आपको याद होगी 20 मई 2014 की वह तस्वीर जो सुर्खियों में छाई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद भवन पहुंचे और सीढ़ियों पर शीश नवाया था। उसी दिन सेंट्रल हॉल में अपने भाषण में उन्होंने संसद को ‘लोकतंत्र का मंदिर’ बताया था। तब कौन जानता था कि वे इस ‘मंदिर’ को ही बदल देना चाहते हैं। दूसरा कार्यकाल शुरू होने के कुछ ही महीने बाद, सितंबर 2019 में मोदी सरकार ने सेंट्रल विस्टा के नवनिर्माण का ऐलान कर दिया। नई संसद ही नहीं, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री आवास भी नए बनेंगे। प्रधानमंत्री ने पिछले साल 10 दिसंबर को प्रोजेक्ट की नींव रखी थी। आज कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर की चपेट में जब रोजाना देश में हजारों और दिल्ली में सैकड़ों लोगों की मौत हो रही है, लोग अस्पतालों, दवाओं और ऑक्सीजन की किल्लत से जूझ रहे हैं, लोगों को बचाने के लिए दिल्ली में लॉकडाउन है, तब भी इस प्रोजेक्ट पर कार्य अनवरत जारी रखने पर सवाल उठ रहे हैं। दिल्ली में ही चांदनी चौक रीडेवलपमेंट और प्रगति मैदान इंटीग्रेटेड ट्रांजिट कॉरिडोर जैसे प्रोजेक्ट का काम रोक दिया गया, जबकि मई के अंत तक इनका काम पूरा हो जाना था। लेकिन सेंट्रल विस्टा के ‘ड्रीम प्रोजेक्ट’ का काम एक पल भी न रुके, इसके लिए इसे आवश्यक सेवा का दर्जा देते हुए तीनों शिफ्ट में काम करने की अनुमति दे दी गई।
राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट के हेक्सागन तक की जगह को सेंट्रल विस्टा कहते हैं। करीब सौ साल पहले ब्रिटिश शासनकाल में जब कोलकाता की जगह दिल्ली को राजधानी बनाने का फैसला हुआ, तब आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने इसका प्लान बनाया था। यहां पुनर्निमाण कुछ दिन रोकने के लिए ट्रांसलेटर अन्य मल्होत्रा और डॉक्युमेंट्री फिल्म निर्माता सोहेल हाशमी ने दिल्ली हाइकोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट ने सुनवाई की तारीख 17 मई तय कर दी तो याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट गए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। सरकार ने हाइकोर्ट में कहा कि किसी न किसी बहाने शुरू से इस प्रोजेक्ट को रोकने की कोशिश हो रही है। इसलिए याचिका खारिज कर दी जानी चाहिए। इससे पहले 5 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने 2-1 से सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को जारी रखने के पक्ष में फैसला दिया था।
कितना जरूरीः नई संसद का मॉडल, इंडिया गेट के सामने चल रही खुदाई और 2014 में संसद की सीढ़ियों पर शीश नवाते मोदी
ऐसे समय जब देश का स्वास्थ्य ढांचा चरमराया हुआ है और दूसरे देशों से मदद लेनी पड़ रही है, इस प्रोजेक्ट पर करोड़ों खर्च करने का व्यापक विरोध हो रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे ‘आपराधिक बर्बादी’ बताते हुए तंज कसा, “सेंट्रल विस्टा आवश्यक नहीं, विजन वाली सरकार आवश्यक है।” उन्होंने कहा, “सेंट्रल विस्टा के लिए 13,450 करोड़, या 45 करोड़ भारतीयों को वैक्सीन की पूरी डोज, या एक करोड़ ऑक्सीजन सिलिंडर, या न्याय योजना के तहत दो करोड़ परिवारों को छह-छह हजार करोड़ रुपये। पीएम का दंभ लोगों के जीवन से बड़ा है।”
तृणमूल सांसद डेरेक 'ओ ब्रायन का कहना है कि प्रोजेक्ट की रकम से 80 फीसदी आबादी को कोविड का टीका लग सकता है। ऑक्सीजन सिलिंडर, पीपीई किट और दवाएं खरीद कर लोगों की जान बचाई जा सकती है। भाजपा की सहयोगी रह चुकी शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में लिखा है कि नेपाल, म्यांमार और श्रीलंका ने भी ‘आत्मनिर्भर भारत’ को मदद की पेशकश की है, लेकिन सरकार सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का काम रोकने को तैयार नहीं है।
