राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पहचान धैर्यवान और अपनी भावनाओं को सार्वजनिक न करने वाले नेता की रही है। वे चतुराई से परदे के पीछे की राजनीति करने में माहिर हैं। अपनी इन खासियतों की वजह से वे पिछले 45 साल से अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को बड़ी असानी से मात भी देते आए हैं। शह-मात के इस खेल में उन्होंने पहले परसराम मदेरणा, सी.पी.जोशी को और अब सचिन पायलट को मात देते दिख रहे है। करीब दो हफ्ते पहले ऐसा लग रहा था कि सचिन पायलट के बागी तेवर के आगे गहलोत सरकार जल्द ही गिर जाएगी। उस वक्त शायद वे पहली बार इतने अधीर दिखे। उसी अधीरता में दो बार उन्होंने ऐसे बयान दिए, जो उनकी छवि से मेल नहीं खाते थे।
असल में 11 जुलाई को पायलट 18 कांग्रेस विधायकों के साथ जब जयपुर छोड़कर दिल्ली आ गए, तब राजस्थान में गिरती सरकार बचाने के लिए कांग्रेस आलाकमान सीधे हस्तक्षेप कर रहा था। लेकिन सचिन पायलट प्रियंका गांधी से छह बार बात करने के बावजूद, गहलोत के साथ किसी समझौते के लिए तैयार नहीं थे। उधर भारतीय जनता पार्टी की भी उम्मीदें बढ़ गई थीं। उसे लग रहा था कि वह मध्य प्रदेश की तरह राजस्थान में भी सरकार बना लेगी। शायद यही वजह रही कि गहलोत ने अपना आपा खो दिया।
गहलोत, पायलट को उप-मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष पद से हटवाने में कामयाब रहे। आलाकमान भी पायलट के रवैये को देखते हुए गहलोत की बात मानने पर मजबूर हो गया। इस बीच विधानसभा अध्यक्ष सी.पी.जोशी से भी बागी सदस्यों को नोटिस जारी कर दिया है।
बढ़ते खतरे को देखते हुए पायलट और उनके साथियों ने हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उनकी पैरवी में वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी उतरे। हाइकोर्ट से पायलट कैंप को 24 जुलाई तक राहत मिल गई, तो विधानसभा अध्यक्ष जोशी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी (इन पंक्तियों के लिखे जाने तक सुप्रीम कोर्ट से कोई खबर नहीं थी)।
राजस्थान में जारी इस राजनीतिक संकट के बीच तीन ऑडियो टेप 'लीक' होने से मामला गरमा गया है। टेप में कांग्रेस के बागी विधायक भंवरलाल शर्मा और केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता गजेंद्र सिंह शेखावत और एक अन्य भाजपा नेता संजय जैन के बीच हुई कथित बातचीत सामने आई है। बातचीत से पता चलता है कि तीनों नेता मिलकर विधायकों की खरीद-फरोख्त कर गहलोत सरकार को गिराने की साजिश रच रहे हैं। बात यहीं नहीं रुकी। कांग्रेस के एक अन्य विधायक गिरिराज मलिंगा ने सचिन पायलट पर आरोप लगाया है कि उन्हें भाजपा में शामिल होने के लिए 35 करोड़ रुपये देने की पेशकश की गई थी। हालांकि इस बीच कांग्रेस के कद्दावर नेता दिवंगत राजेश पायलट के 42 वर्षीय बेटे सचिन पायलट ने सार्वजनिक तौर पर यह कहा है कि वे कांग्रेस में ही हैं और भाजपा में शामिल नहीं होंगे। अब बात करते हैं सार्वजनिक तौर पर गहलोत की उस प्रतिक्रया की, जिसमें उन्होंने पायलट के खिलाफ खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर की। हो सकता है कि जिस चालाकी से पायलट ने उनके खिलाफ खेमेबंदी की, उससे वे अपना गुस्सा संभाल नहीं पाए, या फिर 69 साल के एक वरिष्ठ के साथ पायलट ने जैसा सलूक किया, वह उन्हें रास नहीं आया। एक बात तो साफ है कि जिस तरह पायलट पूरी मजबूती से गहलोत को चुनौती दे रहे हैं, वैसी चुनौती उन्हें कांग्रेस तो छोड़िए, भाजपा से भी कभी नहीं मिली है।
