गढ़वाल का प्रवेश द्वार
उत्तराखंड यानी देवभूमि! देवभूमि के स्मरण मात्र से रोम-रोम में पवित्रता और सात्विकता का अहसास होने लगता है। उत्तराखंड का ऐसा ही एक शहर है, कोटद्वार। गढ़वाल का प्रवेश द्वार माना जाने वाला यह शहर खोह नदी के किनारे बसा है। इसलिए पहले इसे खोद्वार नाम से भी जाना जाता था। बाद में बदलते-बदलते इसका नाम कोटद्वार हो गया। यह गढ़वाल के छह शहरों में से एक है। समुद्रतल से 454 मीटर की ऊंचाई पर खोह नदी के किनारे बसे इस शहर का वर्णन स्कंद पुराण में कौमुद तीर्थ के रूप में आता है। कौमुद तीर्थ का जैसा वर्णन किया गया है उससे इस स्थान के कौमुद तीर्थ होने के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं।
स्कंद पुराण के 116 अध्याय के श्लोक 6 में कौमुद तीर्थ के जो भी चिन्ह उल्लेखित हैं, वे यहां मिलते हैं। जैसे, आज भी इस जगह के चारों ओर कुमुद यानी बबूल के फूलों की गंध महसूस होती है। मान्यता है कि यहीं पर चंद्रमा ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शंकर को अपनी तपस्या से प्रसन्न किया था। संभव है, कौमुद तीर्थ के कारण भी इस स्थान का नाम कोटद्वार पड़ा होगा। हालांकि ब्रिटिश राज के सरकारी दस्तावेजों में इस स्थान का नाम का कोड्वार है। इतने नाम बदलने के बाद भी कोटद्वार का मूल स्वरूप नहीं बदला है। शांत प्रकृति वाला यह छोटा सा शहर अपने अंदर बहुत सी कहानियां समेटे है।
सिद्धबली धाम की मान्यता
यहां पर स्थित प्रसिद्ध सिद्धबली धाम मंदिर की बहुत मान्यता है। इसकी महत्ता एवं पौराणिकता के विषय में बहुत सी किंवदंतियां हैं। यह सिद्ध पीठ है। यहां हनुमान जी का मंदिर है। इस मंदिर में पूरे वर्ष भंडारा चलता रहता है। मान्यता है कि सच्चे मन से मांगी गई भक्त की मन्नत ईश्वर जरूर पूरी करते हैं। शनिवार और रविवार को यहां बहुत भीड़ होती है। आस-पास के इलाकों से बहुत से भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं। यहां कि एक और खास बात है कि यहां सप्ताह के सातों दिन लंगर चलता है और मंदिर आने वाले श्रद्धालु प्रसाद खाते हैं। बहुत से भक्त लंगर कराने के लिए उत्सुक रहते हैं लेकिन लंगर कराने की बुकिंग में 4 से 5 साल की वेटिंग रहती है।
ऋषि कण्व का आश्रम
सिद्धबली से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर दुगड्डा है। यहां मां दुर्गा का प्रसिद्ध मंदिर है। इसके अलावा यहां एक और पौराणिक स्थान है। ऋषि कण्व का आश्रम। मालिनी नदी के किनारे बसा यह वही आश्रम है, जहां कण्व ऋषि ने शकुंतला का पालन-पोषण किया था। इसी आश्रम में शकुंतला ने अपने पुत्र भारत को जन्म दिया था। कण्व ऋषि की तपोस्थली के कारण कोटद्वार का नाम कण्व नगरी कर दिया गया है। बसंत पंचमी के दिन यहां बड़ा मेला लगता है। सुरम्य होने के बाद भी यह स्थान उपेक्षित है। यहां पर मीठे पानी का सोता है, लेकिन किसी को उसका उद्गम नहीं पता। यहीं पर एक और विश्व प्रसिद्ध स्थान है, सेंट जोसेफ चर्च। यह चर्च एशिया के 10 बड़े गिरिजाघरों में से एक है। इसकी स्थापत्य कला देखते ही बनती है। इस चर्च में रविवार के दिन बहुत भीड़ होती है।
झंडा चौक की जलेबियां
कोटद्वार का झंडा चौक बहुत ही मशहूर है। चौक का लहराता देश का झंडा देशप्रेम का संचार करता है। कोटद्वार का बाजार व्यस्तम बाजारों में से एक है। पहाड़ी लोगों के लिए यह खरीदारी का सबसे बड़ा बाजार है। पहाड़ जाने वाले लोग यहां से खरीददारी करते हुए ऊपर जाते है। कोटद्वार की जलेबियां बहुत मशहूर है। यहां की मीठी और रसीली जलेबियों का स्वाद यदि एकबार लग गया, तो समझिए फिर कहीं और की जलेबी पसंद नहीं आएगी। जलेबी के अलावा भी यहां पर खाने के लिए और एक चीज है, जिसके लिए कोटद्वार प्रसिद्ध है। कोटद्वार आकर भी यदि भंडारी मिष्ठान भंडार की चॉकलेट और सफेद मीठी गोलियों से सजी बाल मिठाई नहीं खाई तो क्या खाया? यह मिठाई पूरे भारत में मशहूर है और दूर-दूर से लोग आकर यह मिठाई अपने परिचितों और स्वजनों के लिए ले जाते हैं।
पहाड़ों की लीची
अगर यहां आप टहलते हुए निकल पड़े तो पास ही के बगीचों के रसीले आम और ताजी लीची खाने को मिल जाएंगी। यहां की लीची का स्वाद भी अनूठा होता है। पहाड़ी सब्जियों की भी यहां भरमार है। तरह-तरह की सब्जियों से सजा बाजार बहुत से लोगों को आकर्षित करता है। गढ़वाल के द्वार जाने के लिए एक बार तो आपको यहां आना ही होगा। आखिरकार यह जाने का द्वार जो है। पास ही में दिल्ली वालों की पहुंच वाला प्रसिद्ध हिल स्टेशन लैंड्सडाउन है। शनिवार-रविवार को यहां आस पास के इलाकों से आने वालो की बहुत भीड़ होती है। पास ही तारकेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है। लैंड्सडाउन तक आएं, तो यहां भी घूमने के लिए जा सकते है। कोटद्वार के निकट कई देवी मंदिर हैं, जहां भक्तों का तांता लगा रहता है।
(आकाशवाणी दिल्ली के समाचार सेवा प्रभाग में कार्यरत)