मार्च 2017 में दूसरी बार पंजाब का मुख्यमंत्री बनने से पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ऐलान किया था कि यह उनकी आखिरी पारी होगी। करीब साढ़े तीन साल के कार्यकाल में अपने ही ऐलान से पलटे कैप्टन अब मार्च 2022 में तीसरी पारी की तैयारी में हैं। लेकिन पिछले चुनाव घोषणा-पत्र की नौ अहम घोषणाएं और नारा “नवें नरोणे पंजाब लई कैप्टन दे नौ नुक्तें” (नए-नकोर पंजाब के लिए कैप्टन के नौ नुक्ते) अब सरकार के गले की फांस बना है। भाजपा के ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ अभियान के बीच पंजाब जैसे अहम राज्य में कांग्रेस की सरकार आगे भी बनी रहे, इसके लिए कांग्रेस आलाकमान का कैप्टन सरकार पर दबाव है कि 2022 के चुनाव से एक साल पहले ये नौ नुक्ते कारगर हों। 2017 के विधानसभा चुनाव अभियान के रणनीतिकार प्रशांत किशोर 2022 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को जीत के नुक्ते देंगे, इसके संकेत मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह अभी से दे रहे हैं। प्रशांत किशोर ने भी कहा है कि पंजाब आकर कैप्टन की मदद करने में उन्हें खुशी होगी। अमरिंदर ने यह तक कहा कि उनकी पार्टी के 55 विधायक 2022 के चुनाव अभियान को प्रशांत किशोर की सलाह पर चलाने के पक्ष में हैं।
2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के नौ नुक्तों में सबसे अहम कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के चार हफ्ते के भीतर सूबे से नशे का खात्मा करना था। नशे के खात्मे की सौंगध साढ़े तीन वर्ष से अधूरी है। किसानों को कर्ज मुक्त करने का नुक्ता भी सिरे नहीं चढ़ पाया। बैंकों और आढ़तियों के कुल करीब 90,000 करोड़ रुपये के कर्ज में से तकरीबन 30,000 करोड़ रुपये की कर्जमाफी के वादे में साढ़े तीन साल में करीब 6000 करोड़ के कर्ज ही माफ हो पाए हैं। ‘पंजाब दा पानी, पंजाब वास्ते’ के मामले में हरियाणा से नहर (एसवाइएल) जल विवाद सुप्रीम कोर्ट में अटका है। राज्य की कुल आबादी में 33 फीसदी एससी आबादी में तमाम बेघरों को घर के लिए 5 मरले (प्रति मरला करीब 30 वर्ग गज) का प्लाट और एक लाख रुपये मदद की दरकार है। ‘घर-घर रोजगार’ से सूबे के युवा बेजार हैं। उन्हें स्मार्टफोन का भी इंतजार है। इस बारे में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा, “सरकार के पास 50 हजार स्मार्टफोन की खेप पहुंच गई है। ये फोन सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 11वीं और 12वीं के विद्यार्थियों को बांटे जाएंगे। उन विद्यार्थियों को प्राथमिकता दी जाएगी जिनके पास स्मार्टफोन नहीं हैं और स्मार्टफोन की मदद से वे ऑनलाइन पढ़ाई जारी रख सकेंगे।”
केबल टीवी, ट्रांसपोर्ट, खनन और शराब माफिया के सफाए पर साढ़े तीन साल से सरकार की सफाई जारी है। अपने ही नौ नुक्तों पर कांग्रेस के सांसदों और विधायकों ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। आउटलुक से बातचीत में राज्यसभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा ने कहा, “कैप्टन ने पंजाब से चार हफ्ते में नशे के खात्मे के लिए सार्वजनिक सभा में गुटका साहिब (श्री गुरुग्रंथ साहिब का पावन लघु रूप) की सौगंध खाई थी, पर साढ़े तीन साल में बढ़े नशे और इससे हुई मौतों की वजह से कैप्टन ने कांग्रेस सरकार की किरकिरी कराई है। हाल ही में जहरीली शराब से ही 110 से अधिक मासूम जिंदगियां छिन गई हैं।” अवैध शराब और ड्रग्स के नेटवर्क को तोड़ने का दावा करने वाली कैप्टन सरकार सवालों के घेरे में है। नवजोत सिद्धू के करीबी कांग्रेस विधायक परगट सिंह ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को