डोनाल्ड ट्रम्प के अमेरिका के राष्ट्रपति पद का भार संभालने के महीने भर के भीतर ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा ट्रम्प के साथ अपने निजी संबंध मजबूत करने और उनके दूसरे कार्यकाल में पानी नापने की कवायद रही। दुनिया के दूसरे देशों की तरह भारत भी जानता है कि ट्रम्प आज ‘अमेरिका को फिर से महान बनाने’ (मागा) की अपनी परियोजना में पूरी ताकत और वर्चस्व झोंकने को तैयार बैठे हैं। अभी ट्रम्प प्रशासन की पूरी कैबिनेट भी नियुक्त नहीं हुई है, लिहाजा भारत के साथ अमेरिका ने किसी भी समझौते पर कोई दस्तखत नहीं किए, लेकिन दोनों देशों के नेताओं ने द्विपक्षीय रिश्तों का एक महत्वाकांक्षी खाका जरूर खींच दिया है। इसमें अमेरिका से उसके ज्यादा उपकरणों की खरीद शामिल है। ट्रम्प जोर लगा रहे हैं कि भारत उससे ज्यादा से ज्यादा तेल, गैस और रक्षा उपकरण खरीदे, साथ ही अमेरिकी उत्पादों को अपने यहां अधिक पहुंच मुहैया करवाए। भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार होने के नाते अमेरिका ने जो शुल्क लागू किए हैं उनका भारत के निर्यातों पर असर पड़ेगा। हो सकता है कि इससे दोनों देशों के बीच व्यापार संतुलन कायम हो।
ट्रम्प के साथ बैठक से पहले मोदी की मुलाकात कारोबारी एलन मस्क से हुई। अमेरिका के नए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइकल वाल्ट्ज और प्रवासी भारतीय कारोबारी विवेक रामास्वामी भी मोदी से मिले, जो ओहायो के गवर्नर पद की दौड़ में हैं। अमेरिकी खुफिया विभाग की नई निदेशक तुलसी गब्बार्ड ने वॉशिंगटन पहुंचते ही मोदी से मुलाकात की थी। माना जाता है कि मोदी के साथ उनके रिश्ते अच्छे हैं।
वॉशिंगटन के हडसन इंस्टिट्यूट की अपर्णा पांडे का कहना है, ‘‘प्रधानमंत्री मोदी का दौरा प्रतीकात्मक और वास्तविक दोनों ही स्तरों पर उत्पादक रहा। प्रतीक रूप में देखें, तो वे ऐसे चौथे विदेशी नेता थे और वह भी उस देश के जो अमेरिका का सामरिक साझीदार नहीं हैं, जो इतनी जल्दी ट्रम्प से मिल सके। वास्तविक मायने में देखें तो भारत को भले ही अमेरिका के लगाए शुल्क के असर से लड़ना होगा और बाजार पहुंच की राह में अवरोधों को दूर करना होगा, लेकिन प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर निरंतर साझेदारी कायम रहने का वादा तथा एफ-35 सहित दूसरे रक्षा उपकरणों की बिक्री अहम है।’’
एलॉन मस्क के बच्चों के साथ प्रधानमंत्री मोदी
ट्रम्प ने जब अपने व्यापारिक साझीदारों पर पलट कर शुल्क लगाने की घोषणा की थी, उसके कुछ घंटे बाद ही मोदी की उनसे मुलाकात हुई। यह शुल्क अप्रैल में लागू हो जाएगा। भारत में शुल्क अवरोध बहुत कठोर हैं। ट्रम्प ने यह बात मोदी से वार्ता के बाद हुई संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक रिपोर्टर के सवाल के जवाब में कही भी थी। उन्होंने कहा कि अमेरिकी कंपनियों को उच्च शुल्क के कारण भारत में अपना माल बेचने में दिक्कतें आती हैं और अमेरिका अब पलट कर शुल्क लगाएगा। भारत को इस कदम की आशंका थी, शायद तभी उसने इस साल के बजट में पहले ही अमेरिकी कंपनियों के ऊपर लगने वाला शुल्क घटा दिया था। इसके बावजूद ट्रम्प ने भारत को कोई रियायत नहीं दी। ये शुल्क भारत के लिए झटका होंगे क्योंकि भारत के माल और सेवाओं के लिए अमेरिका सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। ट्रम्प यह भी चाहते हैं कि भारत उससे ज्यादा तेल और गैस खरीदे। यह भारत के लिए कहीं महंगा साबित हो सकता है।
ट्रम्प के बार-बार भारत के उच्च शुल्क और पलट कर खुद शुल्क लगाने वाली बात के जिक्र से कुछ लोग ऊहापोह में हैं। सेवानिवृत्त राजदूत केपी फेबियन कहते हैं, ‘‘पलट कर शुल्क लगाने का क्या मतलब है? अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ऐसा कभी नहीं सुना गया। भारत और अमेरिका द्वारा एक-दूसरे को किए जाने वाले निर्यात अलहदा हैं, फिर यह काम कैसे करेगा?” वे पूछते हैं, ‘‘मसलन, भारत हार्ले डेविडसन पर 30 प्रतिशत शुल्क लगाता है और इससे कमजोर इंजन वाली अमेरिकी मोटरसाइकिलों के लिए निर्यात करता है। तो क्या अमेरिका उस पर 30 प्रतिशत शुल्क लगाएगा? या फिर यह व्यवस्था आनुपातिक होगी?” वे जोर देकर कहते हैं कि सरप्लस या व्यापार संतुलन के हक में तिजारती व्यवस्था को तो खुद एडम स्मिथ ने ही खतम कर दिया था, जो आधुनिक अर्थशास्त्र के जनक कहे जाते हैं।
