राज्य में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो)-कांग्रेस गठबंधन सरकार में अनबन की खबरों से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को एक साथ कई मोर्चों पर जूझना पड़ रहा है। एक तरफ कोविड-19 का बढ़ता संक्रमण है, तो दूसरी तरफ सहयोगी पार्टी कांग्रेस का सरकार पर दबाव है। कांग्रेस सरकार में हिस्सेदारी को लेकर दबाव बना रही है, लेकिन पार्टी के भीतर भी खींचतान चल रही है। इससे राजनैतिक सरगर्मियां बढ़ गई हैं। गठबंधन सरकार को बने अभी बहुत दिन नहीं हुए हैं, लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तथा राज्य के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने यह कहकर तहलका मचा दिया कि कांग्रेस के चार विधायकों पर भाजपा डोरे डाल रही है। सूत्रों का कहना है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो सरकार अस्थिर हो सकती है। इसके पीछे कांग्रेस असंतुष्टों का वह दावा है, जिसमें उनका कहना है कि नौ विधायक उनके साथ हैं। नौ विधायकों के एकजुट होने का मतलब हेमंत सरकार के लिए चिंता का विषय है।
हालांकि रामेश्वर उरांव के बयान को दबाव की राजनीति के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि उरांव के बयान के एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री ने 18 आइएएस अधिकारियों का तबादला किया था। इन तबादलों में ज्यादातर जिलों के उपायुक्त बदले गए थे। इससे पहले अप्रैल में एक साथ 35 आइपीएस के ट्रांसफर हुए थे। लेकिन इन तबादलों को अलग नजरिए से देखा जा रहा है। खुद रामेश्वेर उरांव के विभाग के 70 वाणिज्यिकर अधिकारी बदले गए हैं। वहीं कांग्रेस के ही ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम ने 90 प्रखंड विकास अधिकारियों का तबादला कर दिया। कांग्रेस से ही आने वाले स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने कई सिविल सर्जनों और चिकित्सा पदाधिकारियों का तबादला किया। कांग्रेस के खाते से बने मंत्रियों के विभागों में हुए बड़ी संख्या में तबादलों को कांग्रेस को संतुष्ट करने का कदम माना जा रहा है।
बावजूद इसके कांग्रेस में विरोध के स्वर थम नहीं रहे हैं। कभी रामेश्वर उरांव के करीबी माने जाने वाले राज्यसभा सदस्य धीरज प्रसाद साहू असंतुष्टों का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्हीं के नेतृत्व में कांग्रेस के तीन विधायक इरफान अंसारी, उमाशंकर अकेला और राजेश कच्छप सरकार और प्रदेश नेतृत्व के खिलाफ शिकायत लेकर दिल्ली गए थे। वहां इन लोगों ने सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल और गुलाम नबी आजाद से मुलाकात की और बताया कि सरकार में उनकी सुनी नहीं जा रही। यह खेमा प्रदेश नेतृत्व में बदलाव चाहता है। साथ ही, जो विधायक मंत्री नहीं बन सके उनके लिए मंत्री स्तर के पदों यानी निगमों में कोई पद चाहता है।
उधर, उरांव ने भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास का नाम लिए बिना कहा, “जमशेदपुर विधायकों के संपर्क में हैं।” लेकिन रघुबर दास ने कांग्रेस की एकजुटता पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। उनका कहना है कि वह यह कैसे बता सकते हैं कि कौन किसके संपर्क में है। वे कहते हैं, “कांग्रेस में एकजुटता नहीं है, नेतृत्व से नाराजगी के कारण ही यह सब हो रहा है।” रघुवर की बात पर सियासी गलियारों में इसलिए भी विश्वास किया जा रहा है कि कांग्रेस का एक असंतुष्ट खेमा, राज्यसभा सदस्य धीरज साहू के नेतृत्व में पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष इरफान अंसारी सहित तीन विधायक दिल्ली जाकर पार्टी आलाकमान को शिकायतों का पुलिंदा पकड़ा आया है।
असंतुष्टों की एक व्यक्ति एक पद की भी मांग है। रामेश्वर उरांव का कहना है, “पार्टी आलाकमान का जो फैसला होगा, वह मुझे मान्य है। मैं उनकी बदौलत पार्टी में नहीं हूं। न उन्होंने मुझे टिकट दिया है न ही उन्हें मुझे मंत्री बनाने का अधिकार है।” इस बीच प्रदेश कांग्रेस नेता राजेश ठाकुर मौजूदा स्थितियों से काफी आहत हैं। वे कहते हैं, “किसी को पार्टी से कितनी भी शिकायत हो, उस शिकायत को रखने के लिए पार्टी फोरम ही सबसे मुनासिब जगह है। मीडिया के माध्यम से असंतोष उछालना किसी तरह मुनासिब नहीं है। जहां तक भाजपा की बात है कि उसे कोई लाभ नहीं मिलने वाला क्योंकि जनता जान चुकी है कि चुनी हुई सरकार को