ध्रुवों की तुलना में ठंडा होता जा रहा है, धरती चटक रही है, ग्लोबल वार्मिंग की जोरदार दस्तक से दुनिया जैसे सदमे से जागी है। इसी को देखते हुए उद्यमी कार्बन फुटप्रिंट कम करने का प्रयास कर रहे हैं। कोयंबतूर स्थित रेडी टू ईट उत्पाद बनाने वाली ‘महको इम्पेक्स’ के सेंथिलराज कहते हैं, “शुरुआत में मैंने ‘त्रिशुला’ से कुछ चम्मच खरीदे थे। अब मैं थोक में इन्हें खरीद रहा हूं। मुख्य विचार ईको-फ्रेंडली होना है। हमारे पास लकड़ी के चम्मच हैं, लेकिन ये उनसे ज्यादा बेहतर हैं।” उनका मानना है कि पैकेज्ड फूड में खाने वाला एक चम्मच डालने से उत्पाद ज्यादा आकर्षक हो जाता है।
मुंबई में ‘145 कैफे एंड बार’ चलाने वाले ईशान बहल इससे सहमत हैं। कुकी के आटे से बने वोदका शॉट गिलास में अंदर भरी हुई आइरिश क्रीम वाली डिश ‘तिरामिसु कुकीज शॉट’ लॉन्च करने के बाद उनके रेस्तरां को गजब की लोकप्रियता मिली। बहल कहते हैं, “थोड़ा सा अल्कोहल लीजिए और फिर गिलास को हल्का सा कुतर लीजिए। यह वाकई मजेदार लगता है।” वह आगे जोड़ना नहीं भूलते कि विशेष रूप से तैयार किए गए खाद्य गिलासों को महिला ग्राहकों को खुश करने के लिए बनाया गया था। वह बताते हैं, “तिरामिसु कुकी शॉट गिलास लेने वाली 90 फीसदी महिलाएं 21 से 25 के बीच की थीं।” बहल की कल्पना तब जागी जब उन्होंने एक अमेरिकी कंपनी के बारे में पढ़ा, जिसने प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए खाद्य कटलरी बनाने के लिए ऑनलाइन क्राउडफंडिंग अभियान शुरू किया था। करों के अतिरिक्त हर गिलास की 225 रुपये कीमत सुनने के बाद भी बहल के ग्राहक आंखें नहीं फैलाते। अपने आला दर्जे के ग्राहकों के बारे में वह कहते हैं, “लोग अलीबाग जैसी जगहों पर अपने घर में पार्टी करते हैं और थोक में इन गिलासों का ऑर्डर देते हैं।”
अंतरराष्ट्रीय गैर-लाभकारी संगठन ‘एनैक्टस’ जो दुनिया भर के छात्रों के बीच सामाजिक उद्यमिता को प्रोत्साहित करता है, ने 2017 में दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज के छात्रों द्वारा भारत में अफगान महिला शरणार्थियों की आय के एक वैकल्पिक स्रोत के रूप में प्रोजेक्ट ‘प्रत्याद्या’ शुरू किया था। ‘प्रत्याद्या’ प्रोजेक्ट को संभाल रही बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा मानवी बैराठी कहती हैं, “हमने 2016 में खाए जाने वाले कटोरे बनाना शुरू किए। अब हमने प्लेटों और चम्मचों में भी विविधता ला दी है। हमारे ग्राहक चॉकलेट, अचारी और कॉफी किसी भी स्वाद का चयन कर सकते हैं। ‘प्रत्याद्या’ अब स्कूलों में अपनी पहुंच बना रहा है और ऑनलाइन चैनलों के जरिए कार्यक्रम चला रहा है। दस्तकार जैसे कार्यक्रमों में भी प्रोजोक्ट ने अपनी उपस्थित दर्ज की है। बैराठी कहती हैं, “हमारे उत्पादों को दिल्ली के खान मार्केट में सिविल हाउस कैफे से भी खरीदा जा सकता है। हमने अपने कटोरों और चम्मच की कीमत 9 रुपये से 15 रुपये के बीच रखी है और प्लेटें 20 रुपये से लेकर 22 रुपये तक की हैं।” प्लास्टिक से लड़ाई लड़ने के मुकाबले में उदरस्थ कर ली जाने वाली प्लेटों-चम्मचों को अभी लंबा रास्ता तय करना है। लेकिन इसकी शुरुआत हो गई है। लक्ष्मी भीमाचार कहती हैं, “यह केवल पर्यावरण के प्रति दोस्ताना ही नहीं है, बल्कि यह पाक कला है। आप खाने के साथ अपनी प्लेटें और चम्मच भी पकाते हैं।” वास्तव में, एक कप कॉफी के साथ या शायद कॉफी से बने कप के साथ भोजन का समापन करने का बेहतर तरीका क्या है।