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भविष्य की नौकरियां: हरफनमौला की तलाश

कोविड-19 महामारी से नौकरियों के बाजार में आया भारी बदलाव, अब कंपनियां ऐसों की तलाश में, जो हर मौके पर फिट
कोविड के बाद बदलेगा नौकरियों का स्वरूप

कई देश कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में हैं और कोविड-19 संक्रमण की प्रवृत्ति के बारे में कोई कुछ नहीं जानता। महामारी की पहली लहर के दौरान भारत में संक्रमण सर्वाधिक स्तर तक पहुंचा या नहीं, यह भी नहीं मालूम। दूसरी तरफ, इसका टीका या कोई अन्य इलाज सामने आने में अभी महीनों लग सकते हैं। विश्व अर्थव्यवस्था लंगड़ा रही है। उम्मीद भरे बयानों के बावजूद नीति निर्माताओं को नहीं पता कि सुधार कब और कैसे होगा। चीन संभवतः वी-शेप रिकवरी के मध्य में है। पश्चिमी देशों में यू-शेप रिकवरी हो सकती है। भारत के बारे में अलग तरह की डब्लू-शेप रिकवरी का अनुमान लगाया जा रहा है। यानी यहां अर्थव्यवस्था पहले गिरेगी, फिर थोड़ी सुधरेगी, फिर उसमें गिरावट आएगी और फिर आखिरकार तेज उछाल आएगा। अर्थव्यवस्था के कई सेक्टर में यही ट्रेंड देखने को मिला है। कुछ सेक्टर में सुधार आया है, लेकिन ज्यादातर लंगड़ा ही रहे हैं। अगर आप एमबीए अंतिम वर्ष के छात्र हैं, आपके पास नौकरी नहीं है, पुरानी नौकरी में वेतन घट जाने या नौकरी चले जाने के कारण नई नौकरी तलाश रहे हैं, तो एक महत्वपूर्ण सबक जरूर याद रखिए। जैसाकि आप जानते हैं, काम की प्रकृति बदल गई है और साथ ही इसका भविष्य भी। नई नौकरी का सामना करने से पहले आपको कुछ वास्तविकताओं से रू-ब-रू होना पड़ेगा। पिछले कुछ महीनों के दौरान अस्थायी, ठेके पर रखे गए और आउटसोर्सिंग वाले कर्मचारियों को सबसे पहले निकाला गया। आने वाले दिनों में भी ऐसे कर्मचारियों की तादाद बढ़ सकती है जिन्हें कम समय के लिए रखा जाएगा।

ग्लोबल थिंक टैंक गार्टनर का मानना है कि कंपनियां अपनी वर्कफोर्स में लचीलापन बनाए रखने के लिए ऐसे कर्मचारियों की भर्ती करेंगी। इसके अलावा टैलेंट शेयरिंग भी होगी। यानी एक व्यक्ति कंपनी के अलग-अलग विभागों में काम करेगा। ऐसा एक सेक्टर की अलग-अलग कंपनियों के बीच भी हो सकता है। जो लोग इतने भाग्यशाली हैं कि उन्हें नौकरी मिल जाती है, उन्हें भी ‘80 फीसदी काम के लिए 80 फीसदी’ वेतन का नया नियम याद रखना चाहिए। यह स्थिति कई वर्षों तक रह सकती है।

गार्टनर के वाइस प्रेसिडेंट ब्रायन क्रॉप बताते हैं, “हमारी रिसर्च के अनुसार 32 फीसदी संस्थान खर्च घटाने के लिए पूर्णकालिक कर्मचारियों की जगह अल्पकालिक कर्मचारियों को रख रही हैं।” यह अनुमान भी है कि ठेका श्रमिकों से लिया जाने वाला काम 20 फीसदी कम हो सकता है। प्लेसमेंट एजेंसी जीनियस कंसल्टेंट्स के आर.पी. यादव भी कुछ ऐसा ही मानते हैं। उनकी कंपनी ने पिछले कुछ महीनों के दौरान आउटसोर्सिंग वाले कर्मचारियों की संख्या 20 फीसदी घटा दी है। हालांकि अलग-अलग सेक्टर में यह आंकड़ा अलग हो सकता है।

परिस्थिति पर एचआर मैनेजर के नजरिए से देखिए। महामारी ने अच्छे और बुरे दोनों तरह के कर्मचारियों को प्रभावित किया है। अच्छे कर्मचारियों को इसलिए हटाना पड़ा क्योंकि वे काफी महंगे थे, और बुरे कर्मचारियों को इसलिए क्योंकि वे आलसी थे। 09 सॉल्यूशंस इंडिया के एमडी सिद्धार्थ नियोगी बताते हैं, “अच्छी प्रतिभाओं को नौकरी पर रखने का यह अच्छा अवसर है।” वर्क फ्रॉम होम के चलते कंपनियों के एचआर विभाग दुनियाभर से प्रतिभाशाली लोगों को रख सकते हैं। इसमें देश की सीमा कोई मायने नहीं रखेगी।

