पाकिस्तान की जेलों में 23 साल तक कैद रहे भाई सरबजीत की रिहाई की लड़ाई लड़ने वाली 67 वर्षीय दलबीर कौर नहीं रहीं। उन्हें 25 जून की रात दिल का दौरा पड़ा और वे सदा के लिए खामोश हो गईं। भाई की रिहाई के लिए उन्होंने देश-दुनिया के कई मंचों पर मुहिम छेड़ी। हालांकि जीते-जी सरबजीत गांव नहीं लौट सका। अगस्त 1990 में गलती से पाकिस्तानी सीमा में दाखिल हुए सरबजीत को पाकिस्तान ने जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया। रॉ का एजेंट बताते हुए उन्हें लाहौर, मुल्तान और फैसलाबाद बम धमाकों का आरोपी बनाया गया। अक्टूबर 1991 में पाकिस्तान की अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई। यह दलबीर कौर की मुहिम का ही असर था कि पाकिस्तान सरकार ने 2008 में फांसी की सजा पर अनिश्चितकाल के लिए रोक लगा दी। लेकिन अप्रैल 2013 में लाहौर की कोट लखपत जेल में कैदियों के हमले के छह दिन बाद 49 साल की उम्र में सरबजीत चल बसे।
सरबजीत से मिलने उनकी पत्नी और दो बेटियों के साथ दलबीर दो बार लाहौर की कोट लखपत जेल गईं। सरबजीत की सगी बहन न होने का आरोप लगने के बावजूद उन्होंने अपनी मुहिम जारी रखी। दलबीर के साथ सरबजीत की बेटी को लेकर भी सवाल खड़े हुए। सरबजीत की मौत के बाद पंजाब सरकार ने स्वप्नदीप को डीएसपी की नौकरी दी थी। आरोप लगे कि नौकरी के लिए दलबीर कौर ने अपनी बेटी को सरबजीत की बेटी बता दिया।
सरबजीत के जीवन पर 2016 में फिल्म भी आई थी। दलबीर का किरदार ऐश्वर्या राय, तो सरबजीत सिंह का किरदार रणदीप हुड्डा ने निभाया था। दलबीर को श्रद्धांजलि देने रणदीप उनके गांव गए थे। सरबजीत गलती से पाकिस्तान की सीमा में चले गए थे। सीमा से लगते पंजाब के गांवों के खेतों में चरते पशु कई बार पाकिस्तान की सीमा में घुस जाते हैं। मवेशी वापस लाने के लिए लोग भी अनजाने में सीमा पार कर जाते हैं। इसी का नतीजा है कि कई निर्दोष आज भी वतन वापसी के इंतजार में पाकिस्तानी जेलों में सड़ रहे हैं।