महाराज से नाराजगी
ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया की सक्रियता ने भाजपा के कई सांसदों और वरिष्ठ नेताओं को नाराज कर दिया है। सिंधिया लगातार इस क्षेत्र में दौरे कर रहे हैं और समीक्षा बैठकें ले रहे हैं। मंत्रिमंडल में अपने समर्थक मंत्रियों के माध्यम से क्षेत्र के काम भी करवा रहे हैं। इससे उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं की नाराजगी बढ़ती जा रही है। कोई खुलकर बोल नहीं पा रहा है, किन्तु अंदर मलाल है कि वे लोग इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं और सिंधिया जनता से संवाद कर खुद को प्रतिनिधि के तौर पर पेश कर रहे हैं। कई लोग तो दबी जुबान से हाइकमान तक बात भी पहुंचा चुके हैं।
अध्यक्ष की पूछ-परख
सत्तारूढ़ पार्टी दो लोगों के इर्द-गिर्द घूमती है, यह अब पुरानी बात हो गई। अब तो विपक्ष भी ‘हम दो हमारे दो’ का ताना देने लगा है। 2014 में पार्टी के सत्तारूढ़ होने के बाद संगठन के दफ्तर से लेकर हर मंत्रालय तक, सिर्फ दो व्यक्तियों की तस्वीरें दीवार पर टंगी रहती थीं- प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष की। लेकिन जब पार्टी अध्यक्ष बदले, तब भी तस्वीरें वही रहीं। आखिर किसकी हिम्मत जो पुराने अध्यक्ष की तस्वीर हटाने का साहसिक कदम उठाए। लेकिन जब दक्षिण भारत से नए राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बने, तो उन्होंने एक सर्कुलर जारी किया कि सभी दफ्तर और पार्टी कार्यालयों में प्रधामनंत्री के साथ पार्टी अध्यक्ष के अलावा किसी की भी तस्वीर नहीं होगी। यहां आदेश आया और वहां दीवारों की रंगत बदल गई। वैसे रंगत तो नए बने पार्टी अध्यक्ष की भी बदली। पार्टी दफ्तरों की दीवारों पर तस्वीरों में ही सही, मौजूदगी दर्ज कराना किसे बुरा लगता है!
रिश्तेदार के बहाने
एक प्रकार से साहब का समानांतर शासन था। क्या अधिकारी क्या नेता, सबसे बेहतर रिश्ते और हर कोई उपकृत होना चाहता था। बड़े ठेके का रास्ता यहीं से आगे बढ़ता था। इनकी कंस्ट्रक्शन कंपनी से लेकर प्राइम इलाके में बना प्रतिष्ठित स्कूल भी है। अभी आयकर वालों ने हाथ डाला तो कोई 100 करोड़ रुपये की बेनामी संपत्ति का पता चला। छोटे भाई भी फूल वाली पार्टी में सक्रिय रूप से जुड़े रहे और पिछली भाजपा की सरकार में एक प्राधिकरण के प्रमुख थे। वह भी छापे के दायरे में आए। खैर, दिल्ली वाली टीम ने धावा बोला तो लोगों की समझ में नहीं आया कि माजरा क्या है। इनके बहनोई केंद्र में प्रभावशाली मंत्री हैं। चर्चा यह भी है कि दिल्ली वाली एजेंसी के रडार पर ये नहीं केंद्रीय मंत्री हैं। उनके पर कतरे जा रहे हैं।
मैडम का अंदाज
मैडम राजघराने से हैं, विधायक भी हैं। पति भी विधायक थे। राजघराने से आने के बावजूद जो महत्व चाहती हैं वह नहीं मिल रहा है। नतीजा है कि सोशल मीडिया पर अपने ही पाले में गोल करने में लगी रहती हैं। जनता का मुद्दा बताकर अक्सर झारखंड सरकार की सोशल मीडिया पर खिंचाई करती रहती हैं। अब मैडम ने नया पैंतरा शुरू किया है। वे प्रदेश कार्यालय में धमक जाती हैं और उनका जनता दरबार शुरू हो जाता है। बीडीओ, सीओ से लेकर दूसरे अधिकारियों तक को तत्काल फोन लगाकर कार्रवाई के निर्देश देती रहती हैं। सब अचरज में हैं।
क्लीन चिट का राज
हाल में एक वरिष्ठ आइपीएस को भ्रष्टाचार के मामले में क्लीनचिट दी गई है। कुछ समय पहले तथाकथित एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें उनको पुलिस अधिकारियों से लिफाफा लेते हुए दिखाया गया था। इसके बाद, इस वीडियो के आधार पर उन्हें निलंबित कर जांच बैठाई गई। जांच एजेंसी ने पाया कि वे लिफाफे में पैसे नहीं, बल्कि रिपोर्ट ले रहे थे और उन्हें क्लीन चिट दे दी। सब आश्चर्य में हैं। अनुमान है कि ऊपर से निर्देश के बाद उनके बचाव का रास्ता निकला।
ट्वीट पड़ा भारी
लग रहा है, इन पूर्व आइपीएस महिला अधिकारी को राजनीति रास नहीं आ रही है। पहले दिल्ली में मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार बनीं तो चुनाव नहीं जीत पाईं। अब उपराज्यपाल का पद भी रातोरात छिन गया। कारण उनके कुछ ट्वीट्स बताए जा रहे हैं जो सत्ता में बैठे कुछ लोगों को नागवार गुजरा है। इसी के बाद उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया गया। अपने कड़क अंदाज के कारण सुर्खियों में रहने वाली मोहतरमा अब आगे क्या कदम उठाएंगी, इसी का सबको इंतजार है।