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5 जनवरी 2026 · JAN 05 , 2026

भारत-रूसः पुतिन के दौरे का हासिल

रूसी राष्ट्रपति के दौरे का भले कोई बड़ा नतीजा न निकला, लेकिन उससे रिश्ते की मजबूती फिर साबित हुई
संग-साथः हैदराबाद हाउस में भारत यात्रा के दौरान मोदी के साथ पुतिन

हाल में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का भारत दौरा दुनिया भर की राजधानियों में उत्सुकता से देखा गया, जो भू-राजनैतिक उथल-पुथल के समय और टैरिफ को लेकर भारत-अमेरिका संबंधों में गिरावट की पृष्ठभूमि में हुआ। लेकिन ज्‍यादा जरूरी उसका संदेश था। पुतिन का नई दिल्‍ली में गर्मजोशी के साथ स्‍वागत ऐसी साझेदारी का संकेत था जो दबाव के आगे झुकने से इनकार करती है। मॉस्को के लिए यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में स्वीकार्यता की ताकतवर पुष्टि है, खासकर जब अमेरिका और यूरोप ने 2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद से रूस को अलग-थलग करने की कोशिश की है।

भारत का संदेश दुनिया और अपने लोगों को यह याद दिलाना था कि रणनीतिक स्वायत्तता, या जैसा कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर कहते हैं, ‘‘पसंद-नापसंद की आजादी,’’ सिर्फ एक नारा नहीं है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्‍प ने भारत के निर्यात पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया है। उसमें आधा रूस से तेल खरीदने की वजह से है, जिसके बारे में अमेरिका का दावा है कि उससे मॉस्को के यूक्रेन युद्ध को बढ़ावा मिल रहा है। विडंबना यह है कि अमेरिका चाहता है कि भारत सस्‍ता तेल खरीदना बंद कर दे, जबकि अमेरिका खुद रूस से परमाणु ईंधन आयात करना जारी रखे हुए है। यूरोप भी ऐसा ही करता है। फिर, रूस से भारत के मुकाबले चीन ज्‍यादा तेल खरीदता है, लेकिन अमेरिका चीन को निशाना नहीं बनाता है। भारत ने रूस से अपने तेल आयात में काफी कमी की है और आगे जुर्माना वाले टैरिफ के डर से उसे पूरी तरह से बंद भी कर सकता है। साथ ही, भारत ने अमेरिका से तेल आयात बढ़ा दिया है। मतलब यह है कि ट्रम्‍प के टैरिफ का मकसद भारत को निशाना इसलिए बनाना है, ताकि नई दिल्ली को शायद अमेरिका की शर्तों पर ट्रेड डील के लिए मजबूर किया जा सके। भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय ट्रेड डील पर बातचीत जारी है और इस साल उसके पक्का होने की संभावना नहीं है।

टेढ़ी नजरः अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प और चीन के शी जिनपिंग

टेढ़ी नजरः अमे‌रिकी राष्ट्रपति ट्रम्प और चीन के शी जिनपिंग

लेकिन पुतिन-मोदी शिखर वार्ता का संदेश है कि नई दिल्ली ने रूस के साथ अपने पुराने संबंधों को बनाए रखने का सोच-समझकर फैसला किया है, भले ही अमेरिका और बाकी पश्चिमी देशों के साथ रिश्ते गहरे करने पर भी जोर है। खास बात यह है कि अब राष्ट्रपति व्लोदिमिर जेलेंस्की के भारत दौरे की बात हो रही है, हालांकि अभी कुछ भी औपचारिक नहीं है। यह भी आम जानकारी है कि अगले साल गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि यूरोपीय कमीशन की प्रेसिडेंट उर्सुला वॉन डेर लेयेन और यूरोपीय काउंसिल के प्रेसिडेंट एंटोनियो कोस्टा होंगे। जनवरी का यह दौरा भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन के साथ होगा, जिसमें कई साल से लंबे समय से लंबित व्यापार समझौते को फाइनल किया जाएगा।

कुछ लोगों की राय में पुतिन का दौरा महज दिखावा और कम असरदार है। उनकी राय में यह भारत और रूस के बीच पारंपरिक दोस्ती का दिखावा भर है, जो शीत युद्ध के दौर में भी कायम रही थी।

