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24 जुलाई 2023 · JUL 24 , 2023

पंजाब: साड्डा हक, परे हट

पंजाब में सवा साल पुरानी आम आदमी पार्टी की सरकार ने दो दिन का विधानसभा सत्र बुलाकर राजनीति में भूचाल ला दिया है
केजरीवाल और भगवंत मान ः दिल्ली से लेकर पंजाब तक नियुक्तियों की राजनीति के दो चेहरे

सवा साल पहले सूबे में सत्तासीन हुई आम आदमी पार्टी की भगवंत मान सरकार की कार्यशैली कुछ हटकर है, जो राज्य में रिवायती यानी परंपरागत दलों कांग्रेस और अकाली दल से अलहदा है। सो, अब तक कई फैसलों से बवाल ही उठता रहा है। राज्य के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक से लेकर विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति तक को मुख्यमंत्री ने अपने हाथ में रखने का फैसले सुनाया, तो केंद्रीय लोक सेवा आयोग समेत कई केंद्रीय मंत्रालयों से लेकर राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित और आला अफसरों से उनकी ठन गई। अब सरकार शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के मामलों में भी कूद पड़ी है। विपक्ष को उम्मीद है कि ये अजीबोगरीब फैसले मान सरकार के गले की फांस बन जाएंगे।

पिछले करीब एक साल से राज्यपाल पुरोहित से मुख्यमंत्री भगवंत मान का छत्तीस का आंकड़ा है। चंडीगढ़ में हालिया प्रेस कॉन्फ्रेंस में मान ने यहां तक कह दिया कि, ‘‘मेरे ही हेलीकॉप्टर में जाने वाले राज्यपाल मुझे ही गालियां निकालते हैं।’’ राज्यपाल ने भी अगले दिन एक विशेष प्रेस कॉन्फ्रेंस बुला कर कहा, ‘‘पंजाब में रहते हुए अब कभी सरकारी हेलीकॉप्टर का प्रयोग नहीं करूंगा। मेरी पृष्ठभूमि साधारण परिवार की है इसलिए हेलीकॉप्टर की बजाय सड़क मार्ग से जाऊंगा।’’ 

राज्यपाल से बवाल का सिलसिला यही नहीं थमा। 16 जून को पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी के कुलपति पद पर डॉ. सुशील मित्तल की नियुक्ति पर राज्यपाल ने सवाल उठाए। जवाब में सरकार ने विधानसभा का 19 और 20 जून को दो दिनी विशेष सत्र में बुलाया और पंजाब यूनिवर्सिटीज लॉज (संशोधन) बिल, 2023 पारित किया गया जिसमें विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति का पद राज्यपाल के बदले मुख्यमंत्री को बनाने का प्रावधान है। इस संशोधन से पंजाब के 12 राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपति की नियुक्ति का अधिकार मुख्यमंत्री को मिल गया है। विधानसभा में मुख्यमंत्री मान की दलील थी, ‘‘राज्यपाल पंजाब के बाहर के हैं, उन्हें पंजाब की समृद्ध संस्कृति का अधिक ज्ञान नहीं, फिर भी उन्हें राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलपति नियुक्त करने का अधिकार रहा है पर वे अनावश्यक रुकावटें पैदा करते हैं जो सही नहीं है।’’ इससे पहले पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल की गैर-भाजपा सरकारों ने भी राज्यपालों को विश्वविद्यालय के कुलाधिपति पदों से वंचित करने के बिल पारित किए हैं। 

मात्र दो दिन का विधानसभा सत्र बुलाए जाने पर भी राज्यपाल पुरोहित ने सवाल खड़े किए, ‘‘दो दिन का सत्र बुलाए जाने का क्या औचित्य था? कुछ बिल पारित करने के लिए सत्र बुलाना तर्कसंगत नहीं था।’’ राज्यपाल और पंजाब सरकार के बीच तनातनी पर देश के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तथा पूर्व सांसद सत्यपाल जैन ने आउटलुक से कहा, ‘‘मुख्यमंत्री भगवंत मान अंहकार में संविधान से ऊपर कई फैसले ले रहे हैं। विधानसभा में बिल लाकर राज्यपाल के संवैधानिक अधिकार का हनन किया गया है।’’

विधानसभा के विशेष सत्र में ही गुरुद्वारा प्रबंधक एक्ट,1925 में संशोधन किया गया और गुरुद्वारा प्रबंधक (संशोधन) एक्ट, 2023 पारित किया। संशोधित एक्ट में अमृतसर सचखंड स्वर्ण मंदिर दरबार साहिब से गुरबाणी के सीधे प्रसारण का अधिकार सभी चैनलों को दिए जाने का प्रावधान किया गया। इसके विरोध में 27 जून को अमृतसर में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी की अध्यक्षता में हुई बैठक में कमेटी ने संशोधन को सिरे से खारिज कर दिया। धामी ने कहा, ‘‘एसजीपीसी का अपना विधान है जिसमें आज तक किसी राज्य सरकार ने दखल नहीं दिया। सिखों की धार्मिक भावनाओं का खयाल रखते हुए पंजाब सरकार गुरुद्वारों के प्रबंधन से खुद को अलग रखे। यह एसजीपीसी तय करेगी कि उसे क्या फैसले लेने हैं। गुरुद्वारे के रखरखाव का खर्च एसजीपीसी वहन करती है इसलिए सरकार उसकी जगह नहीं ले सकती।’’ 

