आर्सेनल फुटबॉल टीम के प्रबंधक रहे लीजेंडरी आर्सीन वेंगर ने कहा था, “यदि आपको यह विश्वास नहीं कि आप ऐसा कर सकते हैं, तो आप वह काम कभी नहीं कर पाएंगे।” फरवरी 2001 में पुणे में दलीप ट्रॉफी मैच से पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुझसे पूछा गया था, क्या भारत स्टीव वॉ की आस्ट्रेलियाई टीम को हरा सकता है, जो 15 टेस्ट जीत के साथ अजेय दिख रही थी। मैंने कहा, “मैं देखना चाहता हूं कि ऑस्ट्रेलियाई दबाव में कैसा प्रदर्शन करते हैं।” मुझे यकीन था कि अगर हम दबाव बनाने में कामयाब रहे तो हम जीत सकते हैं। यह सही है कि ऑस्ट्रेलिया की जीत का सिलसिला भारत में भी जारी था। तीन टेस्ट मैचों की उस सीरीज का पहला मैच मुंबई के वानखेड़े में खेला गया था, जिसे हमने 10 विकेट से गंवा दिया।
भारतीय टीम उस समय परिवर्तन के दौर से गुजर रही थी। सौरव गांगुली कप्तान बनाए गए थे, जॉन राइट नए कोच थे, जवागल श्रीनाथ और अनिल कुंबले उपलब्ध नहीं थे, जहीर खान कच्चे थे और कई युवा चोटिल थे। वह बहुत चुनौतीपूर्ण समय था।
ईडेन गार्डन्स में ऑस्ट्रेलिया ने जैसे वानखेड़े के खेल को आगे बढ़ाया। स्टीव वॉ ने टॉस जीत कर बल्लेबाजी चुनी। हेडन ने स्लेटर के साथ मिलकर ऑस्ट्रेलियाई टीम को शानदार शुरुआत दिलाई। जब विरोधी निर्मम हो, तो आधे–अधूरे अवसरों को नतीजे में बदल कर ही लड़ाई में बने रहा जा सकता है। जैसा सब्सटीट्यूट फील्डर हेमांग बदानी ने किया। यह प्रयास हमने पहले दिन ही शुरू कर दिया। हरभजन सिंह की शानदार ऑफ स्पिन गेंदों को ऑस्ट्रेलियाई समझ नहीं पा रहे थे। हेडन के 97 पर आउट होने के बाद भज्जी ने हैट्रिक (पोंटिंग, गिलक्रिस्ट और वार्न) ली। उन पर तो जैसे भूत सवार था। उसके बाद मैंने उन्हें पूरे करिअर में कभी वैसी गेंदबाजी करते नहीं देखा। हरभजन एक छोर से गेंदे डालते रहे और दूसरे छोर से नए गेंदबाज राहुल सांघवी, नीलेश कुलकर्णी और साइराज बहुतुले बदल-बदल कर आते रहे।
हम अपनी पहली पारी की बल्लेबाजी से निराश थे। तीसरे दिन, एक तरफ हमें अपनी स्थिति पर अफसोस हो रहा था, तो दूसरी तरफ यह उम्मीद भी थी कि कुछ भी संभव है। और वह चौथे दिन हुआ। फॉलोऑन खेलने के लिए हमने बल्लेबाजी क्रम में बदलाव किया। वी.वी.एस. लक्ष्मण तीसरे क्रम पर खेलने आए, क्योंकि वे फॉर्म में थे और पहली पारी में आउट होने वाले आखिरी बल्लेबाज थे। उन्होंने 59 रन बनाए थे। मेरी राय में तीसरे नंबर के लिए राहुल द्रविड़ सर्वश्रेष्ठ थे। दक्षिण अफ्रीका में जब मैं कप्तान था, तब उन्हें छठे नंबर से तीसरे नंबर पर लेकर आया था। ईडेन में हमें पलटवार के लिए लक्ष्मण की जरूरत थी। उन्हें बाउंड्री लगा कर स्कोर बढ़ाना पसंद है, जबकि द्रविड़ सबसे भरोसेमंद ‘दीवार’ थे। लक्ष्मण (281) और राहुल (180) के बीच 376 रनों की साझेदारी ने हमें खेल में वापस ला दिया। ये दोनों क्रीज पर अपना सर्वश्रेष्ठ खेल दिखा रहे थे, तो दूसरी तरफ ड्रेसिंग रूम का माहौल तनावपूर्ण था। उस उमस भरे दिन में मैं अपनी जगह से एक इंच भी नहीं हिला। हर कोई ठंडे तौलिए, सूखे दस्ताने और ड्रिंक्स के साथ दोनों योद्धाओं की मदद के लिए तैयार था।
हर बनते रन के साथ ऑस्ट्रेलिया उसका ताप महसूस कर रहा था। लेकिन हम जानते थे कि वे निर्धारित 75 ओवरों में 384 रनों के लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं। हेडन और स्लेटर ने अच्छी शुरुआत भी की, पर पांचवें दिन भज्जी ने फिर शानदार प्रदर्शन किया और स्टेलर को जल्दी वापस भेज दिया। मार्क वॉ और लैंगर के जाने के बाद हमें उम्मीद की किरण दिखने लगी थी। बदानी ने शॉर्ट लेग पर स्टीव वॉ का बेहतरीन कैच लपका। ईडेन की भीड़ भी हमारी हौसला आफजाई करने लगी। हमारे पैरों में तो जैसे एक्स्ट्रा स्प्रिंग लग गए थे। मैं उस वक्त गेंदबाजी करने आया हमें विकेट की जरूरत थी। हेडन और गिलक्रिस्ट का आउट होना बहुत जरूरी था। उनके बाद गुगली पर वार्न का विकेट लेना वाकई मजेदार था! हमारे समय स्टीव वॉ की ऑस्ट्रेलियाई टीम हराना सबसे चुनौतीपूर्ण था। इसलिए ईडेन की जीत मेरी सूची में सबसे ऊपर है। श्रीनाथ ने 21 रन देकर छह विकेट लिए, जिसकी वजह से 1996-97 में मोटेरा में हमने दक्षिण अफ्रीका को हराया, कुंबले ने पाकिस्तान के खिलाफ फरवरी 1999 में कोटला में 10 विकेट लिए, 2008 में चेन्नै में इंग्लैंड के खिलाफ चौथी पारी में 387 रनों का पीछा करते हुए भारत ने सनसनीखेज जीत दर्ज की। ये सब टेस्ट क्रिकेट के शानदार उदाहरण हैं।
अब खेल बदल रहा है। टेस्ट में हमने कभी स्ट्राइक रेट की बात नहीं की। वनडे में भी नहीं। अब छोटे फॉर्मेट के खेल में बल्लेबाज ज्यादा जोखिम लेने लगे हैं। पर मुझे उम्मीद है कि टेस्ट क्रिकेट अपने लंबे फॉर्मेट की भव्यता को बरकरार रखेगा।
(जैसा उन्होंने सौमित्र बोस को बताया)