हमारा आधुनिक समय, समाज और विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का महल जिम्मेदारियों की बुनियाद पर टिका है। इस बुनियाद की जद में है मीडिया, जो कि चौथा स्तंभ है, कार्यपालिका, न्यायपालिका और व्यवस्थापिका के अलावा। रोड़ा, सीमेंट, ईंट, पत्थर, गारे के रूप में हैं यहां के नागरिक और कर्मचारी। इनमें कुछ तो अकुलाहट के मारे बिलबिला रहे हैं, मिमिया रहे हैं और कुछ गधे की तरह रेंक भी रहे हैं। पर रामखेलावन इन सबसे बिलकुल अलग है। इस अद्भुत समय में वह जिम्मेदारियों से भागने वालों में से नहीं है, उसे ऐसा आभास है कि देश का सारा बोझ मेरे कंधों पर ही है, जरा-सा भी हिला नहीं कि देश लड़खड़ाने लगेगा, लोकतंत्र की चूलें हिल जाएंगी।
तो बात ऐसी है कि रामखेलावन समाचार वाचक है। वह आम भारतीय नागरिक का सच्चा हमसफर है और हितैषी भी। वही उनको देश भर की शुभ-अशुभ खबरें देता है। वह कभी किसी के मुंह में निवाला डाल देता है तो किसी के मुंह से छीन भी लेता है।
जैसे ही वह गंभीर आवाज में बोलता है, अब आप रामखेलावन से समाचार सुनिए, लोगों के कान खड़े हो जाते हैं कि पता नहीं कौन-सी मनहूस खबर सुनने को मिल जाए। सरकार की योजनाएं, जनता की भलाई के लिए उठाए गए कदम, भ्रष्टाचार के खुलासे, उससे संबंधित नेताओं की गिरफ्तारियां, मौसम का हाल, उसका पूर्वानुमान, फिल्मी दुनिया की गपशप, खेल की दुनिया का हाल-चाल, मरना-जीना और न जाने कैसी-कैसी खबरें उसे पढ़नी पड़ती हैं। लेकिन वह कभी अपनी जिम्मेदारियों से भागता नहीं। वह बड़ी निष्ठा के साथ लोगों को देश-दुनिया की खबरें सुनाता है।
उसके देखते-ही-देखते न जाने कितनी योजनाएं, लोगों की हसरतें काल के गाल में समा गईं। वह अनेक हुक्मरानों के तुगलकी फरमानों का गवाह है, क्योंकि समाचार और रामखेलावन का चोली-दामन का साथ है।
रामखेलावन रोज नई-नई खबरें सुनाता है। इतिहास गवाह है कि एक से बढ़कर एक नायाब खबरें, अनूठी योजनाएं, कल्याणकारी और लोकहितैषी कल्पनाएं गर्त में समा गईं। पर उसे क्या? उसे सब पता है, कि कब, कहां और क्या हो रहा है? किसके किससे टांके भिड़ रहे हैं, कौन किससे कितना रिश्वत ले रहा है? बादल कब बरसने वाले हैं? कब किस पार्टी का किस में विलय हो रहा है, किसका किसके साथ गठबंधन हो रहा है? ट्रंप कब किसके जाल में फंस रहा है? चीन अगला कौन-सा पैंतरा चलने वाला है, वैसे पैंतरा तो विलायतीराम पांडेय चलते थे जब पहलवानी के अखाड़े में चिलमन से भिड़ते थे। उसे सब पता है। जनता के सपने, उनकी उम्मीदें और आकांक्षाएं कब दफन हो गईं या कब समाधिस्थ हो जाएंगी, उसे यह भी पता है।
उसे यह पता है कि प्रतिभा, संघर्ष और परिश्रम की राह में भाई-भतीजावाद, जातिवाद अथवा क्षेत्रवाद जैसे सुस्थापित अवरोधों और व्यक्ति के संघर्षों को कब और कितना नजरअंदाज करते हुए समाचार पढ़ना है।
रामखेलावन के दिमाग में भली-भांति यह बात बैठ गई है कि व्यवस्था की आत्मा, जनतंत्र का शृंगार और नौकरशाही की आराम कुर्सी का भार उसी के कंधे पर है। जब कई सरकारी महकमे फल-फूल रहे होते हैं और भ्रष्टाचार-कदाचार के मामलों की बाढ़-सी आ जाती है, तो उसके समाचार कक्ष में मानो बहार-सी आ जाती है। उसे पता है कि भ्रष्ट नेताओं, भ्रष्ट नौकरशाहों और मुंहलगे ठेकेदारों और बिचौलियों का किस तरह का गठजोड़ हावी है। कई बार रामखेलावन के मन में आता है कि सब सच-सच पढ़ दे कि लोगों को सच पता चल सके। भंडाभोड़ कर दे उनकी काली करतूतें। पर तभी उसे अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होता है, उसे कइयों की रोजी-रोटी का ख्याल आता है और मन मसोसकर ढक लेता है उनकी झूठी-सच्ची लाज।
बरसात होती है और नहीं होती है तो-सबकी खबरें वह देता है। कई बार तो लगता है जैसे उसे बारिश और बाढ़ से मोहब्बत हो गई है, सुबह-शाम उसकी खबरें वह पढ़ता है। त्रस्त-किसान, पस्त चौपाए, कहीं बाढ़ से बेहाल तो कहीं प्यासी धरती। जेठ की तपती दोपहरी हो या कुनकुनी गुलाबी धूप या फिर हाड़ कंपा देने वाली ठंड। घटते-बढ़ते पारे की भी खबरें देता है रामखेलावन और बाजार तथा सेंसेक्स की भी।
रामखेलावन तो वाचक ठहरा। वह यह जरूर कोशिश करता है कि यदि किसान-मजदूर बरसाती कीचड़ में सन गया है तो उसके एक-आध छीटे कम से कम नेताओं-मंत्रियों और नौकरशाहों पर भी पड़ें, ताकि हालात कुछ तो सुधरें।