भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र के निजीकरण की कदमताल तेज हो गई है। 1962 में केंद्र सरकार ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना की और विक्रम साराभाई को उसका नेतृत्व सौंपा, तब मुख्य लक्ष्य अंतरिक्ष अनुसंधान में प्रगति थी। 2008 में चंद्रमा तक पहुंचने के प्रयास ने इसरो को वैश्विक स्तर पर अग्रणी अंतरिक्ष एजेंसियों की कतार में ला खड़ा किया। इससे पहले इसरो को सबसे भरोसेमंद प्रक्षेपण यान ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) के लिए जाना जाता था। यह पीएसएलवी देश के पहले उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएलवी) और उन्नत उपग्रह प्रक्षेपण यान (एएसएलवी) का परिष्कृत संस्करण था। उस दौरान डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्रबंध मुखिया थे। यही पीएसएलवी बाद में 11-मंजिला विशालकाय प्रक्षेपण यान के रूप में विकसित हुआ।
चंद्रयान-1 की सफलता के बाद इसरो ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मंगल ग्रह तक पहुंचने से लेकर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतरने तक, इसरो ने एक के बाद एक ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल कीं, लेकिन निजी खिलाड़ियों के लिए इसमें कोई जगह नहीं थी। यह व्यवस्था एक तरह से ‘आयरन कर्टेन’ की तरह थी, जिसमें इसरो के अनुसंधान और अंतरिक्ष अभियानों में बाहरी दखल की कोई गुंजाइश नहीं थी।
अप्रैल 2023 में केंद्र सरकार ने ‘भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023’ की घोषणा की, जिसके तहत एक नए संगठन ‘भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र’ (इन-स्पेस) की स्थापना की गई। इन-स्पेस ऐसा मंच है, जो इसरो और निजी क्षेत्र (गैर-सरकारी संस्थाएं) के बीच समन्वय स्थापित करेगा। इसके प्रमुख डॉ. पी.के. गोयनका हैं, जो भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर से पढ़े हैं और कॉर्नेल विश्वविद्यालय से शोध उपाधि करने के बाद महिंद्रा ऐंड महिंद्रा के प्रबंध निदेशक रह चुके हैं। उन्हें नवोद्यमों और निजी कंपनियों को इसरो की सुविधाओं का उपयोग कर अंतरिक्ष अभियानों को साकार करने में पूरी छूट दी गई है।
इन-स्पेस की स्थापना से पहले भारतीय निजी खिलाड़ियों और छात्रों की अंतरिक्ष क्षेत्र में भागीदारी बेहद सीमित थी। आंकड़ों के मुताबिक, इसरो अब तक 34 देशों के 432 उपग्रह प्रक्षेपित कर चुका है। 125 अंतरिक्ष अभियानों में इसरो ने कई भारतीय और विदेशी उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजा, लेकिन इसमें सिर्फ 18 उपग्रह भारतीय छात्रों और निजी कंपनियों के थे। कुल मिलाकर, इसरो ने अब तक लगभग 557 उपग्रहों को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया है, लेकिन इनमें महाविद्यालयों या विश्वविद्यालयों के छात्रों द्वारा बनाए गए उपग्रहों की संख्या कम थी।
भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 अब इस स्थिति को बदलने जा रही है। यह नीति महाविद्यालय के छात्रों को अपनी पढ़ाई के दौरान ही छोटे उपग्रह बनाने और उन्हें अंतरिक्ष में भेजने का अवसर देगी। नए नवोद्यमों के लिए यह एक सुनहरा अवसर होगा, जिससे वे अपने स्वयं के उपग्रह बना सकेंगे। इन-स्पेस सिर्फ उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की अनुमति ही नहीं देगा, बल्कि नए नवोद्यमों को इसरो की सुविधाओं का उपयोग करने और वास्तविक परियोजनाओं के माध्यम से सीखने का अवसर भी देगा। हाल ही में सरकार ने 1,000 करोड़ रुपये का कोष भी घोषित किया है, जो युवा उद्यमियों और निजी कंपनियों के अंतरिक्ष से जुड़े सपनों को साकार करने में मदद करेगा।
इन-स्पेस की स्थापना के बाद महज एक साल में ही इसके प्रभावशाली नतीजे सामने आने लगे हैं। आंकड़ों के अनुसार, अब तक 5,600 उपयोगकर्ता इसके पोर्टल पर पंजीकृत हो चुके हैं, 68 सहमति-पत्र साइन किए जा चुके हैं और 47 अधिकृत स्वीकृतियां जारी की गई हैं। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि युवा और निजी कंपनियां इस पहल के प्रति जबरदस्त उत्साह दिखा रहे हैं।
भारत में अंतरिक्ष नवोद्यमों की तेजी से बढ़ती संख्या इस बदलाव को और स्पष्ट करती है। हाल ही में दो युवा महाविद्यालय छात्र एक वैश्विक प्रतियोगिता जीतकर अपने उपग्रह निर्माण नवोद्यम के लिए 1,000 करोड़ रुपये की निधि हासिल करने में सफल रहे। इसी तरह, एक अन्य समूह ने अपनी स्थायी नौकरियां छोड़कर प्रक्षेपण यान बनाने का जोखिम उठाया। इनमें से एक इसरो से जुड़ा था, लेकिन उसने अपनी सुरक्षित नौकरी छोड़कर निजी क्षेत्र में कदम रखा। इस समूह ने शुरुआती सफलता हासिल करते हुए लगभग 100 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंचने में सफलता प्राप्त की और अब वे निम्न-पृथ्वी कक्षा (500 किलोमीटर) तक पहुंचने की तैयारी कर रहे हैं।
पारंपरिक रूप से बेंगलूरू भारतीय नवोद्यमों का केंद्र रहा है, लेकिन अब हैदराबाद भी तेजी से एक प्रमुख अंतरिक्ष क्षेत्र के रूप में उभर रहा है। वर्तमान में हैदराबाद में लगभग आधा दर्जन नवोद्यम सक्रिय रूप से उपग्रह निर्माण और अन्य अंतरिक्ष गतिविधियों में संलग्न हैं। इनमें से एक प्रमुख नवोद्यम का नेतृत्व एक ऐसे युवा उद्यमी द्वारा किया जा रहा है, जिसने पहले 300 से अधिक छोटे उपग्रह बनाए हैं। यह कंपनी अब 30 किलोग्राम से 150 किलोग्राम तक के घन उपग्रह बनाने की योजना बना रही है।
हैदराबाद में पहले से ही कई पुरानी कंपनियां मौजूद हैं, जो इसरो को आवश्यक तकनीकी समाधान और उपकरण प्रदान करती है। इन कंपनियों ने करोड़ों रुपये का निवेश कर इसरो के लिए अत्याधुनिक परीक्षण सुविधाएं और अंतरिक्ष उद्योग में प्रशिक्षित युवाओं की एक बड़ी टीम तैयार की है। भारत की अंतरिक्ष प्रगति इतनी प्रभावशाली रही है कि अब न केवल अमेरिका की राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (नासा) इसरो के साथ सहयोग करने को तैयार है, बल्कि जर्मनी जैसे कुछ देश भी अपनी निजी कंपनियों को भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र के साथ साझेदारी करने की अनुमति दे रहे हैं।
(लेखक पूर्व नासा और इसरो वैज्ञानिक हैं। चंद्रयान 1 की वैज्ञानिक टीम में रहे हैं)