ऑस्ट्रेलिया की ग्रिफिथ यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ गवर्नमेंट ऐंड इंटरनेशनल रिलेशंस के प्रोफेसर इयान हॉल कहते हैं, ‘‘दिलचस्प बात यह है कि इस शिखर बैठक पर बहुत कम टिप्‍पणियां आई हैं। मुझे लगता है कि नरेंद्र मोदी का मॉस्को दौरा अमेरिका और यूरोप में बहुत से लोगों के लिए निर्णायक मोड़ था, जिससे पता चला कि भारत कहां खड़ा है। इस शिखर बैठक से तस्वीरों या महत्वपूर्ण समझौतों के मामले में कुछ भी नया सामने नहीं आया।’’

जयशंकर ने शिखर बैठक के बाद कहा कि भारत-रूस संबंध ‘‘दुनिया के सबसे स्थिर संबंधों में हैं’’, खासकर मॉस्को के चीन, यूरोप और अमेरिका के साथ बदलते संबंधों की तुलना में देखा जाए तो यह विशेष महत्‍व का है। यही बात भारत के रिश्‍तों के बारे में भी कही जा सकती है, लेकिन रूस के साथ यह स्थिरता सबसे अलग दिखती है। साझा बयान में इस रिश्ते को ‘‘भरोसे और आपसी सम्मान पर आधारित वक्‍त की कसौटी पर खरी प्रगतिशील साझेदारी’’ बताया गया और उसे ‘‘वैश्विक शांति और स्थिरता का आधार’’ कहा गया।

पुतिन के दौरे से भारत और रूस दोनों को वैश्विक तनाव के बीच अपनी साझेदारी फिर से मजबूत करने में मदद मिलेगी। इसका नतीजा यह हुआ कि दोनों देशों ने सफलतापूर्वक संकेत दिए, ‘‘भारत ने अमेरिका या यूरोप के साथ अपने संबंधों को खतरे में डाले बिना अपनी रणनीतिक स्वायत्तता पर जोर दिया। न तो भारत और न ही रूस अमेरिका को नाराज करना चाहता है। भारत ने यूक्रेन पर अपना रुख दोहराया है और शांति की वकालत की है।’’ यही बात नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशियन स्टडीज में विश्लेषक और विजिटिंग रिसर्च प्रोफेसर सी. राजा मोहन ने कही है। राजा मोहन कहते हैं, ‘‘जोर अर्थव्यवस्था पर था। भारत अपने व्‍यापार में विविधता लाना चाहता है और रूस भी दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के मौकों का फायदा उठाना चाहता है और व्यापार के लिए चीन से आगे देखना चाहता है।’’

भारत-रूस संबंधों की नींव रक्षा और सुरक्षा सहयोग रहे हैं, लेकिन इस साल के शिखर सम्मेलन में मुख्य फोकस अर्थव्यवस्था पर था। गर्मजोशी भरे राजनैतिक संबंधों और बेहतरीन सरकारी सहयोग के बावजूद आर्थिक संबंध, खासकर निजी निवेश, सबसे कमजोर कड़ी बने हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति पुतिन दोनों ही आर्थिक विकास को तेज करने और 2030 तक 100 अरब डॉलर के व्यापार का लक्ष्य हासिल करने की उम्मीद कर रहे हैं। मोदी को भरोसा था कि यह आंकड़ा तय समय सीमा से काफी पहले हासिल कर लिया जाएगा। राष्ट्रपति पुतिन के साथ आए बड़े बिजनेस डेलिगेशन से आर्थिक सहयोग बढ़ाने में दिलचस्पी साफ दिखती है।

उर्सुला वॉन डेर लेयेन

यूरोपीय कमीशन की प्रेसिडेंट उर्सुला वॉन डेर लेयेन

इस दौरे के दौरान सबसे जरूरी डॉक्यूमेंट मोबिलिटी एग्रीमेंट था, जो भारतीयों को रूस में काम करने की इजाजत देगा। इसका मकसद प्रक्रिया को कानूनी और आसान बनाना है। खासकर निर्माण क्षेत्र कामगारों की मांग ज्‍यादा है। खाद के मामले में साझा उपक्रम एक और जरूरी समझौता है। ब्राजील के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद आयातक देश है। उसका ज्‍यादातर हिस्सा रूस से आता है और साझा उपक्रम भारतीय किसानों के लिए लगातार सप्लाई आश्‍वस्‍त करने में बहुत मददगार होगा।

बैठक के बाद विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने पत्रकारों से कहा, ‘‘मैं कहूंगा कि आर्थिक सहयोग इस खास दौरे का मुख्य लक्ष्‍य और सबसे जरूरी फोकस है। द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने और आर्थिक सहयोग को मजबूत करने के लिए नॉन-टैरिफ बाधाओं और कानूनी रुकावटों को दूर करने की जरूरत है।’’

