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अब आई बारी पोते पड़पोतों की

राज्य के मशहूर तीन लालों के ही नहीं, बल्कि दूसरे दिग्गज नेताओं की तीसरी और चौथी पीढ़ी के वंशज भी विरासत बचाने को मैदान में
देवीलाल

सत्ता में उलट-फेर चाहे जितना हो जाए लेकिन हरियाणा की राजनीति का एक सत्य दशकों से अटल है। दशकों पहले राज्य के राजनीतिक क्षितिज पर तीन लाल चमकते थे, आज इन लालों के पोते और पड़पोतों की पूरी फौज इस लोकसभा चुनाव में भाग्य आजमा रही है। लालों के पोते और पड़पोते ही नहीं, बल्कि दूसरे नेताओं के खानदानी भी बड़ी और आकर्षक नौकरियां त्यागकर चुनावी समर में उतर रहे हैं। ऐसा लगता है कि ये चुनाव राजनैतिक विरासत बचाने और आगे बढ़ाने के महाभारत सरीखे हो गए हैं। हरियाणा के तीन लालों के पोते-पोती ही नहीं बल्कि दूसरे दिग्गज नेताओं के नाती-पोते चुनाव लड़ रहे हैं। कई सीटों पर मुख्य मुकाबला इन युवाओं के बीच ही है तो कई सीटों पर वे दूसरे उम्मीदवारों को चुनौती दे रहे हैं।

इस बार प्रदेश की दस में से पांच सीटों पर सियासी परिवारों के पोते-पोती और पड़पोते अपने परिवार की सियासी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए एक-दूसरे से मुकाबला कर रहे हैं। वैसे कुल आठ सीटों पर वे भाग्य आजमा रहे हैं। हरियाणा में 12 मई को होने वाले चुनाव में पहली बार पूर्व उप-प्रधानमंत्री और हरियाणा के दिग्गज नेता देवीलाल के तीन पड़पोते मुकाबला कर रहे हैं। इससे पहले देवीलाल के पोतों अजय और अभय चौटाला ने उनकी विरासत संभाली। इससे भी पूर्व उनके पिता ओम प्रकाश चौटाला ने राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया। चार दशक पहले बंसीलाल के पुत्रों सुरेंद्र सिंह, रणबीर महेंद्रा और भजनलाल के पुत्रों चंद्रमोहन तथा कुलदीप बिश्नोई ने सियासी विरासत संभाली।

पीढ़ी दर पीढ़ी सियासी विरासत पर पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ के राजनीतिशास्‍त्र विभाग के पूर्व प्रमुख प्रो. रोणकी राम कहते हैं कि हरियाणा की सियासत कुछ परिवारों के चारों ओर ही घूमती है। राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बाद भी इन परिवारों का राजनीतिक जादू कायम रहता है। इसलिए इनकी सियासी विरासत पोतों-पड़पोतों तक को सफलतापूर्वक ट्रांसफर हो रही है। वंशवाद की सियासत में मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ही अपवाद हैं। इस बारे में हरियाणा के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु का कहना है कि कांग्रेस और इनेलो पूरी तरह से वंशवादग्रस्त दल है जबकि भाजपा अभी इससे दूर है। लेकिन वास्तविकता यह है कि भाजपा भी परिवारवाद को बढ़ावा देने से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाई है। ज्यादा पढ़े-लिखे न होने पर भी देवीलाल और भजनलाल दिग्गज नेता बने जबकि उनके पोते-पड़पोते विदेशों से पढ़ने के बाद अपना आकर्षक करिअर त्यागकर सियासी मैदान की ओर खिंचे चले आए हैं।

वारिसों की जंग

दुष्यंत चौटाला

देवीलाल के सांसद पड़पोते दुष्यंत चौटाला अपनी नवगठित जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) की ओर से हिसार लोकसभा सीट के उम्मीदवार हैं। अजय चौटाला के सांसद बेटे दुष्यंत चौटाला और चाचा अभय चौटाला के साथ वर्चस्व की लड़ाई में देवीलाल की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) दोफाड़ हो गई थी। दुष्यंत अपनी नई पार्टी जेजेपी के जरिए अपने परदादा की विरासत कब्जाने का प्रयास कर रहे हैं। इस लिहाज से दुष्यंत के लिए यह चुनाव अत्यंत अहम हैं।

