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संकट कोरोना का, सुर्खियां चुनाव की

कोरोना संक्रमण पर जल्द ही काबू न किया गया तो लोगों के बढ़ते गुस्से का सत्तारूढ़ गठबंधन को उठाना पड़ सकता है खामियाजा
नीतीश पर तेजस्वी (बीच में) का आरोप कि वे राष्ट्रपति शासन से डर रहे हैं, चिराग पासवान भी अभी चुनाव के खिलाफ

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव शुरू होने में लगभग तीन महीने ही बचे हैं, लेकिन निरंतर बढ़ते कोरोना संक्रमण के कारण इसके नियत समय पर होने पर संशय के बादल मंडरा रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुआई में सत्तारूढ़ एनडीए के प्रमुख घटक दलों- जनता दल-यूनाइटेड (जद-यू)  और भाजपा ने तो चुनाव की तैयारियां ज़ोर-शोर से शुरू भी कर दी हैं, लेकिन राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व में गठित महागठबंधन का मानना है कि अभी जनता के बीच जाने का माकूल समय नहीं है। विपक्ष का कहना है कि ऐसे समय में, जब कोरोनावायरस संक्रमण ने विकराल रूप धारण कर लिया है और राज्य में मृतकों की संख्या दिनोदिन बढ़ती जा रही है, चुनाव करवाना प्रजातंत्र के साथ खिलवाड़ करने जैसा होगा।

अपने पिता लालू प्रसाद के अनुपस्थिति में राजद की कमान संभालने वाले तेजस्वी प्रसाद यादव ने आरोप लगाया है कि नीतीश अपनी कुर्सी बरक़रार रखने के लिए लाशों के ढेर पर चुनाव करवाना चाहते हैं। उनके अनुसार, बिहार कोरोना संक्रमण से सबसे बुरी तरह से ग्रस्त है और स्वास्थ्य विशेषज्ञों को आशंका है कि जांच की संख्या अत्यंत कम होने और लचर स्वास्थ्य व्यवस्था की वजह से आने वाले दिनों में यहां अनगिनत मौतें होंगी। इसलिए यह समय चुनाव के लिए उपयुक्त नहीं है। अगर जरूरत पड़े तो राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।

जुलाई में कोरोना संक्रमण में उछाल आया तो लॉकडाउन एक माह बढ़ा

हाल ही में लिखे एक ब्लॉग में उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री कोरोना की भयावहता की परवाह न करते हुए महज अपने पद के नवीनीकरण की जुगत में लगे हैं। वे कहते हैं, “उन्हें बिहारवासियों के स्वास्थ्य की बिलकुल चिंता नहीं है, अगर चिंता है तो मुख्यमंत्री की कुर्सी की। हम लाशों की ढेर पर चुनाव नहीं चाहते। हम नहीं चाहते कि तीन महीने बाद लोग पोलिंग बूथ की बजाय श्मशान जाएं।”

लेकिन बिहार के उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी तेजस्वी की तुलना ऐसे कमजोर विद्यार्थी से करते हैं जो परीक्षा टालने के बहाने सदैव खोजता रहता है। वे कहते हैं, “विधानसभा चुनाव समय पर हों या टल जाएं, एनडीए चुनाव आयोग के निर्णय का पालन करेगा। हम हर स्थिति के लिए तैयार हैं, लेकिन जैसे कमजोर विद्यार्थी परीक्षा टालने के मुद्दे खोजते हैं, वैसे ही राजद अपनी संभावित हार को देखते हुए चुनाव टालने के बहाने खोज रहा है।”

सुशील मोदी के अनुसार, चुनाव में तीन महीने से ज्यादा का समय है, इसलिए इस मुद्दे पर ज्यादा सोचने के बजाय कोरोना संक्रमण से निपटने पर ध्यान देना चाहिए। एनडीए नेताओं का कहना है कि इस संबंध में चुनाव आयोग का जो भी फैसला होगा, वह सबको मान्य होना होना चाहिए। लेकिन एनडीए का घटक दल, केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी विपक्ष के साथ है। पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान ने चुनाव आयोग को पत्र लिखा है कि कोरोना संक्रमण के कारण न सिर्फ लोगों को खतरा होगा बल्कि मतदान प्रतिशत भी काफी कम होगा। 