नई दिल्ली मौजूदा व्यापार असंतुलन को ठीक करने के लिए दवा, कृषि उपज, समुद्री उत्पादों और टेक्सटाइल जैसे सेक्टरों में रूस में अपना निर्यात बढ़ाना चाहता है। इस समय रूस में भारतीय निर्यात सिर्फ 5 अरब डॉलर का है, जबकि भारत लगभग 68 अरब डॉलर का आयात करता है।

दोनों पक्षों ने ज्‍यादा बड़े द्विपक्षीय आर्थिक जुड़ाव के दौर की शुरुआत करने के लिए जरूरी कदमों पर विस्तार से चर्चा की। इरादा साफ था, लेकिन आर्थिक लेन-देन में तेजी आने में कितना समय लगेगा, यह खुला सवाल है। भारत और रूस व्यापार के लिए अपनी राष्ट्रीय मुद्राओं का इस्तेमाल करके पश्चिमी प्रतिबंधों से अपने व्यापार को बचाना चाहते हैं। हालांकि, इस प्रक्रिया को शुरू होने में समय और मेहनत लगेगी।

हालांकि रूस के साथ भारत के संबंध ज्‍यादा भरोसे वाले हैं और भारत में ज्‍यादातर लोग रूस को पक्का दोस्त मानते हैं, लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद से चीन पर मॉस्को की बढ़ती निर्भरता भारतीय नीति बनाने वालों के लिए चिंता का विषय है।

लद्दाख में 2020 की गर्मियों में भारत-चीन सैन्य झड़प के बाद से ठंडे संबंधों में नरमी आने के बावजूद तनाव बना हुआ है और चीन भारत के लिए एक बड़ा खतरा बना हुआ है। इन हालात में रूस, भारत और चीन के बीच तीन-तरफा संबंध बनाना मुश्किल है, जैसा कि मॉस्को चाहता है।

फिर भी, मॉस्को भी चीन पर अपनी ज्‍यादा निर्भरता और यूरेशिया में बीजिंग के बढ़ते आर्थिक और भू-राजनैतिक दबदबे से छुटकारा पाना चाहता है। पुतिन अपना सब कुछ चीन की टोकरी में नहीं डालना चाहते। इसलिए भारत के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ाने पर जोर देना पुतिन की रणनीति का हिस्सा बना हुआ है। मॉस्को के लिए पारंपरिक दोस्त भारत और बीजिंग के साथ अपने संबंधों को संतुलित करना कारगर हो सकता है।

भारत में भी कई लोग पाकिस्तान के साथ रूस की बढ़ती करीबी को लेकर चिंतित हैं, जिससे रूस ने पहले सावधानी से दूरी बनाए रखी थी। पूर्व भारतीय राजनयिक अनिल वाधवा कहते हैं, ‘‘चीन के साथ रूस की दोस्ती रणनीतिक है। पाकिस्तान के साथ उसके संबंध लेन-देन वाले हैं और यह इस क्षेत्र में चीन पर अंकुश रखने की कोशिश है।’’ उन्हें भरोसा है कि भारत-रूस संबंधों का भविष्य ‘‘दोनों पक्षों के सहयोग के नए रास्ते तलाशने के साथ स्थिर रहेगा।’’

अब तक, भारत एक तरफ रूस और दूसरी तरफ अमेरिका तथा यूरोप के बीच संबंधों को संतुलित रखने में सफल रहा है। क्या भारत ऐसा करना जारी रख सकता है? जयशंकर ऐसा ही सोचते हैं और भारत की विदेश नीति को ‘‘बहुपक्षीय’’ बताते हैं, जिसका फोकस ज्‍यादा से ज्‍यादा देशों और वैश्विक समूहों के साथ जुड़कर राष्ट्रीय विकल्पों और हितों को बढ़ाना है। भारत ऐसा करता रहा है और मोदी-पुतिन शिखर बैठक इसी जुड़ाव का हिस्सा था। इस बैठक से शायद कोई बड़ा नतीजा न निकला हो, लेकिन उससे रिश्ते की मजबूती को फिर से पक्का किया है जो कई तूफानों का सामना कर चुका है, जिसमें पूर्व सोवियत संघ का टूटना भी शामिल है। फिर भी, आने वाले दिनों में इसकी नई परीक्षा हो सकती है। यह भी देखना होगा कि भारत कैसे अपने संबंधों में संतुलन बनाए रख पाता है।

 

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