प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्षेत्रीय दलों नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी पर तंज कसा कि इन दलों के भाषणों पर पाकिस्तान में तालियां बजती हैं। प्रधानमंत्री के इस तंज के साथ ही चाहे वह कश्मीर घाटी हो या जम्मू संभाग, वहां पाकिस्तान का मुद्दा चुनावों में हावी हो चुका है। प्रधानमंत्री ने यहां तक कहा कि पाकिस्तान दुआ कर रहा है कि मैं चुनाव हार जाऊं। हालांकि, क्षेत्रीय दल इससे इत्तेफाक नहीं रखते और वे इस बात पर जोर देते हैं कि इस्लामाबाद के साथ बातचीत ही पूरे क्षेत्र में शांति का औजार है। इन दलों ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री के अलावा कोई और पाकिस्तान को चुनावी मुद्दा नहीं बना रहा है। वरिष्ठ पीडीपी नेता नईम अख्तर कहते हैं, “पाकिस्तान और जम्मू-कश्मीर अब राष्ट्रीय चुनावों में दो प्रमुख मुद्दे हैं। मुझे ताज्जुब होता है कि अगर पाकिस्तान और मुसलमान नहीं हों, तो वे क्या करेंगे।” उनका कहना है कि राज्य में सरकार गिरने के बाद से पिछले नौ महीनों से भाजपा जम्मू-कश्मीर की बहुसंख्यक आबादी को हाशिए पर डालने में मशगूल है, जैसा कि उसने देश के 20 करोड़ मुसलमानों को सत्ता-तंत्र से अलग कर दिया है।
अख्तर कहते हैं, “वे जम्मू-कश्मीर में ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जैसा ब्रिटिश अपने साम्राज्य या इटली के लोग लीबिया में करते। यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है। ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर खासतौर पर घाटी को पंचिंग बैग की तरह इस्तेमाल करके देश के बाकी हिस्सों में अपने लोगों को बताना चाहती है कि वह उप-महाद्वीप पर 800 वर्षों के पुराने मुस्लिम शासन का बदला ले रही है। पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का कहना है कि पाकिस्तान केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वजह से चुनावी बहस में है। किसी और की वजह से नहीं। उमर ने आउटलुक को बताया, “मुझे बताइए कि यह किसने शुरू किया। चुनावी रैलियों में पाकिस्तान का मुद्दा कौन उठाता है? प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान को चुनावी मुद्दा बनाया है। असल में बालाकोट के अलावा हमें यह पूछना चाहिए कि पुलवामा की घटना क्यों हुई? पठानकोट क्यों हुआ? उड़ी क्यों हुआ? अगर चौकीदार चौकन्ना था, तो ये हमले क्यों हुए?” वे कहते हैं कि भाजपा और प्रधानमंत्री इसलिए पाकिस्तान को चुनावी मुद्दा बना रहे हैं, क्योंकि उनके पास उपलब्धि के तौर पर दिखाने को कुछ नहीं है। विपक्षी दलों को सुरक्षा चूक के बारे में सवाल पूछने चाहिए, जिसकी वजह से पिछले कुछ वर्षों से भारी संख्या में जवान हताहत हुए हैं।
हालांकि, 28 मार्च को जम्मू के अखनूर क्षेत्र में अपने चुनावी भाषण में प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान और बालाकोट में 26 फरवरी को हवाई हमले और उसके बाद के असर के बारे में विस्तार से जिक्र किया। वहीं, क्षेत्रीय दल पाकिस्तान के साथ बातचीत का आह्वान कर रहे थे। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती सुलह और पड़ोसी देश से बातचीत की वकालत कर रही हैं। उत्तरी कश्मीर में अपने भाषणों के दौरान वे कहती हैं कि अगर बातचीत की प्रक्रिया शुरू नहीं की गई तो स्थिति और खराब हो जाएगी।