साजिश कर गिराने की उनकी आदत है। झारखंड में इस साजिश का कोई असर नहीं पड़ने वाला।” कांग्रेस के असंतुष्ट विधायक आने वाले दिनों में अपनी गतिविधि तेज कर सकते हैं। वे लोग दिल्ली को साधने में लगे हुए हैं। कांग्रेस नेतृत्व भी झामुमो के साथ संबंध मजबूत करने और पार्टी के भीतर दोबारा सब ठीक करने में लगा हुआ है। पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास कहते हैं, “तबादलों के जरिए विरोध की आग बुझाने की कोशिश की गई है।” लेकिन जानकारों का मानना है कि जैसे ही कोरोना संकट कम होगा और सरकार में कामकाज शुरू होगा तो ठेका-पट्टे को लेकर विवाद की आग और बढ़ेगी। भाजपा नेतृत्व होने वाले इन्हीं विवादों पर नजर बनाए हुए है और असंतुष्टों का मूड भांप रही है।
हालांकि झामुमो के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य इसे कांग्रेस का अंदरूनी मामला कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं। कांग्रेस के एक खेमे में असंतोष पर बिना नाम लिए उनका कहना है कि धीरज साहू प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहते हैं। वे भाजपा सासंद निशिकांत दुबे के उस आरोप को भी सिरे से नकार देते हैं, जिसमें दुबे ने आरोप लगाया था कि झारखंड के अग्रवाल बंधुओं और उनकी कंपनी ने झामुमो को चंदा दिया था। गोड्डा से भाजपा सांसद दुबे पहले से ही हेमंत सरकार के खिलाफ काफी मुखर हैं। विवाद निशिकांत दुबे की पत्नी के नाम एक जमीन से शुरू हुआ था। इसके बाद भट्टाचार्य और दुबे के बीच ट्विटर वार छिड़ गया। फिर तो दुबे ने हेमंत सोरेन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उन्होंने अग्रवाल बंधुओं की कोलकाता में 22 मंजिली इमारत, रांची और उसके आसपास तीन-चार सौ एकड़ जमीन खरीद में नेताओं के पैसे लगने को लेकर सवाल उठाया है। दुबे का कहना है कि इन प्रॉपर्टी खरीद की जांच की जानी चाहिए। बदले में झामुमो ने निशिकांत दुबे की दिल्ली विश्वविद्यालय से मैनेजमेंट की डिग्री और उम्र प्रमाण पत्र को फर्जी बताते हुए चुनाव आयोग से उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
कांग्रेस के अंदरूनी संकट के साथ झामुमो का संकट भी बढ़ता जा रहा है। करीब 22 करोड़ रुपये की आय से अधिक आमदनी के आरोप की वजह से मुख्यमंत्री के ओएसडी गोपाल तिवारी की सीएमओ से छुट्टी कर दी गई और उनके खिलाफ निगरानी जांच बैठा दी गई। झामुमो के कोषाध्यक्ष रवि केजरीवाल को भी पद से हटा दिया गया। लेकिन साफ तौर पर बताया नहीं जा रहा कि दोनों को क्यों हटाया गया। दोनों का जाना इसलिए भी चर्चा का विषय है क्योंकि दोनों की ही हैसियत ज्यादा थी। हालांकि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही इसे पार्टी की अंदरूनी राजनीति का हिस्सा बताते हैं।
इन सबके बीच चौतरफा घिरे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को केंद्र सरकार ने अलग ही तरह के धर्मसंकट में डाल दिया है। कुछ दिनों पहले केंद्रीय कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी ने अचानक रांची पहुंच कर कई दशक से लंबित मांगों के मद्देनजर कोयला खदानों की जमीन के एवज में सोरेन सरकार को 250 करोड़ रुपये की रॉयल्टी दी है। राजनैतिक जानकारों का कहना है कि यह हेमंत सरकार को भाजपा का चारा है। जोशी करीब एक घंटे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के आवास पर रुके और उनके साथ कोयला खदानों की नीलामी सहित अन्य मुद्दों पर बात की। उसके बाद हेमंत सोरेन के सुर भी बदले हुए थे।
हेमंत सोरेन ने बाद में कहा कि ऐसा समन्वय पहले हुआ होता तो झारखंड का स्टैंड अलग होता। कमर्शियल माइनिंग के खिलाफ हेमंत सरकार सुप्रीम कोर्ट गई है। केंद्र की यह महत्वाकांक्षी योजना है, ऐसे में झारखंड का सुप्रीम कोर्ट जाना उसे रास नहीं आया था। कोयला खदानों की कामर्शियल माइनिंग से केंद्र से हेमंत के तल्ख हुए रिश्तों पर मरहम लगाने का काम केंद्रीय जनजातीय कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा को सौंपा गया था। मुंडा जब झारखंड के मुख्यमंत्री थे, तब सोरेन उप-मुख्यमंत्री थे। धुर विरोधी झामुमो को भाजपा के करीब लाने का श्रेय भी मुंडा को ही जाता है। बहरहाल, झामुमो और कांग्रेस में टकराव बढ़ता है तो ये चर्चाएं और गरम हो सकती हैं। ऐसा हुआ तो कर्नाटक, मध्य प्रदेश और राजस्थान के उठापटक का नजारा झारखंड में भी दोहराया जा सकता है।