इसके पहले गहलोत ने पायलट पर हमला बोलते हुए कहा था कि वे 26 साल की उम्र में लोकसभा सांसद बने और 40 साल की उम्र तक उप-मुख्नयमंत्री बन गए। वे यही नहीं रुके उन्होंने कहा, “केवल अच्छा दिखने और अच्छी अंग्रेजी-हिंदी बोलने से कोई नेता नहीं बना जाता है। उसके लिए आपके पास विचारधारा और प्रतिबद्धता भी होनी चाहिए।” इस सार्वजनिक हमले के बाद गहलोत ने एक और बयान दिया, जिसमें उन्होंने पायलट को नकारा और निकम्मा बताया। पायलट पर जिस तरह के शब्दों के जरिए गहलोत ने हमला किया है, उससे कांग्रेस पार्टी का आलाकमान भी खुश नहीं है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने आउटलुक को बताया कि गहलोत को साफ तौर पर संदेश दिया गया है कि वे इस तरह की भाषा का इस्तेमाल न करें। पार्टी का एक तबका अभी भी चाहता है कि पायलट को समझाकर मामले को सुलझा लिया जाए। कांग्रेस पार्टी में पायलट से सहानुभूति रखने वाले नेताओं का मानना है कि पायलट ने अभी तक पार्टी के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं कहा है। इसके अलावा उनके गांधी परिवार से रिश्ते हमेशा अच्छे रहे हैं।
पायलट की आगे रणनीति क्या होगी? एक, तो यह कि वे भाजपा का दामन थाम लें, दूसरे यह कि वे नई पार्टी बनाएं। आलकमान के संदेश के बाद सार्वजनिक तौर पर भले ही गहलोत ने यह कहा है कि अगर पायलट अपने विद्रोही तेवर वापस ले लेते हैं, तो वे उन्हें गले लगाने के लिए तैयार हैं। लेकिन उनके करीबी सूत्रों का कहना है कि अब ऐसा होना असंभव है। राजस्थान के नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटसारा का कहना है, “अगर पायलट यह कहते हैं कि वे कांग्रेस में ही रहेंगे तो वे बातचीत के लिए तैयार क्यों नहीं हो रहे हैं? उनके लिए भाजपा के करीबी वकील हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी अदालत में पैरवी कर रहे हैं। बागी विधायक जिस होटल में हैं वह भी भाजपा शासित हरियाणा में है।”
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक और बात सार्वजनिक तौर पर कही है कि वे पहले से जानते थे कि सचिन पायलट और उनके साथी पिछले कई महीनों से भाजपा के साथ मिलकर सरकार विरोधी काम कर रहे थे। इसके तहत सरकार गिरने के बाद योजना थी कि पायलट एक क्षेत्रीय दल बनाएंगे और उपचुनाव में भाजपा उनके खिलाफ उम्मीदवार खड़े नहीं करेगी। इसके बाद पायलट भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाते।
पायलट के एक करीबी नेता ने आउटलुक को बताया कि गुर्जर नेता नई पार्टी बनाने के विचार पर अमल कर सकते हैं, लेकिन फिलहाल इस पर कोई फैसला नहीं किया गया है। अभी पायलट टोंक से कांग्रेस के विधायक हैं। पूरे मसले पर भाजपा का आधिकारिक बयान यही है कि गहलोत सरकार के संकट के लिए कांग्रेस की अंदरूनी कलह जिम्मेदार है। भाजपा का यह बयान उसी तरह का है जैसा उसने मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के समय दिया था। हालांकि भाजपा के सूत्रों ने आउटलुक को बताया कि सिंधिया के पास सरकार गिराने के लिए पर्याप्त संख्या में विधायक मौजूद थे, लेकिन पायलट के साथ ऐसा नहीं है। उन्होंने अपने साथ 30 विधायकों के आने का दावा किया था, लेकिन अभी तक 18 विधायक ही उनके साथ खड़े हैं। ऐसे में हम सार्वजनिक तौर पर उनका समर्थन क्यों करें, जब भाजपा की सरकार बनने की गांरटी नहीं है।
एक अन्य वरिष्ठ विधायक का कहना है कि राज्य में भाजपा की वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया भी गहलोत सरकार गिराने के पक्ष में नहीं हैं। वे तब तक ऐसा नहीं करेंगी, जब तक उन्हें भरोसा नहीं होगा कि वे फिर से मुख्यमंत्री पद संभालेंगी। पार्टी के 72 विधायकों में से 45 विधायक वसुंधरा के समर्थक हैं। एक और बात समझने वाली है कि वसुंधरा किसी भी सूरत में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनिया, विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत को मुख्यमंत्री पद देने का समर्थन नहीं करेंगी। ऐसे में राजस्थान में भाजपा की भी स्थिति पायलट जैसी हो गई है। इस बीच, कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि अभी राजनीतिक ड्रामा लंबा चलेगा। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत 200 सदस्यों वाली विधानसभा में 109 विधायकों के समर्थन का दावा कर रहे हैं। हालांकि भाजपा भी इतनी आसानी से चुप बैठने वाली नहीं है। ऐसे में गहलोत और कांग्रेस आलाकमान को भी राजस्थान के रण में फाइनल जीत के लिए मजबूत तैयारी करनी होगी। लेकिन सत्ता के इस खेल में जनता की फिक्र किसे है!