चुनाव आयोग के लिए यह फैसला आसान नहीं है। उसने पिछले महीने नियत समय पर चुनाव होने की बात कही थी, लेकिन विपक्ष का कहना है कि परिस्थितियां अब बिलकुल बदल गई हैं। वे डिजिटल माध्यम से भी चुनाव कराने का विरोध कर रहे हैं। फिलहाल, आयोग ने राज्य के प्रमुख राजनैतिक दलों से चुनाव प्रचार के तरीकों को लेकर उनके सुझाव मांगे हैं, ताकि इस संबंध में कोई फैसला किया जा सके। पिछले सप्ताह, राजद समेत नौ विपक्षी दलों ने आयोग को एक ज्ञापन सौंपकर कोरोना संक्रमण की स्थिति को ध्यान में रखकर ही चुनाव संबंधी कोई निर्णय लेने का आग्रह किया था।

इसमें दो मत नहीं कि बिहार में जुलाई में कोरोना संक्रमण की संख्या में अचानक उछाल आया है, जिससे स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई-सी लगती है। चार अगस्त तक यहां संक्रमितों की संख्या 60 हजार तक पहुंच गई। 16 जुलाई से पूरे बिहार में एक महीने के लिए फिर लॉकडाउन लगाया गया, लेकिन स्थिति संभलने का नाम नहीं ले रही है। पटना स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) सहित तमाम राजकीय अस्पताल मरीजों से भरे पड़े हैं। पिछले दिनों बिहार सरकार के गृह विभाग में कार्यरत अवर सचिव उमेश रजक का एम्स के बाहर भर्ती होने का इंतज़ार करने का एक वीडियो वायरल हो गया, जिसने स्थिति की भयावहता को उजागर किया। वीडियो वायरल होने के बाद अस्पताल में उनकी भर्ती तो हो गई लेकिन उन्हें बचाया न जा सका। राज्यभर से ऐसे कई मामले प्रकाश में आए हैं। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए नीतीश सरकार ने पटना के कई निजी अस्पतालों में कोरोना का इलाज करने की पहल की है, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार यह कहना मुश्किल है कि स्थिति आगामी चुनाव तक नियंत्रण में आ जाएगी। 

विपक्ष ने मुख्यमंत्री पर निजी राजनैतिक स्वार्थों के कारण कोरोना संकट की अवहेलना करने का आरोप लगाया है, लेकिन इससे बेअसर, जद-यू और भाजपा ने वर्चुअल रैलियों के साथ प्रचार शुरू कर दिया है। मुख्यमंत्री खुद 7 अगस्त से वर्चुअल चुनाव प्रचार का आगाज करने वाले थे, लेकिन फिलहाल इसे टाल दिया गया है। दूसरी ओर, राजद या इसकी किसी सहयोगी पार्टी ने डिजिटल प्रचार के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। तेजस्वी का कहना है कि अगर भाजपा-जद-यू पूरी तरह आश्वस्त हैं कि बिहार में कोरोना कोई समस्या नहीं है और चुनाव समय पर ही होने चाहिए, तो उन्हें वर्चुअल नहीं, परंपरागत रूप से चुनाव प्रचार करने की पैरवी करनी चाहिए। वे कहते हैं, “मैं नीतीशजी की मनःस्थिति समझ रहा हूं। वे डर रहे हैं कि अगर किसी कारणवश चुनाव टलता है तो राष्ट्रपति शासन में भाजपा उनके साथ वह सब करेगी, जो उन्होंने पिछले वर्षों में भाजपा के साथ किया।”

