घाट-मंदिरों का खूबसरत शहर
ब्यास नदी के तट पर बसा मंडी, नदी घाटी सभ्यता का उत्कृष्ट उदाहरण है। बाबा भूतनाथ की यह नगरी शिव धाम होने की वजह से हिमाचल की छोटी काशी भी कहलाती है। मंडी शहर अतीत में तिब्बत, लद्दाख के व्यापार का प्रमुख केंद्र था। इस वजह से यह मंडी के रूप में मशहूर हुआ।
सिल्क रूट
ऐतिहासिक सिल्क रूट यारकंद से होशियारपुर का पड़ाव भी मंडी ही रहा है। कहते हैं कि भगवान भोलेनाथ पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती को विवाह कर लाए, तो वे दुल्हन और बारातियों को यहीं एक खुले स्थान पर छोड़ अज्ञात स्थान पर तपस्या करने चले गए। पार्वती के वियोग ग्रस्त होने पर पुरोहित ने यहीं मंडप लगाकर शिवजी का आह्वान किया था। पुरोहित के इस मंडप में तपस्या करने से इस जगह का नाम मंडप पड़ा जो समय की करवट के साथ मांडव्य ऋषि की तपोभूमि मांडव्य नगरी बन गई। संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वान पाणिनी की पुस्तक अष्टध्यायी में मंडवती नगरी दर्ज है।
अलग-अलग संस्कृतियां
यह शहर ईस्वी आठवीं शताब्दी में बौद्ध दार्शनिक और तिब्बत में लामा समुदाय के संस्थापक गुरु पद्मसंभव के आगमन का गवाह रहा है। बौद्ध साहित्य में इस क्षेत्र को जौहर और संस्कृत साहित्य में मंडयिका नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ खुला स्थान और गौशाला होता है। सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी का रक्षा कवच धारण किए यह शहर सांप्रदायिक सदभाव का प्रतीक है। मांडव्य नगरी ने सेन राजवंश के उत्थान और पतन की दास्तान को अपनी आंखों से देखा है। सेन राजाओं ने मंडी में खूबसूरत इमारतों, भवनों, स्मारकों, मंदिरों और पुलों आदि का निर्माण करके अपने समय में वास्तु और शिल्पकला को नई ऊंचाइयां दीं और इसकी भव्यता में चार चांद लगाया।
खूबसूरत वास्तुकला
आधुनिक मंडी नगर की स्थापना राजा अजबर सेन ने 1527 में की थी। उन्होंने ब्यास नदी के दूसरी ओर अपनी नई राजधानी की नींव रखने के साथ ही बाबा भूतनाथ के मंदिर की स्थापना भी की। इससे पहले 12वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में राजा बाण सेन ने भ्यूली में अपनी राजधानी बसाई थी। उनके बेटे कल्याण सेन ने मंडी रियासत की राजधानी बटोहली में बसाई थी, जिसे पुरानी मंडी के नाम से जाना जाता है। मंडी नगर की ऐतिहासिक, धार्मिक और पुरातात्विक महत्व की इमारतों में शामिल त्रिलोकीनाथ और अर्धनारीश्वर मंदिर, भव्य दमदमा महल, ब्यास नदी पर बना विक्टोरिया केसरी पुल, श्यामाकाली टारना मंदिर, सिद्ध काली, सिद्ध गणपति और पंचवक्र जैसे मंदिरों का निर्माण, सेरी चानणी और दरबार हॉल जैसे वास्तुकला के बेजोड़ नमूने सेन राजवंश की ही देन है। रियासत काल में यहां की वास्तुकला परवान चढ़ी।
लोककलाओं का संगम
रियासत काल में मंडी कलम के रंग भी खूब निखरे। यहां का अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव शैव, वैष्णव और लोक का संगम है, जिसमें बाबा भूतनाथ शैव, राज देवता माधो राय वैष्णव और बड़ा देव कमरूनाग लोक देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। यहां के लोक नाट्य बांठड़ा के चुटीले संवाद राजा और प्रजा के बीच तारतम्य कायम रखते थे। इसके अलावा बुढला, डंठणू, लुड्डी, पहिया, चरकटी और मंडयाली गिद्दा नृत्य पीढ़ी दर पीढ़ी लोक जीवन का हिस्सा बनते रहे हैं। मंडी नगर के बीचोबीच स्थित घंटाघर आज भी मंडी की पहचान है। मंडी रियासत का प्राचीन और प्रसिद्ध चौहटा बाजार रियासत का प्रमुख व्यापारिक केंद्र रहा है। मंडी रियासत की आर्थिक समृद्धि का मुख्य आधार द्रंग और गुम्मा की नमक खदानें, सराज और चौहार, सनोर क्षेत्र के वन रहे हैं। इसके अलावा मंडी रियासत के कुछ हिस्सों में सोना, लोहा और कोयला भी निकाला जाता रहा है।
गदर का गवाह
आजादी की लड़ाई में भी मंडी की अहम भूमिका रही है। गदर आंदोलन के दौरान पंजाब के बाद मंडी प्रमुख केंद्र रहा है। मंडी राजघराने की रानी ललिता कुमारी उर्फ रानी खैरगढ़ी पहाड़ की लक्ष्मीबाई के रूप में विख्यात रही हैं। गदर के आंदोलनकारियों की मददगार के रूप में अंग्रेजों ने उन्हें जलावतन कर दिया था। मंडी के प्रथम गदरिये के रूप में स्वामी कृष्णानंद सिंध पहाड़ के गांधी के रूप में मशहूर हुए, तो भाई हिरदाराम लाहौर बम कांड के आरोपी के रूप में कालापानी की सजा भुगतने वाले पहले स्वतंत्रता सेनानी थे। इसके अलावा स्वामी पूर्णनंद, सिद्धू खरवाड़ा, पंडित गौरी प्रसाद आदि मशहूर स्वतंत्रता सेनानी हुए हैं। रियासती अफसरशाही के खिलाफ शोभा राम का बलवा और आजादी के बाद मुजारा आंदोलन जैसी अनेक घटनाएं मंडी शहर से जुड़ी हैं।
संस्कृति और साहित्य का संगम
वर्तमान में मंडी रंगकर्म, लोक संस्कृति और साहित्यिक गतिविधियों के चलते प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में विख्यात है। कई यायावरों और साहित्यकारों के संस्मरणों में मंडी शहर का नाम दर्ज है। समाजशास्त्री पूर्णचंद जोशी ने हिमालयी संस्कृति के साथ मंडी का उल्लेख किया है। महान यायावर लेखक राहुल सांकृत्यायन पांच बार हिमालय की यात्रा पर आए और दो बार उन्होंने मंडी में प्रवास किया। अपने संस्मरणों में उन्होंने इस बात का जिक्र भी किया है। क्रांतिकारी साहित्यकार यशपाल की कहानियों और उपन्यासों में मंडी का वर्णन मिलता है। मशहूर साहित्यकार, संपादक सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय मनाली जाते समय यहां से गुजरे और विक्टोरिया पुल का वर्णन उन्होंने अपने लेख में किया है। नई कहानी के मशहूर कथाकार मोहन राकेश के शब्दों में ‘‘जिस शहर के पास अपनी नदी होती है, वह शहर सबसे सुंदर होता है।’’ सचमुच मंडी के पास अपनी नदी भी है और नदी की लहरों के साथ मंदिरों की घंटियों का संगीत भी, जो जीवन को नई ऊर्जा और स्पंदन प्रदान करता है।

(लेखक)