करीब 14 साल की प्रियांशी घर से 1,100 किलोमीटर दूर कोटा के एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में अपनी पढ़ाई में इतने जतन से लगी है कि उसके पास अपनी सहेलियों को याद करने का वक्त ही नहीं है। पटना की प्रियांशी कहती है कि वह एक साल से कोटा में रह रही है और उसे अभी यहां तीन साल और रहना है क्योंकि हर हाल में मेडिकल कोर्स में दाखिले के लिए नीट परीक्षा में अच्छी रैंकिंग लानी है। उसे भरोसा है कि कोटा में चार साल की मेहनत उसे प्रतिस्पर्धा में आगे रखकर जीवन संवार देगी। 50 वर्षीय अनीता कुमारी भी अपने घर से 1,600 किलोमीटर दूर कोटा में ही रह रही हैं। उनकी बेटी स्वाति इंजीनियरिंग की तैयारी कर रही है। वह कहती हैं कि बेटी को पढ़ाई में कोई व्यवधान न हो और बिना चिंता और परेशानी के वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे सके, इसी वजह से घर छोड़कर कोटा में रह रही हैं। उन्हें भी यहां तीन साल रहना है।
दिनों-दिन कड़ी होती प्रवेश परीक्षाओं में सीट पक्की करने के मकसद से कोटा आने वाले लाखों छात्र-छात्राओं के लिए यह उम्मीदों का शहर बन गया है। इससे शहर की तस्वीर ही बदल गई। कभी कोटा की पहचान स्टोन, डोरिया साड़ी, पावर और सीमेंट प्लांटों के लिए थी लेकिन आज वह कोचिंग की राजधानी बन गया है। कोचिंग संस्थानों की अहमियत इससे दिखती है कि 12 लाख की आबादी में छात्र-छात्राओं और उनके परिजनों की आबादी एक चौथाई से भी ज्यादा है। कोचिंग फीस और रहने के दूसरे खर्चे जोड़ें तो हर साल कोटा की अर्थव्यवस्था में इसका 4,000 करोड़ रुपये का योगदान होता है। कोचिंग संस्थानों के चलते पेइंग गेस्ट, रेंटल फ्लैट और भोजनालयों का भी कारोबार खूब चलता है।
ड्राइवर की नौकरी छोड़कर दो साल पहले होस्टल शुरू करने वाले कोटा के नितिन कुमार गुप्ता का कहना है कि लीज पर बिल्डिंग लेकर होस्टल शुरू करने का उनका फैसला सही साबित हुआ। आज वह चार होस्टल चला रहे हैं। टिफिन सर्विस चलाने वाले मोहित मिश्रा ने चार साल पहले सिर्फ 10 टिफिन से काम शुरू किया था, आज वह रोजाना 300-400 टिफिन भेजते हैं। इस काम के लिए उन्होंने 10 लोगों को रखा है।
कुछ साल पहले तक माता-पिता बच्चों को 11वीं या 12वीं क्लास से इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की तैयारी करवाते थे, लेकिन अब वे नौवीं और छठी क्लास से ही कोचिंग में भेजने लगे हैं। कई माता-पिता भी अपने कारोबार और नौकरी से अवकाश लेकर बच्चों के साथ कोटा में रहने लगे हैं ताकि वे बच्चों का ख्याल रख सकें। 20 फीसदी छात्र-छात्राओं के साथ उनके परिजन रह रहे हैं। लंबी कोचिंग और माता-पिता के साथ रहने के ट्रेंड से कोटा और कोचिंग संस्थानों को जबर्दस्त फायदा मिला है।
कोटा में उद्योग सुस्त पड़े तो कोचिंग ऐसा अवसर बनकर आया जिससे यह शहर कोचिंग राजधानी बन गया। एलन करिअर इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर राजेश माहेश्वरी कहते हैं कि उन्होंने नब्बे के दशक में जब कोचिंग सेंटर की शुरुआत की तो आधा दर्जन छात्र भी नहीं थे, लेकिन प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थानों में चयन होने के साथ लोकप्रियता बढ़ने से छात्रों की संख्या बढ़ने लगी। आज पूरे देश से छात्र कोचिंग लेने के लिए कोटा आते हैं। छात्र यहां इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षा ‘नीट’ की तैयारी करते हैं। कोटा के संस्थान बेहतर चयन अनुपात के लिए प्रसिद्ध हैं। राष्ट्रीय स्तर पर आइआइटी में चयन का अनुपात एक फीसदी रहता है जबकि कोटा में अनुपात चार-पांच फीसदी है। नीट परीक्षा में यह 15-20 फीसदी तक चला जाता है। छात्रों की संख्या बढ़ने के साथ आत्महत्या की बढ़ती घटनाएं यहां धब्बे की तरह थीं, लेकिन मोटिवेशनल सेशन और काउंसिलिंग के बाद इसमें सुधार आया है। एलन में मनोवैज्ञानिक डॉ. गौरी सेठी का कहना है कि निराशा रोकने के लिए वह और उनकी टीम छात्रों से बात करती रहती है।
कोटा के और विकास के लिए कोचिंग संस्थानों की पहली मांग एयरपोर्ट और प्रमुख शहरों के लिए नियमित उड़ानें शुरू करने की है। कुछ कोचिंग संस्थान कोटा को देश का प्रमुख एजूकेशन हब बनाने के लिए यहां यूनिवर्सिटी स्थापित करने की सोच रहे हैं। वैसे कोटा को अपने सांसद ओम बिरला से बहुत उम्मीदें हैं, खासतौर पर तब जब वह लोकसभा स्पीकर के महत्वपूर्ण पद पर पहुंच गए हैं।