मनीष मुंद्रा
पुत्र: बद्री दास मुंद्रा
मेरे जीवन पर पिता का बड़ा प्रभाव रहा। पिता को देखकर ही मैंने व्यापार की समझ विकसित की। पिताजी को मैंने बचपन से व्यापार करते देखा। बहुत बारीकी से उनके हर पहलू, हर पक्ष को समझने का प्रयास किया। पिताजी यह तो सिखाया कि कामयाब होने के लिए क्या करना चाहिए, यह भी सिखाया कि क्या नहीं करना चाहिए।
पिताजी ने कुछ गुरुमंत्र दिए, जिन्हें हमेशा मैंने ध्यान रखा। उन्होंने कहा, जीवन में ऊंचाई हासिल करनी है तो जन्मभूमि का मोह छोड़ कर्मभूमि तलाशनी होगी। वे स्वयं अपना घर, अपनी जमीन छोड़कर राजस्थान से झारखंड पहुंचे थे। वहां शून्य से व्यापार की शुरुआत कर कामयाबी हासिल की।
पिताजी सिखाया कि साहसिक निर्णय लिए बिना बुलंदी नहीं मिलती। किसी आदमी के महान बनने और औसत रह जाने में बड़ा योगदान साहस का होता है। साहस ही महान बनता है। कायर असफल रहता है या औसत जीवन जीता है। जमाना साहसिक निर्णय पर प्रश्न उठाएगा लेकिन भरोसा रखना है। यही भीड़ से अलग कर के सफल बनाता है। खुद में विश्वास रखना है। अपनी आवाज सुननी है। दुनिया के शोर में जो अपनी आवाज सुन लेता है, वह शीर्ष पर पहुंचता है।
पिताजी ने हमेशा स्वरोजगार को बेहतर माना। उनका मानना था कि यदि स्वरोजगार के मार्ग पर चलने की हिम्मत रखते हैं तो सही मायने में अपने पुरुषार्थ का इस्तेमाल करते हैं। दूसरों के लिए काम कर के आप सिर्फ समझौता करते हैं, आदेश का पालन करते हैं, भीड़ का अनुसरण करते हैं। नेतृत्व करने, बदलाव लाने का अवसर स्वरोजगार से ही प्राप्त होता है। मैंने पिताजी की इस बात को मानने का प्रयास किया, मगर संसाधन की कमी के कारण मुझे नौकरी करनी पड़ी। मैं आज भी नौकरी करता हूं। मैंने नौकरी के साथ ही स्वरोजगार स्थापित किया और अपने जीवन को मूल्यवान बनाया है।
मुझे वो घटना याद आ रही है जब मैं अपनी नौकरी जॉइन करने जा रहा था। पिताजी ने मुझसे कहा था कि आखिर क्यों मैं नौकरी के लिए लालायित हूं। जितनी मेरी तनख्वाह थी, उतनी सैलरी पिताजी अपने व्यापार के कर्मचारियों को देते थे। पिताजी ने कहा कि करना है तो कुछ ऐसा करो जिसमें यह एहसास हो कि तुम अपना जीवन किसी महान उद्देश्य को समर्पित कर रहे हो। मुझे उनकी यह बात हमेशा याद रही।
मैंने अपने पिता की गलतियों से भी सीखा। व्यापार में वृद्धि के लिए पिताजी ने कई ऐसे निर्णय लिए जिनसे उन्हें घाटा हुआ। तब मैंने सीखा कि जीवन में और व्यापार में नाप-तौल कर जोखिम लेने चाहिए। केवल अनुमान लगा के जोखिम लेना नुकसान पहुंचा सकता है। साथ ही पिताजी ने पूंजी बचाने की ओर ध्यान नहीं दिया। इस कारण जब जरूरत पड़ी तो हमारे पास पैसा नहीं था। इससे मुझे सीख मिली और मैंने कम उम्र से ही बचत करना सीख लिया। मैंने सही जगह निवेश किया जिसका मुझे भविष्य में बड़ा लाभ हुआ। पिताजी ने मुझे सिखाया कि इंसान को उसकी संपत्ति के अनुसार ही सम्मान मिलता है। यदि आपके पास धन है तो आपका सम्मान, स्वागत, सत्कार होगा। अगर आप निर्धन हैं तो सभी आपसे नजरें चुराएंगे। इसलिए हमें समय की इज्जत करनी चाहिए और हर परिस्थिति में समय को स्वीकार करना चाहिए। पिताजी भाग्य में बहुत विश्वास करते थे। उनका कहना था कि आप नसीब से नहीं जीत सकते। इसलिए कर्म करो, लेकिन भाग्य से लड़ाई करने की मत सोचो।
(दृश्यम फिल्म्स के संस्थापक, फिल्म निर्माता-निर्देशक। गिरिधर झा से बातचीत पर आधारित)