महामारी कोविड-19 ने 2020-21 में समूचे विश्व को झकझोर दिया था। मौत और अर्थव्यवस्था के आंकड़े डरावने थे। भारत में दमघोंटू लॉकडाउन, ऑक्सीजन संकट और टीकाकरण की चुनौतियां भयावह थीं। वह दौर सोचकर ही रूह कांप जाती है। बाद में लॉन्ग कोविड भी बहुतों को जिंदगियों से वंचित करता गया। इसलिए 2025 में कोविड के नए मामले आने शुरू हुए तो दहशत तारी होनी ही थी। मामलों के बढ़ने की रफ्तार भी कम तेज नहीं है, मगर गनीमत इतनी है कि अब संक्रामक वेरिएंट उतने घातक नहीं बताए जा रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इन्हें बेहद घातक नहीं मान रहा है। लेकिन चिंताजनक हमारे देश में स्वास्थ्य सेवा की जर्जर हालत जरूर है।
फिलहाल स्वास्थ्य विभाग की वेबसाइट पर जारी आंकड़ों के अनुसार, 1 जून तक देश भर में कोरोना के एक्टिव केसों की संख्या 3,783 हो गई है। 22 मई तक यह संख्या मात्र 257 थी। 9 दिनों में ही एक्टिव केस में इतनी बढ़ोतरी से कोरोना संक्रमण के बादल गहरा गए हैं। केरल में सबसे ज्यादा 1400 मामले दर्ज किए गए हैं। इसके बाद महाराष्ट्र में 485 और दिल्ली में 436 एक्टिव केस अब तक आ चुके हैं।
हालांकि कोरोना वायरस ने इस साल जनवरी के महीने से अपने पैर पसारने शुरू कर दिए थे। तब से लेकर अब तक कोरोना से 28 मौतों की पुष्टि हो चुकी हैं। संक्रमण किस तेजी से फैल रहा है, इसका अंदाजा इसी बात से लग सकता है कि 28 में से 21 लोग बीते 2 दिन में मरे हैं। चिंताजनक यह रहा कि शनिवार को बेंगलूरू में एक 63 साल के व्यक्ति की मौत हो गई, जिसे दोनों वैक्सीन के साथ बूस्टर डोज भी लगा था। महाराष्ट्र और केरल में सबसे ज्यादा (7-7) लोगों ने जान गंवाई है।
महाराष्ट्र के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वहां 9 हजार से ज्यादा कोविड टेस्ट कराए जा चुके हैं। सरकार की सूचना के मुताबिक शनिवार तक (31 मई) कोविड के 68 नए मामले सामने आ चुके थे। केवल मुंबई में ही जनवरी 2025 से अब तक कुल 749 केस मिल चुके हैं। जनवरी से अब तक राज्य में 9,592 टेस्ट किए गए हैं।
4 नए वेरिएंट
भारत में 4 नए वेरिएंट मिले हैं। आइसीएमआर के अनुसार, दक्षिण और पश्चिम भारत से जिन वेरिएंट की सीक्वेंसिंग की गई है, उनमें एलएफ.7, एक्सएफजी, जेएन.1 और एनबी.1.8.1 सीरीज के वैरिएंट हैं। बाकी जगहों से भी नमूने लेकर सीक्वेंसिंग जारी है, ताकि नए वैरिएंट की भी जांच हो सके। हालांकि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्लूएचओ) ने भी इन्हें चिंताजनक नहीं माना है। लेकिन निगरानी में रखे गए वेरिएंट के रूप में कटगराइज किया है। चीन सहित एशिया के दूसरे देशों में कोविड के बढ़ते मामलों में यही वैरिएंट दिख रहा है।
चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि एनबी.1.8.1 के ए435एस, वी445एच, और टी478आइ जैसे स्पाइक प्रोटीन म्यूटेशन दूसरे वैरिएंट की तुलना में तेजी से फैलते हैं और इन पर कोविड के खिलाफ शरीर में जो प्रतिरोधक क्षमता बनी थी उसका भी असर नहीं होता है।
