Advertisement

राजनीतिक मर्यादा का चीर हरण

ऐसी क्या संवैधानिक इमरजेंसी थी कि रातों-रात राष्ट्रपति शासन हटाकर नया मुख्यमंत्री बना दिया गया
तीन दिन की सरकार: शपथ लेने के बाद फड़नवीस और अजित पवार

महाराष्ट्र में जिस तरह रातों-रात राष्ट्रपति शासन हटाकर 23 नवंबर 2019 की सुबह देवेंद्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री और अजित पवार को उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई, वह लोकतंत्र की हत्या और हर तरह की राजनीतिक मर्यादा का चीर हरण है। इस चीर हरण में भारत के राष्ट्रपति, महाराष्ट्र के राज्यपाल, प्रधानमंत्री, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, देवेंद्र फड़नवीस और अजित पवार शामिल थे। 22 नवंबर की रात तक यह बात साफ हो गई थी कि महाराष्ट्र में शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस मिलकर सरकार बनाने जा रही हैं। इसके लिए उनमें समझौता हो चुका था। तीनों पार्टियों के पास स्पष्ट बहुमत था, लेकिन उसी रात पूरा षड्यंत्र रचा गया।

पहले तो भाजपा कह रही थी कि सिंचाई घोटाले और सहकारी बैंक घोटाले में अजित पवार के खिलाफ संगीन आरोप हैं, वे कई हजार करोड़ रुपये के घोटाले में शामिल हैं। फड़नवीस ने कुछ दिनों पहले ही बोला था कि हम उनको जेल भेजेंगे। बाद में उनको शायद यह लालच दिया गया कि अगर वह भाजपा के साथ आए और सरकार में शामिल हुए तो उन्हें छोड़ दिया जाएगा। उसके बाद रात 12 बजे से लेकर सुबह साढ़े पांच बजे के बीच कई घटनाएं होती हैं। प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष से राज्यपाल बात करते हैं। उनसे सुबह-सुबह देवेंद्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने के लिए कहा जाता है। लेकिन इससे पहले राज्य से राष्ट्रपति शासन हटाने की जरूरत थी। सामान्य तौर पर इसके लिए पहले राज्यपाल की तरफ से सिफारिश भेजी जाती है, केंद्रीय कैबिनेट उस पर विचार करती है और कैबिनेट की मंजूरी के बाद राष्ट्रपति उस पर दस्तखत करता है।

यहां कई नियमों का उल्लंघन किया गया। पहली बात तो यह कि रात में जिस तरह से राष्ट्रपति शासन हटाया गया, वही गलत है। वह बिना कैबिनेट की बैठक के नहीं हो सकता, जबकि कैबिनेट की कोई बैठक तो हुई ही नहीं। सरकार अब कह रही है कि प्रधानमंत्री को यह अधिकार है कि कोई आपात स्थिति हो तो वह खुद कैबिनेट की तरफ से फैसला ले सकते हैं। लेकिन यहां क्या संवैधानिक इमरजेंसी थी कि रातो-रात राष्ट्रपति शासन हटाकर नया मुख्यमंत्री बना दिया गया। महाराष्ट्र में थोड़े दिन पहले ही तो राष्ट्रपति शासन लगाया गया था, वह भी गैरकानूनी तरीके से क्योंकि राकांपा, शिवसेना और कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए 24 घंटे का समय भी नहीं दिया गया था।

दूसरी बात, शपथ दिलवाने से पहले राज्यपाल को यह देखना चाहिए था कि बहुमत किस पार्टी के पास है। राज्यपाल ने सिर्फ भाजपा के इस आश्वासन पर कि राकांपा उसे समर्थन दे रही है, फड़नवीस को शपथ दिलवा दी। उन्होंने यह भी नहीं देखा कि राकांपा के विधायक किसके साथ हैं। उनकी राय लिए बगैर फैसला कर लिया गया। बाद में कहा गया कि अजित पवार ने राकांपा विधायकों के दस्तखत पेश कर दिए थे, लेकिन विधायकों का कहना है कि उनसे दस्तखत तो अटेंडेंस शीट पर कराए गए थे। विधायकों के अनुसार, उनसे कभी यह नहीं कहा गया कि भाजपा की सरकार को समर्थन दे रहे हैं। आखिर राज्यपाल ने किस आधार पर तय किया कि भाजपा के पास बहुमत है? पहले तो भाजपा ने सरकार बनाने से मना कर दिया था। फड़नवीस ने राकांपा नेताओं के बारे में कहा था कि ये बहुत भ्रष्ट हैं, कभी उनके साथ नाता नहीं जोड़ेंगे, उनको जेल भेजेंगे। फिर भी बिना यह देखे कि विधायक किसके साथ हैं, राज्यपाल ने उनको रातो-रात मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा दी, जिससे तोड़फोड़ की जा सके और विधायकों को खरीदा जा सके।

इससे ज्यादा राजनीतिक बेईमानी और हो ही नहीं सकती। बेईमानी इसलिए भी क्योंकि रात के अंधेरे में यह सब करने की क्या जरूरत थी? हर तरह से लोकतंत्र और राजनीतिक मर्यादाओं का गला घोंटा गया। राष्ट्रपति शासन हटाने और नया मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री नियुक्त करने की किसी को भनक नहीं लगी। दूरदर्शन और आकाशवाणी को भी इसकी खबर नहीं दी गई। इससे यह भी जाहिर होता है कि भाजपा नेतृत्व को राजनीतिक मर्यादाओं या नियमों की परवाह नहीं है। सरकार बनाने के लिए वे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), सीबीआइ, इनकम टैक्स जैसी सरकारी एजेंसियों का भी दुरुपयोग करते हैं। राकांपा, कांग्रेस और शिवसेना की सरकार कितने दिन चलेगी, क्या कर्नाटक जैसी घटना की पुनरावृत्ति होगी, यह कहना बड़ा मुश्किल है। लेकिन राजनीतिक अनैतिकता का जो खेल चल रहा है, इससे लोग तंग आ चुके हैं।

(लेखक सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील हैं, यह लेख एस.के. सिंह से बातचीत पर आधारित है)

- राज्यपाल ने भाजपा के सिर्फ इस आश्वासन पर कि राकांपा उसे समर्थन दे रही है, फड़नवीस को शपथ दिलवा दी। यह नहीं देखा कि राकांपा विधायक किसके साथ हैं

Advertisement
Advertisement
Advertisement