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शहरनामाः गंगा सागर

सारे तीरथ बार बार
यादों में शहर

अंतहीन सागर की कालातीत कहानी

बड़ी पुरानी कहावत है, ‘सारे तीरथ बार-बार, गंगासागर एक बार।’ पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना के काकद्वीप उपखंड में है यह महातीर्थ। गंगासागर में आस्था और विश्वास का मिलन होता है। कोलकाता से लगभग 100 किलोमीटर दूर गंगासागर या सागर द्वीप, मुख्य भूमि से कटा हुआ भूभाग है। चांदी की तरह चमकती रेत, साफ आसमान, गहरे नीले समुद्र और प्रतिष्ठित कपिल भगवान के आश्रम के साथ यहां अद्वितीय धार्मिक माहौल है। यह वह तट है जहां पवित्र गंगा हजारों किलोमीटर की यात्रा के बाद समुद्र से मिलती है।

गतिशील कविता

गंगासागर की तीर्थयात्रा यात्रा ने विद्वानों, लेखकों, तर्कवादियों और अध्यात्मवादियों को सदियों से आकर्षित किया है। गंगासागर मेले की भीड़ सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टियों से मनुष्य की अथक खोज की एक अंतर्दृष्टि है। यहां का पौराणिक महत्व भी कम नहीं है। पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि कपिल मुनि का जन्म ऋषि कर्दम और पृथ्वी के शासक स्वायंभुव मनु की पुत्री देवहुति के घर हुआ था। कर्दम मुनि ने अपने पिता भगवान ब्रह्मा के वचनों का पालन करते हुए समर्पित रूप से कठोर तपस्या की। प्रसन्न होकर विष्णु दिव्य रूप में प्रकट हुए। प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें देवहुति से विवाह करने के लिए कहा और भविष्यवाणी की कि उनकी नौ बेटियां होंगी और समय के साथ पूरी सृष्टि जीवों से भर जाएगी। वह एक अवतार के रूप में जन्म लेंगे और दुनिया को सांख्य दर्शन सिखाएंगे। कपिल मुनि ने प्रारंभिक वर्षों में ही वेदों का ज्ञान प्राप्त कर लिया और सांख्य दर्शन को अमर कर दिया।

मोक्ष का सोपान 

अन्य स्थान लोगों के भ्रमण के लिए होते हैं, लेकिन गंगासागर में लोग मोक्ष की कामना लिए आते हैं। यहां प्रचलित पौराणिक कथा में लोगों की अटूट आस्था है। इसी आस्था को दिल में लिए हुए दुनिया भर से लाखों तीर्थयात्री मोक्ष की तलाश में मकर संक्रांति की कड़ाके की ठंडक में गंगासागर में डुबकी लगाते हैं।

अनुष्ठान का भी उत्सव

गंगासागर मेला प्राचीन अनुष्ठानों का उत्सव है। यहां आकर भक्त रत्नों (पंच-रत्न) को एक पोटली में बांध कर खाड़ी में फेंकते हैं, ताकि वह समुद्र में जाकर मिल जाए। इसके बाद वे कपिल मुनि के मंदिर में पूजा करने और देवता का आशीर्वाद लेने जाते हैं। शाम के समय समुद्र की अथाह गहराई हजारों मिट्टी के दीयों से जगमगा उठती है, जो इस शाश्वत भक्ति को ब्रह्मांडीय ऊंचाइयों तक ले जाती है।

जटाधारियों का जमावड़ा

कुंभ से भी ज्यादा अनोखे रंग यहां पर संक्राति पर्व पर दिखाई देते हैं। जटाओं और अद्भुत वेशभूषा में पहुंचे साधु यहां आकर्षण का केंद्र होते हैं। बड़ी-बड़ी जटाओं को सिर पर लपेटे साधु जहां-तहां धूनी रमाए दिखते हैं। भभूत लपेटे धूसर देह की चमक, सीपियों-कौड़ियों से किया गया शृंगार, फेन-सी उठती ऊंची-ऊंची लहरें, रंग-बिरंगे परिधान में यहां से वहां तक बिखरे लोग किसी शानदार पेंटिंग की तरह दिखाई पड़ते हैं। कुंभ के बाद लगने वाला यह सबसे बड़ा धार्मिक जमावड़ा है।

वैतरणी तक पहुंच

यहां पहुंचना अब भले ही बहुत आसान हो, लेकिन एक वक्त था जब गंगासागर तक पहुंच पाना बहुत कष्टप्रद था। अब तो यहां सभी प्रकार के भौतिक साधन हैं, लेकिन पहले यहां कुछ नहीं हुआ करता था। कोलकाता से काकद्वीप तक पहले लकड़ी की छोटी-छोटी बसें चला करती थीं। देखने में रंग-बिरंगी ये बसें बेहद खूबसूरत लगती थीं। अब लक्जरी बसें, टैक्सी आसानी से मिल जाती हैं। काकद्वीप से स्टीमर या फेरी से गंगासागर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।

शांत समुद्री किनारा

गंगासागर पर्यटन की दृष्टि से भी विकसित हो रहा है। नई पीढ़ी को मोक्ष से ज्यादा यहां का समुद्री किनारा लुभाता है, जो शांत और सुरम्य है। पहले सिर्फ मकर संक्रांति पर यहां भीड़ उमड़ती थी, लेकिन होटल बन जाने से ठहरने की समस्या हल हो गई है। किसी जमाने में वृद्धों की तीर्थस्थली रहा गंगासागर युवाओं का ‘पसंदीदा डेस्टिनेशन’ बनता जा रहा है। काकद्वीप से फेरी में जाना इस पीढ़ी के लोगों को रोमांचकारी लगता है। दूर तक फैला शांत समुद्री तट अभी भी संक्राति पर्व को छोड़ दिया जाए, तो कोलाहल रहित रहता है।

भोजन भट्ट का स्वर्ग

गंगासागर में तो सभी जगह सात्विक और शाकाहारी भोजन मिलता है, लेकिन काकद्वीप में मछली प्रेमी निराश नहीं हो सकते। मछली के तरह-तरह के व्यंजन यहां मिलते हैं। शाकाहारियों के लिए भी भोजन की कमी नहीं है। बांग्ला शैली में बना परवल, केले के फूल की सब्जी, लूची, सरसों में बने आलू का स्वाद लंबे समय तक जबान पर बना रहता है, जो आत्मिक सुख देता है। मोक्ष सिर्फ दैहिक नहीं, आत्मिक भी होना चाहिए।  

राधेश्याम द्विवेदी

(सेवानिवृत्त सूचनाधिकारी)

 

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