शिव का मटका
सह्याद्रि की गोद में बसा, तुंग की सरगम में पला और समय की पगडंडियों पर चलता पुराना लेकिन जिंदा शहर किसी को भी लुभा सकता है। कहते हैं कि इस शहर का असली नाम ‘शिवमोग्गा’ है लेकिन बोलते-बोलते इसका अपभ्रंग शिवमोगा हो गया। एक किंवदंती है कि शिव ने तुंग नदी पी ली थी, इसलिए इसका नाम ‘शिव-मुग’ पड़ा, जिसका अर्थ है ‘शिव का चेहरा।” एक कहानी यह है कि इसका नाम सिही-मोगे शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘मीठा बर्तन’। किंवदंती है कि शिव को यह शहर बहुत प्रिय था और उन्होंने ही इसे आकार दिया, जैसे कुम्हार अपने मटके को देता है। यहां पहले कदंब वंश का राज्य था। फिर होयसल की बारी आई। इसके बाद यह विजयनगर साम्राज्य के अधीन चला गया और बाद में मैसूर के वाडियारों ने इस शहर को सहेज कर रखा। यही वजह है कि यहां हर शासक के रंग दिखाई देते हैं।
बोलियां और बाजार
बोलचाल की भाषा यहां कन्नड़ है, अलग लय, मधुरता लिए, धीमी और आत्मीय। फिर भी कहा जा सकता है कि यहां की कोई एक भाषा नहीं है। यहां कन्नड़ के साथ तुलू, मराठी और तेलुगु भी सुनाई पड़ती है। शहर के कुछ हिस्सों में उर्दू के शब्द इस्तेमाल कर अच्छी हिंदी बोलने वालों की भी कमी नहीं है। हर लहजा अलग है, लेकिन सबकी मिठास यहां की भाषा को विभिन्नताओं से भर देती है। शहर की आत्मा तब पूरी तरह सामने आती है जब आप उसके मंदिरों और महलों से होते हुए उसके बाजारों तक पहुंचते हैं।
यहां का बाजार, खासकर दुर्गीगुडी और गांधी बाजार जीवंत चित्रकथा की तरह लगते हैं। हरी सब्जियों से भरे ठेले, तरह-तरह के रंगीन फूल और फूलमालाओं से लदी टोकरियां, भूरे-भूरे नारियलों के ढेर और हर दुकान से आती, ‘सार’, ‘अक्का’ और ‘थम्मा’ की टेर। यह सब देख कर लगता है, जैसे किसी चित्रकार ने कैनवास पर इस बाजार को पहले बनाया होगा और फिर उसमें प्राण फूंक दिए होंगे।
खानपान की विविधता
देखा जाए, तो पूरे दक्षिण भारत में खाने की विविधता है। शिमोगा भी अछूता नहीं है। लेकिन यहां पर खास तौर पर भाप में पकी अक्की रोटी, नीर डोसा, रागी मुडे और सारू के बिना खाना अधूरा है। रागी मुडे रागी के गोले होते हैं, जो खाने में बहुत स्वादिष्ट लगते हैं। सारू यानी सूप, जो दिनचर्या का हिस्सा होता है। यहां की ज्यादातर रसोइयों में रागी की खुशबू, नारियल का रस और इमली की खटास मिलती ही है। नारियल की चटनी के साथे बेसीभिली भात का कोई जवाब नहीं। भोजन में नारियल, तीखी मिर्च और इमली का इस्तेमाल अलग ढंग का स्वाद देता है, जो कहीं और नहीं मिलता। डोसे तो आपने बहुत खाए होंगे, लेकिन यहां का बेन्ने डोसे का स्वाद आजीवन याद रहने वाला होता है। बेन्ने यानी मक्खन। इसमें इतना मक्खन भरा रहता है कि यह प्लेट में खुद ही सरकता चला जाता है। खाने के बाद फिल्टर कॉफी मिल जाए, तो लगता है सुख यही है।
शहर की रग
तुंगभद्रा का किनारा किसी का भी मन मोह सकता है। यहां बहती तुंगभद्रा शहर की जैसे मुख्यधारा है। सुबह-सुबह नदी के किनारे का दृश्य जो एक बार देख ले, वह कभी इस अनुभव को नहीं भूल सकता। इसके किनारे बुजुर्गों की स्मृतियां है, तो युवाओं को मिले संस्कार और सपने भी। शहर के दिल यानी बीच में स्थित है, शंकरमठ। यह एक शांत मंदिर, जो सिर्फ धार्मिक स्थल नहीं है। यहां आकर आंतरिक शांति भी महसूस होती है।
कहानियां बीते दिनों की
शिमोगा से बिलकुल सटा हुआ एक कस्बा है, केलादी। उत्तर में जैसे रानी लक्ष्मीबाई ने अपना रण कौशल दिखाया था, रानी चेन्नम्मा ने भी पूरे साहस से यहां अंग्रेजों के साथ युद्ध लड़ा था। यहां के संग्रहालय में पुरानी तलवारें, शाही परिधान रखे गए हैं, जो उस दौर की याद दिलाते हैं। यहां लोगों के बीच एक कहावत बहुत चलती है, ‘‘यहां की मिट्टी में विद्रोह भी है और विरासत भी।’’
प्रकृति का आनंद
यहां पास ही में है, जोग फॉल्स। यहां जलप्रपात से पानी गिरता नहीं, नाचता है। वहां की धुंध में खड़े रहकर महसूस किया जा सकता है कि अनुभव शब्दों से परे होते हैं। अगर हर वक्त बारिश का आनंद लेना हो, तो अगुम्बे आइए। पूरा रास्ता हरियाली की चादर और कोहरे में दुबका रहता है। यहां सूर्यास्त सिर्फ दृश्य ही नहीं एक कविता है, जो आंखों से पढ़ी जा सकती है। यहां शरावती नदी बहती है, जो इस सुंदरता को कई गुना बढ़ा देती है। यहां एक और जगह है, कुप्पल्ली। यह प्रसिद्ध कवि कुवेम्पु का जन्मस्थान है। उनके घर को अब संग्रहालय बना दिया गया है।
जड़ें छूटती नहीं
शिमोगा में पूरे देश से युवा यहां पढ़ने आते हैं। इसे छोटा एजुकेशन हब कहा जा सकता है। फिर भी स्थानीय युवा तरक्की के लिए बेंगलूरू जैसे बड़े शहर की ओर देखते हैं। हर साल तरक्की की आस लिए युवा बड़े-बड़े शहरों में चले जाते हैं। पर यह सुकून है कि जब भी वे लौटते हैं, आंगन की मिट्टी में वही सुकून पाते हैं। आधुनिकता में वे इस शहर की आत्मा को नहीं भुलाते। ऐसा लगता है, शिमोगा एक शहर की हथेली पर रखी सुबह की ओस की बूंद है। जैसे कोई पुराना दोस्त जो बरसों के लंबे बिछोह के बाद मिला है।
(प्राध्यापक, शिमोगा)