दिग्विजय चौटाला

 

देवीलाल के एक अन्य पड़पोते दिग्विजय चौटाला  पहली बार संसदीय चुनाव लड़ रहे हैं। दुष्यंत के छोटे भाई दिग्विजय चौटाला सोनीपत से जेजेपी के प्रत्याशी हैं। उनका मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और भाजपा के मौजूदा सांसद रमेश कौशिक से है। 1980 में इस सीट से देवीलाल ने भी लोकसभा चुनाव लड़ा था।

अर्जुन चौटाला

 

देवीलाल के एक और पड़पोते, ओमप्रकाश चौटाला के पोते और विधायक अभय चौटाला के छोटे पुत्र 27 वर्षीय अर्जुन चौटाला कुरुक्षेत्र से इंडियन नेशनल लोकदल के प्रत्याशी हैं। उनका मुकाबला भाजपा के नायब सिंह सैनी और कांग्रेस के निर्मल सिंह से है। इस सीट पर गैर-जाट उम्मीदवारों के बीच इनेलो की नजर कुरुक्षेत्र के साढ़े तीन लाख जाट मतदाताओं पर है। अर्जुन चौटाला आउटलुक से बातचीत में अपने नाम को कुरुक्षेत्र चुनाव के लिए भाग्यशाली बताते हैं कि जैसे अर्जुन ने कुरुक्षेत्र के महाभारत में जीत हासिल की थी, वैसे ही वे भी कुरुक्षेत्र का चुनावी रण जीत कर क्षेत्र का विकास करेंगे।

भव्य बिश्नोई

हिसार लोकसभा सीट से राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के पोते भव्य बिश्नोई कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। पहली बार चुनाव मैदान में उतरे भव्य बिश्नोई  को टिकट दिलाने के लिए उनके विधायक माता-पिता कुलदीप बिश्नोई और रेणुका बिश्नोई को कांग्रेस आलाकमान पर काफी दबाव डालना पड़ा था। भजनलाल की तीसरी पीढ़ी के भव्य बिश्नोई ने ऑक्सफोर्ड के सेंट एंटोनी कॉलेज से साइंस में पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री हासिल की है। 26 वर्षीय भव्य इस बार प्रदेश के सबसे युवा उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में उतरे हैं।

श्रुति चौधरी

 

हरियाणा के तीसरे लाल यानी पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की पोती श्रुति चौधरी तीसरी बार चुनाव मैदान में हैं। कांग्रेस के टिकट पर भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से उनका मुकाबला भाजपा के सांसद धर्मवीर से है। लेकिन बंसीलाल परिवार के साथ अनबन के चलते श्रुति का साथ अकेली उनकी विधायक मां किरण चौधरी दे रही हैं। जबकि परिवार के अन्य सदस्यों ने चुनाव प्रचार से दूरी बनाई हुई है।

दीपेंद्र सिंह हुड्डा

संविधान सभा के सदस्य रहे चौधरी रणबीर सिंह के पौत्र और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पुत्र दीपेंद्र सिंह हुड्डा भी चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस से पहली बार हुड्डा पिता-पुत्र दोनों ही अलग-अलग क्षेत्रों से चुनाव लड़ रहे हैं। भूपेंद्र सिंह हुड्डा सोनीपत से भाजपा के मौजूदा सांसद रमेश कौशिक को चुनौती दे रहे हैं जबकि दीपेंद्र सिंह हुड्डा रोहतक से मैदान में हैं। वे चौथी बार अपने दादा स्वर्गीय रणबीर सिंह हुड्डा और पूर्व मुख्यमंत्री पिता भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सियासी विरासत बचाने की कोशिश कर रहे हैं। उनका मुकाबला भाजपा के बाहरी उम्मीदवार अरविंद शर्मा से है। 2005 में रोहतक से सांसद रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा के मुख्यमंत्री बनने पर हुए उपचुनाव लड़ने के लिए दीपेंद्र ने अमेरिकी कंपनी साबरे कॉरपोरेशन की नौकरी छोड़ दी। इनके जीतने से कांग्रेस को भी गढ़ वापस पाने में मदद मिलेगी।