रांची के अस्पताल में इलाजरत, चारा घोटाला में सजायाफ्ता लालू यादव ने भी नीतीश और जद-यू नेताओं की वर्चुअल रैलियों पर ट्विटर के जरिए निशाना साधा है। राजद प्रमुख ने ट्वीट किया, “बिहार में कोरोना के कारण स्थिति दयनीय, अराजक और विस्फोटक है। स्वास्थ्य व्यवस्था दम तोड़ चुकी है। कोरोना नियंत्रण के लिए सरकार को बाज बनना था लेकिन जद-यू नेता लोगों का शिकार करने के लिए ‘गिद्ध’ बनकर रैली कर रहे हैं। मुख्यमंत्री चार महीने में चार बार भी आवास से बाहर नहीं निकले।”

बिहार में नवंबर के अंतिम सप्ताह में नई सरकार का गठन हो जाना निर्धारित है। राजनैतिक विशेषज्ञों के अनुसार, चुनाव टलने की स्थिति में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है और उस अवधि में सत्ता की बागडोर परोक्ष रूप से भाजपा के हाथों होगी। एनडीए नेता राजद नेताओं के चुनाव टालने के तर्क को हास्यास्पद करार देते हैं। जद-यू के प्रधान राष्ट्रीय महासचिव के.सी. त्यागी कहते हैं कि जब अमेरिका में इस परिस्थिति में चुनाव हो सकते हैं तो बिहार में क्यों नहीं? वे इसे विपक्ष का डर और घबराहट से उपजा कुतर्क करार देते हैं। जवाब में तेजस्वी पूछते हैं कि क्या माननीय मुख्यमंत्री बिहार में अमेरिका से अधिक लोगों को मरवाना चाहते हैं? वे यह भी कहते हैं कि अमेरिका में चुनाव परंपरागत रूप से बैलेट पेपर से होते हैं, न कि ईवीएम से। वैसे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी अब अपने देश में चुनाव स्थगित करने की वकालत करने लगे हैं। राजद नेताओं का यह भी कहना है कि बिहार में मात्र 34 प्रतिशत आबादी के पास स्मार्टफोन हैं, इसलिए डिजिटल माध्यम से चुनाव होने पर बहुत सारे लोग वोट देने के अधिकार से वंचित हो जाएंगे।

राजद की परंपरागत ढंग से चुनाव करने की मांग को ख़ारिज करते हुए सुशील मोदी कहते हैं कि बिहार में चुनावों में धनबल और बाहुबल का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल कांग्रेस और राजद ने ही किया। “जिनके राज में बिहार बूथलूट और चुनावी हिंसा के लिए बदनाम था, वे आज अपने दाग धोना चाहते हैं। ज्ञापन देने वाले बताएं कि बैलेट पेपर के पुराने तरीके से चुनाव करने की मांग क्यों की जा रही है? मतपेटी से लालू का जिन्न निकलने का वह दौर क्या चुनाव की पारदर्शिता का परिणाम था?” 

एनडीए का कहना है कि बिहार चुनाव पर निर्णय लेने का अधिकार सिर्फ चुनाव आयोग को है। भाजपा प्रवक्ता निखिल आनंद का मानना है कि चुनाव आयोग स्वच्छ, स्वतंत्र और सुरक्षित चुनाव कराने को प्रतिबद्ध है। वे कहते हैं, “लोकतंत्र के लिहाज से समय पर चुनाव कराना चुनाव आयोग की चिंता है। कोरोना के दौर में सुरक्षित चुनाव को लेकर चुनाव आयोग काम कर रहा है।”

राजनैतिक विश्लेषकों के अनुसार कोरोना का बढ़ता संकट चुनाव के पूर्व नीतीश सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती के रूप उभरा है। अगर कोरोना पर जल्दी काबू न किया गया, तो लोगों के बढ़ते गुस्से का खामियाजा सत्तारूढ़ गठबंधन को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उठाना पड़ सकता है। फिलहाल सस्पेंस की स्थिति बरकरार है।

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