भर्ती करने वाले नए कौशल की मांग कर सकते हैं। एक कौशल यह होगा कि उम्मीदवार टेक्नोलॉजी के मामले में कितना सिद्धहस्त है। अफसोस की बात है कि कंपनियों की उम्मीदों और लोगों के कौशल में काफी अंतर है। टैलेंट स्प्रिंट के सह संस्थापक और सीईओ डॉ. शांतनु पॉल कहते हैं, “भारत में करीब 40 लाख आइटी प्रोफेशनल हैं, लेकिन इनमें से एक से दो फीसदी ने ही जरूरी एडवांस कोर्स किया है।” अगर आइटी सेक्टर की यह हालत है, तो दूसरे सेक्टर की समस्याओं के बारे में सहज कल्पना की जा सकती है।

आइएफटीएफ नामक थिंक टैंक और हार्डवेयर कंपनी डेल टेक्नोलॉजीज की हालिया रिपोर्ट के अनुसार भविष्य में समस्या समाधान की क्षमता, लीक से हटकर सोचना और कोलैबोरेशन जैसे कौशल पर फोकस किया जाएगा। इसमें कंपनियों की तरफ से दिया जाने वाला प्रशिक्षण काफी मायने रखेगा। इनमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि प्रशिक्षित प्रोफेशनल सिर्फ किताबी ज्ञान तक सीमित ना रहे, बल्कि इंडस्ट्री में होने वाले किसी भी बड़े बदलाव के लिए तैयार रहे।

हम यहां उन सेक्टर के बारे में बता रहे हैं जिनमें भविष्य में नौकरियां निकल सकती हैं। अगर आपको भी नौकरियों की जरूरत है तो ध्यान से पढ़िए।

टेक्नोलॉजी (सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर, ऐप)

आइएफटीएफ और डेल की रिपोर्ट के अनुसार 2030 में जिस तरह की नौकरियां होंगी, उनमें 85 फीसदी के बारे में तो अभी जानकारी भी नहीं है। उनके लिए नए तरह के तकनीकी कौशल की आवश्यकता होगी। अगले साल या और कुछ समय बाद नए कौशल की जरूरतों के कारण करीब 20 लाख नौकरियां जाएंगी और इतनी ही पैदा होंगी। आप चाहें या न चाहें, एक प्रोफेशनल के तौर पर आपका भविष्य गहरी समझ वाले कार्यों में आपकी दक्षता से तय होगा।

कोविड-19 संकट के कारण सितंबर से बड़ी और एमएसएमई कंपनियां आइटी और ई-सेवा से जुड़ी प्रतिभाओं पर फोकस कर रही हैं। जीनियस कंसल्टेंट्स के यादव के अनुसार नई तरह की मांग के चलते आइटी में नौकरियों में काफी प्रतिस्पर्धी हो गई है। जिमयो के सह-संस्थापक और सीईओ कुमार मयंक के अनुसार, “छोटी कंपनियां भी टेक्नोलॉजी अपनाना चाहती हैं। उनकी तरफ से पूछताछ 40 फीसदी बढ़ी है।“ स्पष्ट है कि आने वाले समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डाटा एनालिटिक्स और साइबर सिक्योरिटी क्षेत्र में मांग बढ़ेगी।

चीन को उसकी सही जगह बताने के लिए भारत ने चाइनीज कंपनियों द्वारा डेवलप किए गए दर्जनों मोबाइल ऐप पर प्रतिबंध लगा दिया। ये ऐप भारतीय यूजर्स में काफी लोकप्रिय थे। सरकार के इस कदम से मोबाइल फोन बनाने वाली कंपनियां अन्य मौजूदा एप या नए एप की तरफ जाएंगी। इससे ऐप बनाने वालों को मौका मिलेगा, खासकर टेलीकॉम क्षेत्र की स्टार्टअप कंपनियों को। नए बिजनेस मॉडल, जियो प्लेटफॉर्म के कारण बी2बी पार्टनरशिप और नए तरह के मनोरंजन की मांग से बाजार में काफी बदलाव देखने को मिल सकते हैं।

