मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद की साहित्यिक मासिक पत्रिका साक्षात्कार का अप्रैल-मई 2019 संयुक्तांक प्रख्यात आलोचक दिवंगत नामवर सिंह पर केंद्रित है। अंक के अतिथि संपादक, कवि नवल शुक्ल संपादकीय में लिखते हैं कि इस अंक की संपन्नता इस अर्थ में है कि नामवर जी की सर्वथा प्रारंभिक डायरी पाठकों तक पहुंच रही है। डायरी के अंश 1945-46 के हैं। अंक में नामवर जी पर दो बातचीत है। यह बातचीत इस अर्थ में अलग है कि दो अलग-अलग लोग नामवर जी के बारे में बातें कर रहे हैं। पहली बातचीत विश्वनाथ त्रिपाठी और राजीव रंजन गिरि तथा अटल तिवारी के बीच है। विश्वनाथ त्रिपाठी कहते हैं कि भाव प्रवणता जितनी नामवर जी की कविताओं में है, उतनी अन्यत्र कम है। उनका यह भी मानना है कि नामवर जी ने आलोचक के रूप में जितनी ख्याति पाई, उतनी ख्याति वे कवि के रूप में भी पा लेते। नामवर जी गाकर कविता पढ़ते थे। उनके कंठ की तुलना त्रिपाठी जी ने ढले हुए सोने से की है। यह नई जानकारी है कि नामवर जी गाते थे। दूसरी बातचीत नामवर जी के बारे में अशोक वाजपेयी और वैभव सिंह के बीच है। अशोक जी बताते हैं कि नामवर सिंह को साहित्य का लोकशिक्षक भी कहा जाना चाहिए। नामवर जी ने संवाद को आलोचना का मूल्य बनाया। अशोक वाजपेयी आगे कहते हैं कि नामवर जी की आलोचना की विशेषता यह है कि उससे साहित्य का रसास्वादन करने में सहायता मिलती है, पर किसी कृति या लेखक विशेष को समझने में वह अनिवार्य या सहायक प्रतीत नहीं होती है।
अरुण कमल लिखते हैं कि नामवर जी का मानना था कि आलोचना की अलग से कोई प्रवृत्ति नहीं होती, जो कविता में प्रवृत्तियों और मूल्यों का संघर्ष है उसी का पक्ष-विपक्ष संघर्ष यहां चलता है। इसलिए आलोचक की सफलता इससे जानी और मापी जाती है कि उसने जिसे चुना, वरण किया या स्थापित किया उसे कितनी व्यापक स्वीकृति मिली। आलोचक और कवि के कुछ युग्म भी गिनाए गए हैं, जो रोचक हैं। जैसे, रामचंद्र शुक्ल -तुलसीदास, हजारीप्रसाद द्विवेदी -कबीर, रामविलास शर्मा-निराला, नामवर सिंह-मुक्तिबोध। ज्योतिष जोशी का आलेख नामवर सिंह की किताब ‘कविता के नए प्रतिमान’ में कविता के नए प्रतिमान की प्रासंगिकता पर है।
मध्य प्रदेश प्रलेस की मुक्तिबोध व्याख्यानमाला के रूप में दिया गया नामवर सिंह का व्याख्यान ‘हमारी साहित्यिक परंपरा और भारतीयता की सही पहचान’ अंक में सम्मिलित है। राधावल्लभ त्रिपाठी का आलेख ‘कविता के नए प्रतिमान अर्थात ‘फलम’ का अलम; होना नामवर सिंह का, उनकी किताब ‘कविता के नए प्रतिमान’ की लंबी समीक्षा है। इन लेखों के अलावा विशेषांक में ओम भारती, संजीव कुमार, सियाराम शर्मा, अवधेश मिश्र, अजय वर्मा, नीरज खरे, आशुतोष, प्रभाकर सिंह, श्रीप्रकाश शुक्ल, सुधीर रंजन सिंह, अमितेश कुमार, नित्यानंद तिवारी, अजय तिवारी के आलेख हैं जो नामवर जी के विविध आयामों पर प्रकाश डालते हैं। खगेन्द्र ठाकुर का कहना है, नामवर जी ने मार्क्सवाद के साथ कम्युनिस्ट पार्टी को आंतरिकता से कबूल किया था।