देखा गया है कि भारत में कोविड का जेएन.1 वैरिएंट आम है। क्योंकि टेस्टिंग के बाद आधे से ज्यादा नमूनों में यही वैरिएंट मिला है। इसके बाद बीए.2 (26 प्रतिशत) और ओमिक्रॉन सबलाइनेज (20 प्रतिशत) वैरिएंट के मामले मिले हैं।
जेएन.1 वैरिएंट इम्यूनिटी को कमजोर कर देता है। यह ओमिक्रॉन के बीए2.86 का ही एक स्ट्रेन है। इसके लक्षण कुछ दिनों से लेकर हफ्तों तक रह सकते हैं। अन्य वैरिएंट की तुलना में तेजी से फैलता है, लेकिन गंभीर नहीं है। दुनिया के कई हिस्सों में यह सबसे आम वैरिएंट बना हुआ है। अगस्त 2023 में यह पहली बार पाया गया था। दिसंबर 2023 में डब्लूएचओ ने इसे ‘‘वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट’’ घोषित किया था। इसमें करीब 30 म्यूटेशन्स हैं, जो प्रतिरोधक क्षमता कमजोर कर देते हैं।
पहली दस्तक तमिलनाडु में
नया वेरिएंट एनबी.1.8.1 पहली बार अप्रैल 2025 में तमिलनाडु में और एलएफ.7 मई 2025 में गुजरात में पाया गया था। दोनों ओमिक्रॉन के सब-वेरिएंट हैं। डब्लूएचओ ने इन्हें वेरिएंट ऑफ कंसर्न (वीओसीएस) के बजाय वेरिएंट अंडर मॉनिटरिंग (वीयूएमएस) की श्रेणी में रखा है। एनबी.1.8.1 में स्पाइक प्रोटीन म्यूटेशन (ए435ए, वी445ए, टी478आइ) हैं, जो इसे अधिक संक्रामक बना रहा है। एलएफ.7 में भी ठीक यही समानताएं हैं। अभी तक देखा गया है कि दोनों वेरिएंट किसी गंभीर स्थिति का कारण नहीं बने हैं।
सरकार ने अस्पतालों को सतर्क रहने और पूरी तैयारी रखने की सलाह दी है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने अस्पतालों को आईसीयू बेड, ऑक्सीजन सप्लाई, वैक्सीन, पीपीई किट, और ट्रिपल-लेयर मास्क की पर्याप्त आपूर्ति निश्चित करने का निर्देश दिया है। दिल्ली सरकार ने सभी पॉजिटिव नमूनों को जीनोम सीक्वेंसिंग का आदेश दिया है। आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु ने वैक्सीन और दवाओं का स्टॉक बढ़ाया है। सरकार ने जनता से घबराने के बजाय सतर्क रहने की अपील की है। कोविड प्रभावित देशों (सिंगापुर, हांगकांग) से आने वाले यात्रियों के लिए टेस्टिंग अनिवार्य कर दी गई है।
सीमित जीनोम सीक्वेंसिंग चुनौती है। स्पष्ट नहीं है कि एनबी.1.8.1 और एलएफ.7 कितने प्रचलित हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में टेस्टिंग और जागरूकता की कमी भी चिंता का विषय है। इसके अलावा, वैक्सीन का प्रभाव नए वेरिएंट के खिलाफ कम हो सकता है, क्योंकि मौजूदा टीके पुराने वेरिएंट (वुहान, डेल्टा) के लिए तैयार किए गए थे।
हर्ड इम्यूनिटी शब्द फिर चलन में आ गया है। भारत की हाइब्रिड इम्यूनिटी (पिछले संक्रमण और टीकाकरण से प्राप्त) नए वेरिएंट के खिलाफ मजबूत सुरक्षा प्रदान कर रही है। 2023 तक, भारत ने करोड़ वैक्सीन डोज वितरित की थीं, जिसमें 70 प्रतिशत से अधिक आबादी का पूरी तरह टीकाकरण हुआ था। 2021-22 की दूसरी लहर (डेल्टा वेरिएंट) के दौरान लाखों लोग संक्रमित हुए, जिससे प्राकृतिक इम्यूनिटी बनी थी।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह इम्यूनिटी गंभीर बीमारी और मृत्यु की दर को रोक रही है। लेकिन, नए वेरिएंट की इम्यून खत्म करने की क्षमता के कारण हल्के संक्रमण दिख रहे हैं। मौजूदा वैक्सीन गंभीर बीमारी से तो सुरक्षा देती हैं, लेकिन हल्के संक्रमण रोकने में कम प्रभावी हैं।