पिछले दिनों लैपटॉप, मोबाइल और ऑडियो डिवाइस की बिक्री काफी तेजी से बढ़ी। घर से काम करने वालों की संख्या बढ़ने के कारण ऐसा हुआ। हाल ही फ्लिपकार्ट के ‘बिग बिलीयन डे’ सेल में इलेक्ट्रॉनिक सामान की बिक्री पिछले साल की तुलना में दोगुनी हुई। स्मार्टफोन की बिक्री में 3.2 गुना बढ़ोतरी हुई। लोगों ने हर सेकंड 11 हेडफोन और हर चार सेकंड में एक एपल एयरपॉड खरीदा। दशहरा से पहले अमेजन के सेल में पहले दिन जितने आइफोन बिके, उतने उससे पहले एक साल में नहीं बिके थे।

ई-कॉमर्स और ऑनलाइन रिटेल

कोविड-19 से पहले और बाद के महीनों में ऑनलाइन बिक्री लगभग 40 फीसदी बढ़ गई। हालांकि इसकी बड़ी वजह यह थी कि लोग घरों से निकल नहीं पा रहे थे। फिर भी यह ट्रेंड बरकरार रहने की उम्मीद है। रेडसीर कंसलटिंग ने सितंबर में ई-कॉमर्स सेगमेंट में तीन लाख नई नौकरियों का अनुमान लगाया था। इसमें से 70 फीसदी नौकरियां अमेजन और फ्लिपकार्ट में और बाकी लॉजिस्टिक कंपनियों में होंगी। इनमें भी 60 फीसदी नौकरियां डिलीवरी और डिस्ट्रीब्यूशन के लिए और बाकी कस्टमर सर्विस और वेयरहाउस के लिए होंगी।

दशहरा से पहले फ्लिपकार्ट के सेल में डिजिटल पेमेंट एक साल पहले की तुलना में 55 फीसदी बढ़ गया। लाइफस्टाइल, ब्यूटी और होम प्रोडक्ट, मोबाइल, एसेसरी जैसे सेगमेंट में डिजिटल पेमेंट पिछले साल की तुलना में  तीन गुना बढ़ा, जिनमें आमतौर पर नकद खरीदारी ज्यादा होती है। अनेक लोगों ने ईएमआइ विकल्प को चुना। अमेजन के सेल में जिन लोगों ने ईएमआइ का विकल्प चुना उनमें हर तीन में से दो ने ‘नो कॉस्ट’ यानी शून्य ब्याज दर वाला विकल्प भी अपनाया। ईएमआइ पर खरीदारी करने वाले 75 फीसदी लोग टियर-2 और टियर-3 शहरों के थे।

कृषि (स्टार्टअप, कोल्ड स्टोरेज)

वैसे तो कृषि विश्वविद्यालयों के पांच से दस फीसदी ग्रेजुएट आंत्रप्रेन्योर बनते हैं, लेकिन निकट भविष्य में इनकी संख्या बढ़ सकती है। हाल के दिनों में दर्जनों स्टार्टअप ने एग्रीगेटर और फार्मर्स प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन (एफपीओ) के साथ हाथ मिलाया है। नए कृषि कानूनों के चलते इनोवेशन और लीक से हटकर, नए तरह के बिजनेस मॉडल खड़े होंगे। इससे बड़ी कंपनियां वैल्यू चेन (खरीद, कोल्ड स्टोरेज और सप्लाई) में अच्छा खासा निवेश कर सकती हैं। नई कंपनियों के आने से नई बाजार तैयार होंगे और लोगों के लिए नौकरी के नए अवसर भी पैदा होंगे।

हेल्थकेयर (कोविड-19 वैक्सीन)

केंद्र और राज्य सरकारों में कोविड-19 का वैक्सीन मुफ्त में उपलब्ध कराने की होड़ लगी है। इसका मतलब है कि 140 करोड़ लोगों को वैक्सीन की जरूरत होगी। एक बार लगाए गए टीके का असर कुछ महीनों तक ही रहा तो लोगों को कई बार टीका लगाना पड़ सकता है। यानी फार्मा सेक्टर में बड़े पैमाने पर मैन्युफैक्चरिंग की जरूरत होगी, जिससे नई नौकरियां सृजित होंगी। कोविड-19 से लड़ाई की रणनीति में दवाओं का वितरण और ट्रांसपोर्टेशन भी अहम होगा। वैक्सीन को एक निश्चित न्यूनतम तापमान पर रखने की जरूरत होगी, इसलिए सरकार  स्टॉक की रियल टाइम मॉनिटरिंग के लिए लोगों को नियुक्त करेगी। भारत में अन्य वैक्सीन ले जाने के लिए अभी 43,000 से कुछ ज्यादा कोल्ड चेन पॉइंट हैं। कोविड-19 के कारण इनकी संख्या काफी बढ़ सकती है। वैक्सीन ले जाने के लिए कोल्ड स्टोरेज ट्रांसपोर्ट की भी जरूरत होगी।

