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पितृसत्ता को घेरे बिना

अंजू शर्मा की नई किताब सुबह ऐसे आती है की समीक्षा
सुबह ऐसे आती है

अंजू शर्मा का यह दूसरा कहानी संग्रह है। उनकी कहानियों में समाज और समाज के बदलाव की बेचैनी साफ दिखाई पड़ती है। वे समाज के हर तबके की नब्ज पकड़ती हैं और पाठकों को भी उस पर सोचने के लिए विवश कर देती हैं। वह किसी भी कहानी में ऐलानिया कभी यह नहीं कहतीं कि यह खराब है या यह अच्छा। बल्कि वह कहानी के अंत में हमेशा फैसला पाठकों पर छोड़ देती हैं। उनके संग्रह में किसी विशेष उद्देश्य को लेकर लिखी गई कहानियां भी दिखाई नहीं पड़ती हैं। यानी वे विमर्श को सिर्फ इसलिए साथ लेकर नहीं चलतीं कि उन्हें कोई बड़ी बहस खड़ी करनी है।

उनकी कहानियों में स्‍त्री पात्र बहुत आत्मविश्वास के साथ आते हैं और पितृसत्ता को बिना कोसे अपने जीवन के फैसले करने के लिए कोशिश करते हैं। अंजू शर्मा अपनी कहानियों में लंबे-लंबे व्याख्यान देकर उसे उलझाती नहीं हैं, बल्कि वे कहानी की शुरुआत में ही बता देती हैं कि कहानी इसलिए कही जा रही है, क्योंकि यह बहुत जरूरी है। उनकी कहानी ‘उम्मीदों का उदास पतझड़ साल का आखिरी महीना है’ ऐसी कहानी है, जो कविता की तरह बहती चलती है। प्रेम कहानियां यूं तो लेखकों का सबसे प्रिय विषय होता है, लेकिन प्रेम में मनोभावों का चित्रण हो, तो ही कहानी पढ़ने में आनंद आता है। इसे सिर्फ साधारण प्रेम कहानी नहीं माना जा सकता, बल्कि यह कहानी बताती है कि शुरुआत किसी भी मोड़ पर मुमकिन है। 

संग्रह की सबसे सशक्त कहानी, ‘द हैप्पी बर्थडे ऑफ सुमन चौधरी’ है। यह सिर्फ एक लड़की के जन्मदिन मनाने की कहानी नहीं है, बल्कि ये कहानी उस मानसिकता की है, जहां बेटी का जन्म अभिशाप समझा जाता है। एक हरियाणवी परिवार में एक लड़की की जन्मदिन मनाने की इच्छा को लेकर लिखी गई कहानी इतनी रोचक है कि पाठक जल्द से जल्द अंत तक पहुंचना चाहता है। दरअसल, लड़कियों को लेकर बहुत सी रूढ़ियों की बात होती है, लेकिन जन्मदिन मनाने जैसी बात पर कम ही लोगों का ध्यान जाता है। इस कहानी से पता चलता है कि अंजू शर्मा बारीकी से अपने आसपास की बातों पर नजर रखती हैं। उन्होंने इस कहानी में बहुत विश्वसनीय ढंग से हरियाणवी माहौल को गढ़ा है।

संग्रह की दूसरी कहानी, ‘डरना मना है’ की जितनी तारीफ की जाए कम है। गरीबी, मजबूरी और साहस इस कहानी के नायक हैं। अंजू ने इस कहानी के माध्यम से टोने-टोटके की सोच पर बहुत करारी चोट की है। कूड़ा बीन कर अपना और परिवार का पेट पालने वाला बच्चा जब अंधविश्वास को मात देता है, तो पाठक थोड़ी देर उस दृश्य की कल्पना में खो जाता है, जो अंजू ने गढ़ा है। भले ही बच्चा भूख के कारण चौराहे पर टोटके की चीजों को उठाता है, लेकिन अनजाने ही वह चाइल्ड लेबर का बड़ा पाठ पढ़ा जाता है। इन दिनों कश्मीरी पंडितों का मुद्दा बहुत गर्म है, लेकिन अंजू काफी पहले, ‘दर्द कोई फूल नहीं’ लिख चुकी हैं। जबकि ‘नौ बरस बाद’ और ‘मन से मन की दूरी’ ऐसी कहानियां हैं, जो पुरुषों के दृष्टिकोण को बताती हैं। ‘मुस्तकबिल’ ऐसी कहानी है, जो बहुत संवेदनाओं के साथ तीन तलाक के मुद्दे पर बात करती है। इस कहानी में नायिका कहीं से भी अबला या बेचारी नहीं है। कहानी का अंत इसे आम कहानियों से अलग कर देता है। ‘वर्जित फल’, ‘दूर है किनारा’ नई शुरुआत के दौर कहानियां हैं। संग्रह की शीर्षक कहानी, ‘सुबह ऐसे आती है’ एक स्‍त्री के अपने भावी बच्चे के साथ खड़े होने की कहानी है। यह कहानी बताती है कि कोई रिश्ता नाजायज नहीं, और इसलिए बच्चे कभी नाजायज नहीं होते। यह कहानी पितृसत्ता की आंख में आंख डाल कर दुनिया से सवाल करती है। यह दाम्पत्य जीवन को तवज्जो न देने वालों को आईना भी दिखाती है। कहानी की नायिका सुकृता के बहाने अंजू शर्मा समाज से खूब सवाल करती हैं। वे सुकृता को आज की जुझारू नारी के रूप में दिखाती हैं, लेकिन बिना किसी भाषण के। संग्रह हर उस द्वार पर दस्तक देता है, जहां इसकी उपस्थिति जरूरी है।

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