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शहरनामाः कुक्षी

नूरजहां की प्रसिद्धि से है नाम
यादों में शहर

आराम की जगह

स्थानीय निमाड़ी बोली में कुक्षी का अर्थ है, आरामदायक जगह या ठहरने का स्थान। मध्य प्रदेश में ऐतिहासिक रूप से, यह शहर यात्रियों और व्यापारियों के लिए महत्वपूर्ण पड़ाव था। संभवतः इसी कारण इसका नाम कुक्षी पड़ा, जो यात्रियों को आराम और सुरक्षा प्रदान करता था। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि इस नाम की उत्पत्ति संस्कृत शब्द कुशला से हुई। कुशला का अर्थ है, कल्याण या भलाई। इतिहास बताता है कि यहां बौद्धों का बड़ा प्रभाव था इसलिए यह भी संभव है कि कुशला से ही इस शहर का नाम कुभी हुआ हो। पौराणिक और धार्मिक संदर्भ में भी एक कहानी मिलती है, जिसके अनुसार पुराणों में सूर्यवंश के एक प्रतापी राजा इक्ष्वाकु के एक पुत्र का नाम कुक्षी था। इसके अलावा, स्वायंभुव मनु के ज्येष्ठ पुत्र राजा प्रियव्रत की एक पुत्री का नाम भी कुक्षि बताया गया है। इसका अर्थ होता है, पेट या कोख। कुछ संदर्भों में इसका अर्थ किसी चीज का आंतरिक भाग या गुफा भी होता है। पास ही स्थित बाग गुफाओं के कारण यह नाम भी प्रासंगिक हो सकता है।

विंध्याचल की छांह

यह शहर धार जिले में स्थित महत्वपूर्ण नगर और तहसील मुख्यालय है। समुद्र सतह से लगभग 170 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, यह शहर विंध्याचल पर्वतमाला के पास नर्मदा घाटी क्षेत्र में आता है। यहां की अर्थव्यवस्था और संस्कृति एक-दूसरे के पूरक हैं। कुक्षी की हस्तशिल्प पहचान बहुत मजबूत है। यहां की पारंपरिक बाग प्रिंटिंग पूरे विश्व में मशहूर है। पूरे क्षेत्र में सैकड़ों कारीगर इस शिल्प में लगे हुए हैं। मध्य प्रदेश पर्यटन बोर्ड कारीगरों को बढ़ावा देने के लिए कुक्षी में एक शिल्प ग्राम विकसित करने की योजना बना रहा है। इसमें प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है।

कृषि और जनजातीय बहुलता

कुक्षी का ग्रामीण इलाका मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है। यहां जनजातीय बहुलता है। धार जिले में विशेष रूप से कुक्षी तहसील में भील और भिलाला जैसी अनुसूचित जनजातियों बहुत ज्यादा हैं। इसके आसपास के इलाके में अलीराजपुर, झाबुआ, कट्ठीवाड़ा, खलघाट और मेघनगर आदिवासी बहुल इलाके हैं। कुक्षी धार जिले की सबसे बड़ी तहसील है।

बाग गुफाएं

पास ही बाग की गुफाएं हैं, जो बहुत प्रसिद्ध हैं। ये गुफाएं अपनी प्राचीन बौद्ध संस्कृति और भीतर बने भित्ति चित्रों के लिए जानी जाती हैं। यह सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहर है, जो अपनी अनूठी हस्तकला और भौगोलिक स्थिति के कारण विशेष पहचान रखता है। बाग गुफाएं कुक्षी से लगभग 50 किमी दूर स्थित है। ये गुफाएं 5वीं-6वीं शताब्दी की नौ चट्टानों को काटकर बनाई गई हैं। इन गुफाओं का समूह, अजंता गुफाओं के समकालीन माना जाता है।

मांडू का किला

यहां से पास ही मांडू है, जो लगभग 97 किमी दूर है। यह भी एक ऐतिहासिक शहर है। मालवा क्षेत्र के इस ऐतिहासिक किलेबंद शहर में कई वास्तुकला के अद्भुत नमूने हैं। यहां के जहाज महल, हिंडोला महल, रानी रूपमती महल और बाज बहादुर महल की वास्तुकला देखते ही बनती हैं। 95 किलोमीटर पर धार है, जो अपनी भोजशाला के लिए प्रसिद्ध है। लगभग सौ किलोमीटर पर महेश्वर है, जो नर्मदा नदी के किनारे बसा हुआ है। यह अहिल्याबाई होल्कर की राजधानी था। यहां के घाट बहुत प्रसिद्ध हैं। यहां कई शिव मंदिर हैं। ओंकारेश्वर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। पास ही सरदारपुर वन्यजीव अभयारण्य है। यहां कई प्रवासी पक्षियों की कई प्रजातियां देखी जा सकती हैं। पास ही भड़कला जलप्रपात, मुरडोंगरा जलप्रपात, चोचला जलप्रपात और मान बांध है।

मालवा-निमाड़ का स्वाद

यहां के खानपान में मालवा और निमाड़ दोनों क्षेत्रों का स्वाद समाया हुआ है। कुछ व्यंजनों में आदिवासी संस्कृति का मिश्रण भी मिलता है। साथ ही पड़ोसी राज्यों, जैसे गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान की सीमा यहां से लगती है। इसलिए यहां के स्वाद में बहुत विविधता है। दाल-बाफला यूं तो मालवा का व्यंजन है, लेकिन यहां भी खूब लोकप्रिय है। इसी तरह यहां पानिए बहुत प्रसिद्ध हैं। पानिए विशुद्ध आदिवासी पारंपरिक भोजन है। इसे दाल के साथ खाया जाता है। पानिए मक्के के आटे से बने मोटी रोटी होती है, जिसे रोटले भी कहा जाता है। पानिए को सेकने का तरीका बहुत अलग होता है। इसे पत्ते में लपेटकर सेका जाता है। यहां को लोग पोहा-जलेबी भी बहुत शौक से खाते हैं। यहां हरी भाजियां बहुतायत में मिलती हैं।

नूरजहां की धूम

इस इलाके का ‘नूरजहां’ आम जग प्रसिद्ध है। कट्ठीवाड़ा में पाए जाने वाले आम की प्रजाति ‘नूरजहां’ भारत में उगाए जाने वाले आमों की सबसे उन्नत किस्मों में से एक है। आम तौर एक आम का वजन 3 से 4 किलो तक होता है। कहा जाता है कि इस आम का नाम मुगल महारानी नूरजहां के नाम पर रखा गया था। अपने अनूठे आकार, स्वाद और दुर्लभता के कारण यह एक्पोर्ट हो जाता है। इस आम की मांग का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पेड़ पर लगे फल ही बुक हो जाते हैं। एक आम की कीमत 500 रुपये से लेकर 2,500 रुपये तक होती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि अफगान मूल की यह प्रजाति सैकड़ों साल पहले गुजरात के रास्ते मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल अलीराजपुर जिले के कट्ठीवाड़ा क्षेत्र में पहुंची थी। कुक्षी से कट्ठीवाड़ा बहुत नजदीक है, जिस कारण इसे कुक्षी क्षेत्र का भी आम माना जाता है।

संजय अमलाथे

(आर्किटेक्ट)

 

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