उपेक्षित और पुरुष-प्रधान समाज में शोषण की शिकार महिलाओं की कहानियां महज मार्मिकता पैदा करने के लिए नहीं, बल्कि उससे उबरने-उबारने के संघर्षों और कोशिश की दास्तान है। आज यह स्त्री मुक्ति, उसके सशक्तीकरण का दौर है। आज स्त्री की दशा को लेकर राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में सक्रियता है। साहित्य की हर विधा में यह उपस्थित है। उसकी जीवन स्थिति पर कविताएं, गाथाएं रची जा रही हैं। हाल ही में स्त्री सशक्तीकरण पर जोर देने के लिए ओडिशी नृत्य की गुणी और प्रखर नृत्यांगना निताशा नंदा ने नृत्य, गायन और वादन में सिर्फ महिला कलाकारों को जुटाकर नया संदेश दिया। उन्होंने कला के दार्शनिक भाव को नृत्य संरचना में समाहित कर इसे प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की प्रारंभिक प्रस्तुति गुरु-शिष्य परंपरा पर आधारित थी। निताशा की यह नृत्य संरचना पूर्वजा कुमार, आसावरी श्रीवास्तव, नम्रता दुबे, नैथाली नमरेज की सरस संगीत रचना में सजी भक्तिमय प्रस्तुति थी, जो दर्शनीय थी। निताशा ऊर्जावान और प्रतिभावान नृत्यांगना है। उन्होंने लगन से नृत्य के संस्कारों को सुगढ़ता के साथ अपनी कला के साथ संवारा। यह उनके एकल नृत्य में उजागर हुआ। गुरु केलुचरण महापात्र की नृत्य संरचना पारंपरिक बटु नृत्य को विदेशी मूल की पेरिन लेगयोलोन ने सही लीक पर प्रस्तुत किया।
एक जमाना था जब संगीत में पूरी तरह पुरुषों का वर्चस्व था। स्त्रियों की भागीदारी अंशमात्र ही थी। संभ्रांत परिवारों की महिलाएं गायन-नृत्य से कोसों दूर थीं। देश की आजादी के बाद सुनियोजित योजना के तहत देश को स्वर्ण युग में ले जाने का एक अभियान-सा शुरू हुआ। संस्कृति मंत्रालय की स्थापना हुई। कला की अनेक विधाएं चित्रकला, नाटक, संगीत, नृत्य वगैरह के लिए संगीत नाटक अकादमी, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद आदि की स्थापना हुई। इन सांस्कृतिक एजेंसियों के जरिए देश की समृद्ध कला-संस्कृति से अवगत कराने और कला के प्रति चेतना जगाने का काम तेजी से शुरू हुआ। उससे समाज में एक नई लहर पैदा हुई। लोग भारतीय कलाओं की ओर आकर्षित होने लगे। उससे कला के हर क्षेत्र में युवा वर्ग भी जुड़ने लगा। सबसे सुखद यह है कि कला से स्त्रियों ने बढ़-चढ़कर जुड़ना शुरू किया।
मर्दला पर नम्रता दुबे, पूर्वजा कुमार, गायिका आसावरी श्रीवास्तव और बांसुरी पर नैथाली रमिरेज
घर की चारदीवारी में कैद स्त्री को दासता और असमानता से मुक्ति दिलाने के लिए आधुनिक समय में चेतना, समझदारी, जिम्मेदारी और जुझारूपन बढ़ा है और अनेक आंदोलनों से स्त्री समाज की तस्वीर बदली है, नवोन्मेष आया है। आर्थिक स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की प्रेरणा ने महिलाओं को नई उड़ान दी है। आर्थिक, सामाजिक, अकादमिक, विज्ञान, मनोरंजन, खेल हर क्षेत्र में स्त्रियों ने साबित किया है कि वे पुरुषों से किसी भी पैमाने पर कम नहीं हैं। फिर भी, यह मानना होगा कि देश अभी पूरी तरह सामंती और पुरुषवादी सोच से मुक्त नहीं हुआ है, जिसकी शिकार स्त्रियां आज भी हैं। मगर गुजरा दौर बेहद दमघोंटू था। गुजरे दौर में स्त्रियों की पीड़ादाई स्थिति को लेकर कई कहानियां और फिल्में बनीं। उस दौर में कई तरह की नैतिक दिक्कतें महिलाओं के लिए निर्मित कर दी गई थीं। अतिवादी पुरुष प्रधान समाज में मर्यादाओं की लक्ष्मण रेखाएं थीं।
उन्नसवीं सदी में भारत में समाज सुधार आंदोलनों के केंद्र में जब स्त्री आई तो उसके जीवन को नए अर्थ और सपने मिलने लगे। आज की नारी स्वतंत्र पहचान बनाने के लिए समाज से लड़ने या टक्कर लेने से नहीं डरती।
नृत्यांगना निताशा
यही कुछ निताशा की प्रस्तुति में दिखा। निताशा के एकल नृत्य में विख्यात पाश्चात्य संगीत रचनाकार विवालदी के बसंत की संगीत ध्वनियों में मधुमास की प्रस्तुति इस कार्यक्रम की उपलब्धि थी। उन्होंने वेस्टर्न म्यूजिक के आधार पर ओडिशी की लयात्मक गति, हिंदुस्तानी संगीत के तत्वों का समावेश किया और पारंपरिक लीक को कायम रखा। निताशा की गुरु विदुषी शरोन लावेन ने अपने गुरु केलुचरण महापात्र के जयदेव के गीत गोविंद की अष्टपदी में उद्धृत प्रसंग कुरु यदुनंदन को बड़ी संवेदनशीलता और सरसता से नृत्य और अभिनय में प्रस्तुत किया। शृंगार प्रधान इस प्रसंग में नायिका राधा कृष्ण से आग्रह करती है कि तुम मुझे चंदन का लेप लगाकर फूलों आदि से बाल के जूड़े सजा दो। इस शृंगारिक भाव का पूरा रंग शरोन की प्रस्तुति में उभरा।
आखिर में गुरु शरोन लावेन, निताशा नंदा और लेगयोलोन की पारंपरिक मोक्ष की प्रस्तुति भी आनंददायक थी। मधुमास की प्रस्तुति में निताशा ने वेस्टर्न ऑरकेस्ट्रा और भारतीय ओडिशी नृत्य के पारंपरिक वाद्यों का अनूठा संगम था। गायन के साथ सुरुचिपूर्ण नृत्य और हिंदी कविता ‘खग सारे चहके उपवन में’ की प्रस्तुति मनमोहक थी। उसके उपरांत ‘मधुमास सुहाता हदय लुभाता’ की नृत्य और भावाभिनय में निताशा की प्रस्तुति दर्शनीय और रोमांचक थी। सात महिला कलाकारों में गायिका आसावरी श्रीवास्तव, मर्दला वादन में नम्रता दुबे, संगीत रचनाकार पूर्वजा कुमार, बांसुरी वादन में नैथाली रमिरेज ने अपने प्रभावी वादन और संगत में खूब रंग भरे।
(लेखक वरिष्ठ संगीत समीक्षक हैं)