कमजोर मुख्यमंत्री बताते हुए आउटलुक से कहा, “जिन मुद्दों को लेकर साढ़े तीन वर्ष पहले हमने सरकार बनाई थी वे क्यों पूरे नहीं हुए? सरकार के साढ़े तीन साल के कार्यकाल पर सवाल खड़े हो रहे हैं, डेढ़ साल बाद चुनाव में जनता को इसका जवाब नेताओं को देना होगा। जिस तरह दस साल अकाली-भाजपा गठबंधन की सरकार चल रही थी, उसी रंग-ढंग में कैप्टन सरकार चल रही है। दोनों में ज्यादा फर्क नहीं है।” कादियां से कांग्रेस विधायक फतेह जंग सिंह बाजवा ने कहा, “मुख्यमंत्री को कुछ अफसरों और करीबियों ने बंधक बना लिया है।” नौ नुक्तों के सवाल पर पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने आउटलुक से कहा, “घोषणा पत्र पांच साल के लिए होता है, सरकार ने कई वादे पूरे किए हैं और बाकी वादे भी अगले डेढ़ साल में पूरे कर दिए जाएंगे।
शिरोमणि अकाली दल के प्रवक्ता और पूर्व कैबिनेट मंत्री दलजीत सिंह चीमा का कहना है, “चार हफ्ते में नशे का खात्मा कांग्रेस के चुनाव घोषणापत्र में सबसे अहम था, लेकिन पंजाब आज तक नशे के इस दंश से मुक्त नहीं हो सका है।” नशे के कारोबार में पाकिस्तानी शह, राजनीतिक संरक्षण और स्थानीय लोगों की संलिप्तता कितनी है, उसे सिर्फ इस बात से समझा जा सकता है कि राज्य में नशे का यह अवैध कारोबार थमने का नाम नहीं ले रहा।
2017 में हुए विधानसभा चुनाव के समय पंजाब में नशे की तस्करी बड़ा मुद्दा चुनावी हो गया तो कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इसके नाम पर खूब रैलियां कीं। पंजाब के राजनीतिक विश्लेषक प्रो. रौणकी राम का कहना है कि पंजाब में 2017 के चुनाव अभियान के दौरान कांग्रेस के राहुल गांधी समेत कैप्टन अमरिंदर सिंह और अन्य नेताओं ने बड़े जोर-शोर से नशे को मुद्दा बनाया था। कांग्रेस ने लोगों के बीच यह संदेश पहुंचाने की कोशिश की कि फौजी रहे अमरिंदर किसी भी कीमत पर नशे के कारोबार को खत्म करके ही दम लेंगे, लेकिन साढ़े तीन साल बाद भी सरकार का दम फूल रहा है।
राज्य में अवैध शराब का कारोबार इसलिए भी फल-फूल रहा है, क्योंकि यहां का आबकारी एक्ट कमजोर है। पंजाब–हरियाणा हाइकोर्ट में मानवाधिकार अधिवक्ता एच.सी. अरोड़ा का कहना है, “आबकारी एक्ट में नशे के कारोबार पर सजा का प्रावधान सिर्फ तीन साल की जेल या एक लाख रुपये का जुर्माना है। यहां जमानत भी आसानी से मिल जाती है। इसी कारण अवैध शराब के धंधे में शामिल लोगों को कानूनी डंडे का डर नहीं होता है। पंजाब में नशे के कारोबार में स्थानीय लोगों से लेकर सीमा सुरक्षाबलों के जवानों तक की मिलीभगत के आरोप हैं। अवैध शराब ही नहीं, सीमा पार से आने वाले ड्रग्स के धंधे में भी बीएसएफ और पंजाब पुलिस के भी अफसर पकड़े जा चुके हैं। अमृतसर, फाजिल्का, गुरदासपुर और फिरोजपुर में सीमा पार से ड्रग्स की सप्लाई के गोरखधंधे में राजनीतिक संरक्षण के अलावा सीमा सुरक्षा ड्यूटी में तैनात अधिकारी और सीमा पर बसने वाले लोगों की मिलीभगत बताई जाती है। पंजाब में बीते दिनों नशे के कारोबार के रास्ते कश्मीर में आतंकी फंडिंग के नेटवर्क का पर्दाफाश भी हो चुका है।
सरकार की इस नाकामी से अपनों के अलावा विपक्षी भाजपा भी एक्शन मोड में आ गई है। हाल ही में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी यहां के कार्यकर्ताओं की वर्चुअल रैली में कहा कि वे 23,000 बूथों पर राज्य के मौजूदा हालात की समीक्षा करें। कार्यकर्ताओं को यह पता लगाने के लिए कहा गया है कि कैसे पंजाब में कांग्रेस सरकार ने केंद्र के भेजे राशन की बंदरबांट कर अपनी राजनीति चमकाई है। जाहिर है, कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए चुनौतियां कई हैं।