एक चुनौती यह भी है कि हाइब्रिड इम्यूनिटी की कोई निश्चित सीमा नहीं है, क्योंकि वायरस लगातार म्यूटेट करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड अब एंडेमिक स्थिति की ओर बढ़ रहा है, जैसे मौसमी फ्लू। फिर भी, बूस्टर डोज की कम दर (विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में) और इम्यूनिटी का समय के साथ कम होना चिंता का विषय है।
इसका उपाय यही हो सकता है कि ज्यादा से ज्यादा जीनोम सीक्वेंसिंग बढ़ाई जाएं। एनबी.1.8.1 और एलएफ.7 के प्रसार को समझने के लिए सभी राज्यों में टेस्टिंग और सीक्वेंसिंग बढ़ानी चाहिए। नए वेरिएंट के लिए अपडेटेड वैक्सीन पर अनुसंधान तेज हो। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में मास्क, सैनिटाइजेशन पर जोर हो। बुनियादी स्वास्थ्य ढांचा हो, जिसमें ग्रामीण अस्पतालों में ऑक्सीजन और आइसीयू सुविधाएं बढ़ाई जाएं।
लेकिन स्वास्थ्य बजट में इजाफा नहीं हुआ है, स्वास्थ्य सेवा के ज्यादा से ज्यादा निजीकरण की नीति से सरकारी अस्पतालों की उपेक्षा पहले जैसी ही है। दुआ कीजिए कि लोगों को दवाइयों और ऑक्सीजन के लिए फिर दर-दर भटकना न पड़े।
कोविड मौतों की असली संख्या क्या
महामारी कोविड-19 फिर सुर्खियों में है, इसलिए क्या तैयारी होनी चाहिए। बेशक, इसके लिए जरूरी है कि कमियों को छुपाकर नहीं, उनका समाधान खोज कर आगे बढ़ा जाए। इस मामले में भारत के महापंजीयक (आरजीआइ) के हाल में जारी आंकड़े आंख खोलने वाले हैं। 2020 और 2021 में कोविड से संबंधित मौतों का सरकारी आंकड़ा करीब 4,80,000 था। लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान 47 लाख का था, जिसे सरकार खारिज करती रही। लेकिन अब आरजीआइ के आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 के मुकाबले 2021 में 21 लाख मौतें अधिक हुईं, यानी 26 फीसदी ज्यादा।
कुल मौतों की सही संख्या का पता लगाना बेहद जरूरी है, तभी गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है और व्यवस्था की खामियां दुरुस्त की जा सकती हैं। आरजीआइ के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि उत्तरी और पश्चिमी राज्यों के आंकड़ों में भारी विसंगतियां देखी गईं। उनमें कोविड से होने वाली मौतों की संख्या बहुत कम बताई गईं। याद कीजिए, गंगा में बहती लाशें, और ऑक्सीजन के अभाव में तड़प-तड़प कर मरते लोगों को, जिनकी गिनती भला कौन करता। केरल इस मामले में मिसाल है कि रिपोर्ट की गई कोविड मौतों और अनुमानित अतिरिक्त मौतों के बीच सबसे कम अंतर था।
तो, केरल यह उदाहरण भी है कि चाक-चौबंद प्राथमिक स्वास्थ्य व्यवस्था, उच्च साक्षरता दर, महामारी के दौरान पंचायतों और गैर सरकारी संगठनों की सक्रिय भूमिका ही काम आती है। मतलब यह कि देश में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत और दुरुस्त करने के अलावा कोई चारा नहीं है।