प्रतिरक्षा
इस दौरे की सबसे बड़ी उपलब्धि अमेरिका द्वारा भारत को एफ-35 लड़ाकू विमानों की बिक्री की पेशकश है। संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रम्प ने बताया, ‘‘इस साल के आरंभ से हम भारत को कई अरब डॉलर की सैन्य बिक्री बढ़ाने जा रहे हैं। हम भारत को एफ-35 लड़ाकू विमान मुहैया करवाने का रास्ता भी बना रहे हैं।’’ यह एक ऐसा प्रस्ताव है जिसे जमीन पर उतरने में कई बरस लग सकते हैं। अव्वल तो इसकी लागत बहुत ज्यादा है और लड़ाकू विमानों को भारतीय तकनीकी तंत्र के साथ मेल बैठाना होगा जो परंपरागत रूप से रूसी तकनीक के हिसाब से ढला हुआ है। भारत अब भी रूस से रक्षा उपकरण खरीद रहा है हालांकि बीते बीसेक बरस में भारत ने अमेरिका, फ्रांस और इजरायल से भी उपकरण खरीदे हैं। इससे ज्यादा अहम भारत के लिए छह अतिरिक्त पी81 समुद्री गश्ती विमानों की खरीद को पूरा करना है जिसका इस्तेामाल भारतीय नौसेना हिंद महासागर में समुद्री निगरानी के लिए करती है।
मोदी के दौरे के अंत में जारी संयुक्त वक्तव्य में कहा गया है, ‘‘राष्ट्रपति ट्रम्प और प्रधानमंत्री मोदी ने एक नई पहल की शुरुआत की है ‘यूएस-इंडिया कॉम्पैक्ट (कैटलाइजिंग अपॉर्चुनिटीज फॉर मिलिटरी पार्टनरशिप, ऐक्सेलेरेटेड कॉमर्स ऐंड टेक्नोलॉजी) फॉर द ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी।’’ यह सहयोग के सभी मोर्चों पर बदलाव लाने के लिए है। इस पहल के तहत दोनों नेता परिणाम केंद्रित एजेंडे पर सहमत हुए हैं जिसके शुरुआती नतीजे इसी साल देखने में आएंगे जिससे दोतरफा फायदे के प्रति भरोसे का पता चलेगा।
व्यापार समझौता
मोदी और ट्रम्प 2030 तक भारत-अमेरिका व्यापार को 500 अरब डॉलर तक बढ़ाना चाहते हैं। ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान एक मुक्त व्यापार समझौते पर चर्चा हुई थी। अब दोनों नेता उसे शुरू करने को तैयार हैं। परस्पर लाभकारी, बहुक्षेत्रीय द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) पर पहले दौर की समझौता वार्ता 2025 के अंत तक होनी है।
संयुक्त वक्तव्य में कहा गया है, ‘‘इस नवाचारी, व्यापक बीटीए को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिका और भारत माल और सेवा क्षेत्र में द्विपक्षीय व्यापार को गहरा और मजबूत बनाने का एक एकीकृत रास्ता अपनाएंगे तथा बाजार पहुंच को बढ़ाने, शुल्क और गैर-शुल्क अवरोधों को घटाने और आपूर्ति श्रृंखला को ज्यादा गहरे स्तर पर एकीकृत करने की दिशा में काम करेंगे।’’
प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रम्प को यह कहते हुए भारत आने का न्योता दिया है, ‘‘मैं आपको आपकी मित्रता और भारत के प्रति संकल्पबद्धता के लिए धन्यवाद देता हूं। भारत के लोगों को अब भी 2020 की आपकी यात्रा याद है और उन्हें उम्मीद है कि राष्ट्रपति ट्रम्प उनके पास एक बार फिर आएंगे। 140 करोड़ भारतीयों की तरफ से मैं आपको भारत आने का निमंत्रण देता हूं।’’
दोनों तरफ से गर्मजोशी के प्रदर्शन के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी अपने स्वाभाविक अंदाज में नहीं दिखे। ऑस्ट्रेलिया की ग्रिफिथ यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंध के प्रोफेसर और मेलबर्न युनिवर्सिटी में ऑस्ट्रेलिया-इंडिया इंस्टिट्यूट के फैलो इयान हॉल कहते हैं, ‘‘मेरे खयाल से यह एक अजीब तमाशा था। दोनों व्यक्तियों की तरफ से सार्वजनिक स्तर पर काफी लगाव दिखाया गया लेकिन सतह के नीचे कुछ तनाव था। फिर भी, ऐसा लगता है कि भारत ने ठीकठाक ही खेला और कई खास सौदों के प्रति संकल्पबद्धता जताए बगैर कई क्षेत्रों में लचीलेपन का इशारा किया। यह तो वक्त ही बताएगा कि भारत वास्तव में अमेरिका से तेल या एफ35 या कारें खरीदेगा। मेरा अंदाजा है कि यदि ऐसा होता है, तब भी यह इतनी जल्दी होने नहीं जा रहा।’’