कोटा से सांसद ओम बिरला के लोकसभा का स्पीकर बनने पर परिजन खुश हैं, समर्थक अभिभूत और विरोधी परेशान। यह भारतीय लोकतंत्र की, वह कामयाब कहानी है जो एक स्कूली संसद के अध्यक्ष को लोकसभा स्पीकर के ओहदे तक ले जाने की दास्तां सुनाती है। बिरला ने अपना सियासी सफर कोटा में गुमानपुरा सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल से शुरू किया और छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए। यह वह दौर था, जब कल-कारखाने और बड़े-बड़े उद्योग कोटा को अपनी पहचान देते थे। इन कारखानों के सबब कोटा में मजदूर आंदोलन और नेताओं की सरगर्मी से शहर सुर्खियों में रहता था। ठीक उसी समय बिरला राजनीति के सबक सीख रहे थे। तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यह नौजवान कभी संसद में स्पीकर जैसे ओहदे तक पहुंचेगा।
कोटा से भाजपा विधायक संदीप शर्मा ने आउटलुक से कहा, “बिरला एक निर्मल हृदय के व्यक्ति हैं, जब वे किसी को विपत्ति में देखते हैं, तो मदद के लिए सक्रिय हो जाते हैं।” बिरला तीन बार कोटा से विधायक रहे हैं। वे पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल में संसदीय सचिव भी रहे हैं। हालांकि, उन्हें वैसा तजुर्बा नहीं है जैसा सोलहवीं लोकसभा की स्पीकर सुमित्रा महाजन के पास था। पर उनमें सीखने, समझने और नए को अंगीकार करने की क्षमता है। स्कूली संसद के बाद बिरला ने कॉलेज में छात्र संघ अध्यक्ष के लिए जोर आजमाइश की मगर एक वोट से शिकस्त खा गए। इसके बाद बिरला ने सहकारी क्षेत्र से अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत की और एक संगठन के अध्यक्ष चुने गए। फिर उन्होंने भारतीय जनता युवा मोर्चा में राजस्थान के अध्यक्ष और बाद में उसके राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में अपना दायरा बढ़ाया। भारतीय समाज में यश-कीर्ति बहुत कुछ इनसान की छवि पर निर्भर करती है। इस मामले में बिरला ने अपनी छवि निर्माण का ख्याल रखा और अपने समकालीन नेताओं के मुकाबिल बड़ी लकीर खींचते रहे। कोटा में भाजपा पार्षद गोपाल मंडा वर्ष 2003 से उनके साथ काम कर रहे हैं। वे बिरला को एक ऐसे नेता के रूप में प्रस्तुत करते हैं जो राजनीति से ज्यादा समाज सेवा में सक्रिय रहे हैं। मंडा बताते हैं कि जब बिरला ने फुटपाथ और मलिन बस्तियों में किसी निर्धन को भूखा सोता देखा, तभी संकल्प किया कि उनके क्षेत्र में कोई बिना भोजन नहीं रहेगा। उसी वक्त बिरला ने ‘प्रसादम’ की शुरुआत की। यह एक तरह से ऐसी भोजनशाला है जिसमें कोई भी खाना खा सकता है। उनके एक समर्थक कहते हैं, “बिरला बड़बोले नहीं हैं, उन्हें पता है क्या बोलना है और कब बोलना है।” इसके साथ वे बातों को अपने तक महदूद रखने में माहिर हैं। आप इससे अनुमान लगा सकते हैं कि स्पीकर के लिए उनका नाम 10 दिन से चल रहा था, मगर किसी को खबर नहीं लगने दी। इस दौरान उनका एक परिजन कोटा में किसी मामले में पुलिस से उलझ गया। बिरला को जैसे ही इसका पता चला, उसे तुरंत उलटे पांव लौटने की हिदायत दी और इशारा किया कि ऐसे झमेले में न पड़े, क्योंकि कुछ बड़ा फैसला होने वाला है। साथ ही, वे रिश्ते बनाने और उन्हें निभाने के लिए भी जाने जाते हैं। ऐसा उदाहरण नहीं मिलता जब कोई उनका मित्र मुश्किल में फंसा हो और संकट में बिरला ने उसे अपने हाल पर छोड़ दिया हो। बिरला ने वाणिज्य में स्नातकोत्तर तक तालीम हासिल की है। मगर वाणिज्य से कहीं अधिक वे सियासत के विद्यार्थी हैं। ऐसा नहीं कि सब उनके समर्थक और प्रशंसक ही हैं। पार्टी के अंदर और बाहर उनके आलोचक भी हैं। पार्टी में उनके एक आलोचक कहते हैं, “बिरला अपने भीतर का भाव कभी चेहरे पर नहीं आने देते। लेकिन मौका मिलते ही अपने विरोधी को निपटा देते हैं।” बिरला के विरुद्ध चुनाव लड़ चुके एक नेता ने कहा, “वे अच्छे प्रबंधक हैं।”
जानकारों के अनुसार पहले कभी बिरला उमा भारती के निकट रहे। फिर जब वेंकैया नायडू पार्टी में सक्रिय थे, तो बिरला उनके करीब आ गए और उनके व्यक्तित्व से कुछ कुछ सीखते रहे। बिहार से भाजपा नेता राजीव प्रताप रूडी उनके दोस्तों में शुमार किए जाते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी निकटता गुजरात के दिनों से है। मोदी जब गांधीनगर से दिल्ली आए, यह रिश्ता और मजबूत हुआ और संबंधों से बने भरोसे ने बिरला को इस मुकाम तक पहुंचने में मदद की। हां, पिछले कुछ समय से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से उनका फासला होता गया और अब भी दोनों को परस्पर विरोधी के रूप में देखा जाता है।