प्रधानमंत्री मोदी ने 28 मार्च को कहा कि बालाकोट कार्रवाई से सीमा पार आतंकवादियों और उनके आकाओं में खौफ है और वे अब देश में घुसपैठ करने की कोशिश करने से पहले 100 बार सोचेंगे। सीमावर्ती क्षेत्र अखनूर में मोदी ने कहा कि यहां लोग सबसे पहले दुश्मन (पाकिस्तान) की गोलीबारी का सामना करते हैं। मोदी ने कहा, “मैं आपके साहस को सलाम करता हूं। जब आप 11 अप्रैल को कमल का बटन दबाएंगे, तो आपकी आवाज आतंकवादियों को आतंकित करेगी और उनके बीच दहशत फैलाएगी। हमारी निर्णायक कार्रवाई और नीति के कारण आतंकवादियों और आतंकी समूहों के प्रायोजक पहली बार भय के दौर से गुजर रहे हैं।” उनके भाषण में पाकिस्तान इस कदर हावी था कि उत्तरी कश्मीर के बारामूला-कुपवाड़ा निर्वाचन क्षेत्र के नेशनल कॉन्फ्रेंस के उम्मीदवार अकबर लोन भड़क गए। उन्होंने कथित तौर पर पाकिस्तान के पक्ष में नारे लगाए। इस तरह की पार्टियों के साथ तालमेल के लिए प्रधानमंत्री ने कांग्रेस पर ताना मारा। उन्होंने कहा, “हमारे कदम से कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी की रातों की नींद उड़ गई है।”
पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का कहना है कि भारत को पाकिस्तान और कश्मीर में अलगाववादियों से बात करनी चाहिए, क्योंकि इससे 14 फरवरी को पुलवामा हमले से उत्पन्न तनाव को दूर करने में मदद मिलेगी। वे जमात-ए-इस्लामी और जेकेएलएफ पर चल रही कार्रवाई का भी विरोध करती हैं। वे कहती हैं कि अगर सत्ता में लौटीं तो सबसे पहले उन पर से पाबंदी हटाएंगी।
राज्य के मशहूर राजनीतिक विश्लेषक और द डिस्पैच डॉट इन के संपादक जफर चौधरी कहते हैं, “जम्मूमें मोदी का भाषण पाकिस्तान पर केंद्रित था, क्योंकि पुलवामा के बाद यहां माहौल में पहले से ही इतना अधिक उबाल है कि जब आप पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात करेंगे, तो लोग 2014 के चुनावी वादों को याद नहीं करेंगे। चौधरी का कहना है कि जम्मू में कम से कम तीन समूह (बजरंग दल, डोगरा क्रांति दल और जम्मू वेस्ट असेंबली मूवमेंट) लगभग रोज पाकिस्तान विरोधी प्रदर्शन और रैलियां निकालते हैं तथा पाकिस्तानी झंडे, बैनर और पुतले जलाते हैं।
चौधरी कहते हैं, “मोदी ने करीब 38 मिनट के भाषण में 25 मिनट आतंकवाद और सीमा पार फायरिंग के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार बताने पर लगाया। उन्होंने कांग्रेस या क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस पर हमला बोलने के लिए नीतियों से संबंधित किसी मसले पर नहीं बोला, क्योंकि वे पाकिस्तान के मुद्दे पर ही इन दोनों दलों से निपटते हैं। यह उनका विरोधियों को भारत विरोधी और पाकिस्तान समर्थक करार देने का अनोखा और शक्तिशाली हथियार है। वे आगे कहते हैं, “देश के बाकी हिस्सों में वह कह रहे हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ इस जंग में महागठबंधन उन्हें दोबारा सत्ता में नहीं आने देना चाहता, जबकि जम्मू में उन्होंने कहा कि पाकिस्तान नहीं चाहता कि वह दोबारा चुने जाएं। इसलिए कांग्रेस और क्षेत्रीय विरोधी दल वास्तव में पाकिस्तान के एजेंडे का समर्थन कर रहे हैं। चौधरी कहते हैं, “मुझे लगता है कि संदेश यह है कि यदि आप हमारे साथ नहीं हैं तो पाकिस्तान के साथ हैं।”
राज्य के सीमावर्ती इलाकों में रोज सीमा पार-एलओसी से गोलीबारी होती है और कश्मीर घाटी में पाकिस्तान के साथ सख्ती की जगह मुठभेड़ और हत्याएं लगातार हो रही हैं। ऐसे में लोग अनसुलझे मुद्दों को हल करने के लिए बातचीत की मांग कर रहे हैं। यह देखने वाली बात होगी कि क्या पाकिस्तान पर सख्त रवैए से भाजपा को जम्मू की दो सीटों और लद्दाख की एक सीट को बरकरार रखने में मदद मिलती है या नहीं, क्योंकि पार्टी को जम्मू में कांग्रेस के एकजुट विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस दोनों ने वोटों के विभाजन को रोकने के लिए क्षेत्र में किसी भी उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा। लद्दाख में भाजपा के सांसद ने बीच में ही इस्तीफा दे दिया, क्योंकि वह पार्टी की नीतियों से खुश नहीं थे। ऐसे में अब पार्टी सर्द रेगिस्तानी इलाके में एकजुट विपक्ष का सामना करने जा रही है और उसके लिए सीट बनाए रखना मुश्किल हो गया है।