बृजेंद्र सिंह

आजादी से पहले पंजाब महाप्रांत पर शासन करने वाली यूनियनिस्ट पार्टी के संस्थापक सर छोटू राम की भी सियासी विरासत उनका परिवार ही आगे बढ़ा रहा है। उनके नाती (बेटी के पुत्र) केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह भी चुनावी मैदान में हैं। उन्हें हिसार से भाजपा का टिकट मिला है। चुनाव लड़ने की खातिर उन्होंने 21 साल की आइएएस की नौकरी छोड़ दी। चौधरी बीरेंद्र सिंह ने अपने बेटे बृजेंद्र सिंह को सियासी वारिस घोषित करके केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा की सदस्यता तक से इस्तीफा देने की पेशकश कर दी है। बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता भी उचाना से विधायक हैं। बीरेंद्र सिंह ने आउटलुक से बातचीत में कहा कि वह सक्रिय सियायत से रिटायर होने के मूड में हैं। उनकी और उनके नाना सर छोटू राम की सियासी विरासत को अब उनके बेटे बृजेंद्र आगे बढ़ाएंगे।

कुलदीप शर्मा

राज्य की करनाल लोकसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार कुलदीप शर्मा चिरंजीलाल शर्मा के पुत्र हैं। वह भी अपने पिता की सियासी विरासत बचाने के लिए जोर लगा रहे हैं। उनके पिता चिरंजीलाल शर्मा तीन बार सांसद रह चुके हैं।

कैप्टन अजय यादव

1989 से लेकर 2009 तक लगातार छह बार रेवाड़ी से कांग्रेस के विधायक रहे कैप्टन अजय यादव अपने विधायक पिता राव अभय सिंह की विरासत संभालने का प्रयास कर रहे हैं। वह इस बार गुरुग्राम लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्याशी हैं।

राव इंद्रजीत सिंह

गुरुग्राम में कैप्टन अजय यादव की टक्कर पूर्व मुख्यमंत्री राव बिरेंद्र सिंह के बेटे केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह से है, जो भाजपा के प्रत्याशी हैं। राव इंद्रजीत सिंह 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी राजा राव तुला राम के वंशज हैं।

देवीलाल की सियासी विरासत के लिए दूसरी जंग

चुनावों में देवीलाल के परिवार में दूसरी बार जंग होने जा जारी है। पहली बार देवीलाल के चार बेटों प्रताप चौटाला, ओमप्रकाश चौटाला, रणजीत सिंह और जगदीश चौटाला के बीच राजनीतिक विरासत संभालने की जंग छिड़ी थी, जिसमें ओमप्रकाश चौटाला को सफलता मिली। वह राज्य के मुख्यमंत्री तक बनने में कामयाब रहे। प्रताप चौटाला एक बार विधायक बने और रणजीत सिंह कांग्रेस की राजनीति करते हुए सांसद बन पाए। जगदीश चौटाला राजनीतिक विरासत की जंग में कुछ खास नहीं कर पाए। हालांकि इन चारों के पुत्र-पुत्रियों के बीच वर्चस्व की लड़ाई अब भी कायम है।

देवीलाल परिवार की दूसरी जंग अब पोतों अजय, अभय और पड़पोतों दुष्यंत, दिग्विजय, कर्ण और अर्जुन के बीच है। इनेलो में विभाजन के बाद ओमप्रकाश चौटाला छोटे बेटे अभय चौटाला और पोते कर्ण, अर्जुन के साथ हैं। ओमप्रकाश चौटाला अपनी मूल पार्टी के ही साथ हैं। अब देखना दिलचस्प होगा कि इस चुनाव में जेजेपी क्या कमाल दिखाती है और इनेलो की कितनी ताकत दिखाई देती है। दुष्यंत चौटाला की जेजेपी के आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन से नए राजनीतिक समीकरण भी बने हैं।

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