इस संशोधन से सरकार ने सिखों की शीर्ष संस्था एसजीपीसी को अपने खिलाफ कर लिया। आजादी से पहले के इस एक्ट में बदलाव की पहली कोशिश जनवरी 1959 में तब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों ने की थी लेकिन एसजीपीसी के तत्कालीन अध्यक्ष मास्टर तारा सिंह के भारी विरोध के चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के हस्तक्षेप से संशोधन नहीं किया गया। पंडित नेहरू और मास्टर तारा सिंह के बीच हुए समझौते में तय किया गया था कि कोई सरकार एसजीपीसी के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगी। 

पंजाब विधानसभा में विपक्ष के पूर्व नेता तथा सुप्रीम कोर्ट के वकील एच.एस. फुल्का ने आउटलुक से कहा, ‘‘जब से सिख गुरुद्वारा एक्ट बना है, उसमें कभी कोई संशोधन नहीं हुआ है। एसजीपीसी के मामलों में आज तक किसी राज्य सरकार ने दखलंदाजी नहीं की। सचखंड दरबार साहिब अमृतसर से गुरबाणी का प्रसारण कौन करेगा, इसका फैसला सरकार नहीं बल्कि एसजीपीसी का अधिकार क्षेत्र है। एसजीपीसी चाहे तो अपने चैनल पर गुरबाणी का प्रसारण कर सकती है या किसी अन्य चैनल को इसके लिए अधिकृत कर सकती है। दखलंदाजी सिख संगत को मंजूर नहीं।’’

मामले इतने ही नहीं हैं। विशेष सत्र में पुलिस एक्ट में संशोधन भी पारित किया गया, जिसके तहत पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) की नियुक्ति केंद्रीय लोक संघ सेवा आयोग (यूपीएससी) की सिफारिश पर करने के बजाय राज्य सरकार खुद करेगी। सरकार का तर्क है कि ऐसा करने वाला पंजाब पहला प्रदेश नहीं है, इससे पहले भी आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की सरकारों ने डीजीपी की नियुक्ति का अधिकार अपने पास रखा है। साल भर से गौरव यादव स्थानापन्न (ऑफिशिएटिंग) पुलिस महानिदेशक का कार्यभार संभाले हुए हैं। 1992 बैच के आइपीएस अधिकारी गौरव यादव को राज्य के छह वरिष्ठ आइपीएस अधिकारियों को नजरअंदाज करके डीजीपी बनाया गया। पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के समय डीजीपी 1988 बैच के वी.के. भांवरा की जगह जब यादव को कार्यभार दिया गया तो विरोधस्वरूप भांवरा केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर चले गए। इससे पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह के कार्यकाल में डीजीपी रहे 1986 बैच के आइपीएस दिनकर गुप्ता भी केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआइए) के प्रमुख हैं।

पुलिस एक्ट में संशोधन करके डीजीपी की नियुक्ति में यूपीएससी और केंद्रीय गृह मंत्रालय को रास्ते से हटाने के बाद 26 जून को 1993 बैच के आइएएस अधिकारी अनुराग वर्मा को मुख्य सचिव नामित किए जाने की अधिसूचना जारी की गई। 30 जून को मुख्य सचिव पद से 1988 बैच के आइएएस विजय जंजुआ के रिटायर होने के बाद 1 जुलाई से पदभार ग्रहण करने वाले वर्मा 12 वरिष्ठ आइएएस अफसरों को नजरअंदाज करके इस पद पर लाए गए हैं। वरिष्ठ आइएएस अफसरों में कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार के समय मुख्य सचिव रहीं 1987 बैच की आइएएस विन्नी महाजन केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर जल संसाधन मंत्रालय की सचिव हैं। 1988 बैच की अंजलि भांवरा और 1990 बैच के आइएएस वी.के. सिंह भी केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर हैं। तीनों वरिष्ठ आइएएस की सेवानिवृत्ति जून 2024 से नवंबर 2024 के बीच है।

विशेष सत्र में केंद्र से ग्रामीण विकास फंड (आरडीएफ)के 3,622 करोड़ रुपये बकाया की मांग के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने का प्रस्ताव पारित किया गया। मान सरकार के फैसलों पर चुटकी लेते हुए विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा का कहना है, ‘‘सवा साल पहले 117 में से 92 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज करके आई आम आदमी पार्टी की सरकार सवा साल से ऑफिशिएटिंग डीजीपी से काम चला रही है और अब मुख्य सचिव भी नामित है। सरकार को आला अफसरों पर ही भरोसा नहीं है।’’

बेशक विराट बहुमत लेकर आई सरकार से लीक से हटकर फैसलों की उम्मीद तो की जानी चाहिए, मगर ‘सब को बदल डालूंगा’ वाला रवैया कहीं भी उलटा पड़ा तो मुश्किल हो सकती है। वैसे भी आप की परीक्षा अगले साल लोकसभा चुनावों में ही होनी है।

हरजिंदर सिंह धामी

गुरुद्वारे के रखरखाव का खर्च एसजीपीसी वहन करती है इसलिए सरकार उसकी जगह नहीं ले सकती।

हरजिंदर सिंह धामी, अध्यक्ष, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी

 बनवारी लाल पुरोहित

पंजाब में रहते हुए अब कभी सरकारी हेलीकॉप्टर का प्रयोग नहीं करूंगा। हेलीकॉप्टर के बजाय सड़क मार्ग से जाऊंगा।

बनवरी लाल पुरोहित, राज्यपाल, पंजाब

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