कोरोना संकट में लोगों ने महसूस किया कि दुख की इस घड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं होते तो क्या हाल होता? यह सही है कि कोविड-19 महामारी से बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए, लेकिन लोगों को यह भी पता है कि 100 साल के सबसे बड़े संकट से निपटने की अगर किसी में क्षमता है तो वह प्रधानमंत्री मोदी में ही है। ठोस रणनीति के तहत केंद्र सरकार ने दवा, ऑक्सीजन, वैक्सीन सभी जरूरी चीजों की व्यवस्था की और आज उसी का परिणाम है कि कोरोना की दूसर लहर धीमी पड़ रही है। जब लहर अपने चरम पर थी तो स्थितियां कुछ समय के लिए जरूर चिंताजनक थीं। देश के सभी प्रमुख क्षेत्रों में चरम की स्थिति में दिक्कतें हुईं। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल सभी राज्यों में ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़ा। लेकिन केंद्र सरकार ने तत्परता दिखाई और उसी का परिणाम है कि यह संकट बहुत जल्द नियंत्रण में आ गया। उत्तर प्रदेश का ही उदाहरण लीजिए, मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने जिस तरह चीजों को संभाला वह मिसाल है। वे एकमात्र मुख्यमंत्री हैं जो कोरोना पीड़ित होने के बावजूद काम करते रहे। उन्होंने जमीन पर उतर कर काम किया। आइसीयू में गए, व्यवस्थाओं को दुरुस्त किया। इसी का परिणाम है कि उत्तर प्रदेश जैसे घनी आबादी वाले राज्य में भी कोरोना बेकाबू नहीं हो पाया।
यह सकारात्मक भूमिका निभाने का समय है। लेकिन वैक्सीन को लेकर विपक्ष ने क्या किया? उनका रवैया चौंकाने वाला था। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव तो कोरोना वैक्सीन को भी ‘भाजपा की वैक्सीन’ बता रहे थे। कह रहे थे मैं भाजपा की वैक्सीन नहीं लगवाउंगा। खैर अब उन्हें समझ में आ गया है। उनके पिता मुलायम सिंह यादव जी ने वैक्सीन लगवाई है, और अखिलेश भी खुद वैक्सीन लगवाने की बात कर रहे हैं।
इसी तरह विपक्ष ने महामारी के दौरान सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर सवाल उठाए, जबकि यहां भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरंदेशी है। यह सभी को पता है कि मौजूदा संसद आने वाले समय में पर्याप्त नहीं होगी। 2026 के बाद सीटों की संख्या 750 हो जाएगी। मौजूदा स्थिति में 600 सीटों से ज्यादा क्षमता नहीं हो सकती है। ऐसे में अगर अभी से कदम नहीं उठाएंगे तो क्या होगा? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन के सामने राहुल गांधी का विजन बेहद कमजोर है। राहुल गांधी बच्चों जैसा व्यवहार कर रहे हैं।
एजेंडे के तहत चाहे जितना दुष्प्रचार कर लिया जाए, जनता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा पर ही भरोसा करती है
जहां तक बंगाल चुनावों की बात है तो चुनाव परिणामों को देखने का सबका नजरिया है। पार्टी तीन सीटों से 77 सीटों पर पहुंच गई। यह 25 गुना से ज्यादा बढ़ोतरी है। यह भी समझना चाहिए कि हमने बंगाल में चुनाव नहीं, जंग लड़ी है। इस प्रदर्शन के बाद कोई कहे कि भाजपा ने खराब प्रदर्शन किया है, तो यह उसका नजरिया है। आज जैसी स्थिति बंगाल में हमारी है, वैसी स्थिति में ही हमने कर्नाटक में अपनी राह बनाई थी। वहां हम चार विधायकों से 40 हुए और फिर सरकार में आ गए।
उत्तर प्रदेश की बात करते हैं। 9 जून को कांग्रेस के प्रमुख नेता जितिन प्रसाद भाजपा में शामिल हुए हैं। यह हमारी बढ़ती ताकत और भरोसे को दिखाता है। जिस तरह मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने काम किया है, उससे मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि हम 2017 से ज्यादा मजबूत होकर सत्ता में आएंगे। हमारे विरोधी अगर यह सोचते हैं कि वे एकजुट होकर हमें परास्त कर देंगे तो यह उनकी गलतफहमी है। उत्तर प्रदेश विधानसभा और लोकसभा चुनावों में मिलकर चुनाव लड़ने का परिणाम सब देख चुके हैं। हमारे कामों के आधार पर लोग हमें जिताते रहे हैं और जिताएंगे। विकासवादी नीतियां, रक्षा नीति, अनुच्छेद 370, विदेश नीति और राम मंदिर निर्माण जैसे कदम हमारे प्रति लोगों का भरोसा बढ़ाते हैं। कुछ लोग यह भ्रम फैलाने में लगे हैं कि उत्तर प्रदेश में विधायक नाराज हैं, तो कर्नाटक में नाराजगी है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं है, यह अर्बन नक्सल का षडयंत्र है। कम्युनिस्ट चुनाव नहीं जीत पाए तो वे भाजपा के खिलाफ दुष्प्रचार का काम कर रहे हैं। एक बात और समझनी चाहिए। भाजपा दूसरी पार्टियों की तरह अलोकतांत्रिक नहीं है। भाजपा में सबको अपनी बात कहने का मौका मिलता है। यही हमारी मजबूती है।
कुछ राजनीतिक विश्लेषक एजेंडे के तहत सरकार की छवि कमजोर करने में लगे रहते हैं। उन्हें लगता है कि कोविड के बाद भाजपा कमजोर हो जाएगी। उन्हें जमीनी हकीकत का अंदाजा नहीं है। कोविड-19 की पहली लहर के बाद बंगाल में पार्टी 3 से 77 सीटों पर पहुंच गई। इसी तरह गुजरात के सारे चुनाव पार्टी ने जीते हैं। ऐसा ही दुष्प्रचार संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने के रूप में किया जाता है। लेकिन आलोचक यह भूल जाते है कि सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआइ को तोता यूपीए के कार्यकाल में कहा था। मैं एक बार फिर कहता हूं कि एजेंडे के तहत चाहे जितना दुष्प्रचार कर लिया जाए, जनता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा पर ही भरोसा करती है। आने वाले चुनावों में यह और स्पष्ट हो जाएगा।
(लेखक भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं, लेख प्रशांत श्रीवास्तव से बातचीत पर आधारित)