एफएमसीजी (डायरेक्ट सेलिंग)

विभिन्न सेक्टर में नौकरियां जाने, सलाहकारों पर कंपनियों की निर्भरता बढ़ने और वेतन कटौती से डायरेक्ट सेलिंग को बढ़ावा मिल सकता है। जिनके पास नौकरी नहीं है, वे मार्केटिंग कंपनियों में पार्टटाइम काम करके परिवार का खर्च चला सकते हैं। यह ट्रेंड टियर-2 और टियर-3 शहरों में अधिक दिख सकता है। नेटसर्फ कम्युनिकेशंस के सीएमडी सुजीत जैन कहते हैं कि उनकी कंपनी ने किसानों, शिक्षकों, इंजीनियरों, वेतन भोगी लोगों, गृहिणियों, कॉलेज छात्रों, मेडिकल प्रोफेशनल और छोटे व्यवसायियों को डायरेक्ट सेलिंग के लिए नियुक्त किया है। जैन के पास 3,15,000 सेल्स कर्मचारी हैं। उन्होंने बताया कि अप्रैल से अगस्त के दौरान पिछले साल की तुलना में बिक्री 50 फीसदी बढ़ गई है। जैन के अनुसार इस क्षेत्र में सक्षम लॉजिस्टिक्स, अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी, डिजिटल इंटेलिजेंस और एडवांस एनालिटिक्स की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। जैन की कंपनी 25 लाख ग्राहक संख्या का दावा करती है और इसकी 60 फीसदी बिक्री छोटे शहरों में होती है।

कंज्यूमर अप्लायंसेज

पिछले कुछ महीनों के दौरान घरों और रसोई में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों की बिक्री तेजी से बढ़ी है। अमेजन के अनुसार माइक्रोवेव ओवन और डिश वॉशर की बिक्री में खासी बढ़ोतरी हुई है। लॉकडाउन के दौरान सप्लाई रुक जाने से उनका स्टॉक भी खत्म हो गया था, इसलिए इनकी मौजूदा डिमांड कुछ समय तक बनी रह सकती है। वाशिंग मशीन और रेफ्रिजरेटर के मामले में भी यही ट्रेंड देखने को मिला। परिवार आमतौर पर घरों में ही हैं और घरेलू नौकर न होने से महिलाएं परेशान हैं। इसलिए इन उपकरणों की मांग में वृद्धि आई है। दशहरा से पहले फ्लिपकार्ट के सेल के दौरान हर 14 सेकंड में एक माइक्रोवेव की बिक्री हुई थी।

मनोरंजन और फैशन

लोगों के बीच सामाजिक जुड़ाव कम होने और घर से काम करने का चलन बढ़ने के कारण ऑनलाइन मनोरंजन की मांग बढ़ी है। मोबाइल और इंटरनेट डाटा का इस्तेमाल बढ़ा है। इसका फायदा ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म को मिला है। आगे भी यह ट्रेंड बने रहने की उम्मीद है, भले ही इसके बढ़ने की रफ्तार कुछ कम हो जाए। हाल में टीवी और गेमिंग उपकरणों की बिक्री से यह बात साबित भी होती है। वीडियो कंसोल और इससे जुड़ी एसेसरी की काफी मांग है। इनमें हाल ही लांच हुए एक्सबॉक्स सीरीज एक्स, फायर टीवी स्टिक और फायर टीवी स्टिक लाइट भी शामिल हैं। अमेजन का दावा है कि हाल में एक ग्राहकों ने इन्हें खरीदा है। सबसे ज्यादा बिकने वाले 10 उत्पादों में ईको डॉट (तीसरी पीढ़ी) और फायर टीवी स्टिक शामिल थे।

लोगों में कपड़े खरीदने का क्रेज बढ़ा है। पिछले दिनों त्योहारों के दौरान ऑनलाइन सेल में 1,500 शहरों के लाखों लोगों ने कपड़ों की खरीदारी की। एसेसरीज की भी डिमांड रही। इसके पीछे एक कारण यह हो सकता है कि वायरस के बावजूद लोग घर से बाहर स्टाइल में निकलना चाहते हैं, या फिर उनपर घर में भी बेहतर दिखने का मनोवैज्ञानिक दबाव है। लोग खुद को अलग-थलग महसूस न करें, इसकी सबसे अच्छी दवा शायद शॉपिंग ही है।

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