मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद की साहित्यिक मासिक पत्रिका साक्षात्कार का अप्रैल-मई 2019 संयुक्तांक प्रख्यात आलोचक दिवंगत नामवर सिंह पर केंद्रित है
फिजा में तनाव, बेचैनी और चिंताएं हैं। अर्थव्यवस्थाल का हर क्षेत्र मंदी की चपेट में है। सवाल है कि सबसे कुशल और अच्छा प्रशासन देने का दावा करने वाली सरकार के रहते ये हालात कैसे बने?
आज 'सुशिक्षित' जन लोकतंत्र से ऊब-से गए हैं, आजादी महानायक को समर्पित है
स्वतंत्रता के लिए जरूरी असहमति और अभिव्यक्ति की जगह कम होती जा रही है
संविधान के तहत बनी सरकार चाहती है कि सब उसकी तरह चलें, उसकी ही मानें
नए भारत की झलक आजादी के सपने के पूरा होने पर संदेह पैदा करती है
इतिहास गवाह है कि भारतीय समाज को राज्य की अधिक दखलंदाजी बर्दाश्त
अमीर अगड़ी जाति के लोग हैं, इसलिए गैर-बराबरी बनाए रखना उनकी फितरत
स्वतंत्रताओं का विस्तार ही लोकतंत्र है, पर आजादी के सिमटने से कई सवाल सामने
सिद्धांतहीन राजनीति से लोकतंत्र के शरीर में सामंतवाद की आत्मा प्रवेश कर गई
कुछ नई वर्जनाएं, कुछ नई मनाहियां इन दिनों बिना आवाज किए डर पैदा कर रहीं
हिंसा या बल-प्रयोग का सहारा लेना लोकतंत्रीय तरीकों और भविष्य से विश्वासघात
आज देश की केंद्रीय सत्ता को ही सबसे अधिक अधिकारों की जरूरत लगती है
उपेक्षा के कारण आंदोलन में साहित्यकारों के विस्तृत योगदान को नहीं जाना जा सका
श्रीनगर और अन्य शहरों में नाकेबंदी और संचार नेटवर्क पर पाबंदी जारी, 19 अगस्त को पत्थरबाजी की 50 से अधिक घटनाएं
सुधार अगर सरलीकरण के बजाय सरकारी नियंत्रण बढ़ाने का ही दूसरा नाम है, तो कृषि क्षेत्र का भला इन सुधारों से कैसे होगा?
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की सरकार दो साल पूरे करने वाली है और इसी अवधि में उन्होंने 1971 में अस्तित्व में आए राज्य की सियासत में बड़े नामों को मानो फीका कर दिया है। लोकसभा चुनावों में भारी हार के बाद कांग्रेस तो दिशाहारा दिख रही है, हालांकि वे कहते हैं कि विपक्ष्ाभ को हल्के में नहीं लेते। उनसे संपादक हरवीर सिंह और वरिष्ठ सहायक संपादक हरीश मानव ने राजनीति, अर्थव्यवस्था, राज्य की विशेष स्थिति जैसे तमाम विषयों पर बातचीत की। प्रमुख अंश :
अब अपने देश में होता यह है कि सरकार किसी बात का जवाब नहीं देती और जनता किसी बात पर सवाल नहीं उठाती
सिर्फ 40 फिल्मों में काम करने के बावजूद खय्याम सार्वकालिक महान संगीतकारों में शुमार