इतनी आलोचनाओं के बावजूद सरकार प्रोजेक्ट को वाजिब ठहराने में लगी है। शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने ट्वीट किया कि केंद्र सरकार इस प्रोजेक्ट पर कई वर्षों में 20,000 करोड़ रुपये खर्च करेगी। सरकार ने इसकी दोगुनी रकम टीकाकरण के लिए रखी है। उन्होंने कहा, “अभी सिर्फ नए संसद भवन और सेंट्रल विस्टा एवेन्यू का निर्माण शुरू किया गया है, जिन पर क्रमशः 862 करोड़ और 477 करोड़ रुपये खर्च का अनुमान है।” लेकिन पुरी की यह दलील ज्यादा कारगर नहीं लगती, क्योंकि प्रोजेक्ट की टाइमलाइन को देखते हुए बाकी निर्माण कार्य भी जल्दी ही शुरू किए जा सकते हैं।
पर्यावरण मंत्रालय ने पिछले महीने, 12 अप्रैल को प्रधानमंत्री आवास, एसपीजी के ठिकाने, सेंट्रल कॉन्फ्रेंस सेंटर, उपराष्ट्रपति एनक्लेव और 10 ऑफिस कॉम्पलेक्स के निर्माण को मंजूरी दी। उपराष्ट्रपति एनक्लेव मई 2022 तक, प्रधानमंत्री आवास और एसपीजी का ठिकाना दिसंबर 2022 तक, इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स की जगह बनने वाले तीन ऑफिस कॉम्प्लेक्स मई 2023 तक, सात ऑफिस कॉम्प्लेक्स मार्च 2024 से जून 2025 तक और सेंट्रल कॉन्फ्रेंस सेंटर दिसंबर 2026 तक बनकर तैयार होंगे।
प्रोजेक्ट के विरोधियों का कहना है कि इसकी अवधारणा भाजपा नीत सरकार के मन में शुरू से थी, तभी तो दिल्ली को यूनेस्को से ‘वर्ल्ड हेरिटेज सिटी’ घोषित कराने का प्रस्ताव सरकार ने मई 2015 में वापस ले लिया था। पुरातत्व विभाग ने सितंबर 2011 में यूनेस्को को यह प्रस्ताव दिया था। सरकार की दलील थी कि हेरिटेज घोषित होने पर राजधानी में विकास कार्य रुक जाएंगे। विस्टा प्रोजेक्ट की घोषणा सितंबर 2019 में हुई थी, उसी साल नवंबर में डिजाइन पहली बार सार्वजनिक किया गया। प्रोजेक्ट भले शहरी विकास मंत्रालय के अधीन आता हो, लेकिन जानकारों के अनुसार, इसका काम पूरी तरह प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की देखरेख में हो रहा है।
इस प्रोजेक्ट के लिए जिन भवनों को गिराया जाएगा उनमें इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स, शास्त्री भवन, कृषि भवन, विज्ञान भवन, उप राष्ट्रपति निवास, राष्ट्रीय संग्रहालय, जवाहर भवन, निर्माण भवन, उद्योग भवन, रक्षा भवन और राष्ट्रीय अभिलेखागार का कुछ हिस्सा शामिल हैं। कुल मिलाकर 4.5 लाख वर्ग मीटर क्षेत्र में निर्माण को ढहाया जाएगा। राष्ट्रीय संग्रहालय में हजारों मूल अभिलेख, बहुमूल्य सिक्के, पेंटिंग, जेम्स ज्वेलरी वगैरह हैं। राष्ट्रीय अभिलेखागार की जिस एनेक्सी बिल्डिंग को गिराया जाएगा, उसमें भारत के सदियों के इतिहास से जुड़े मूल दस्तावेज हैं। इन्हें रखने के लिए मौजूदा नॉर्थ और साउथ ब्लॉक को संग्रहालय में तब्दील किया जाएगा।
यह प्रोजेक्ट शुरू से विवादों में है। पहले तो इसे मंजूरी देने में अभूतपूर्व तेजी दिखाई गई। नवंबर में डिजाइन आने के बाद दिल्ली विकास प्राधिकरण ने 21 दिसंबर 2019 को ही लैंड यूज बदलने की अधिसूचना जारी कर दी थी। इसके तहत सरकारी दफ्तरों वाले 86 एकड़ क्षेत्र को आवासीय क्षेत्र में बदल दिया गया, जहां प्रधानमंत्री और उप राष्ट्रपति का नया निवास बनना है। पिछले साल जब कोविड के चलते पूरे देश में लॉकडाउन था तो उसी दौरान नए संसद भवन के लिए पर्यावरण मंजूरी दी गई और टेंडर निकाला गया। आमतौर पर ऐसे प्रोजेक्ट पर काफी बहस होती है, लोगों की राय ली जाती है, अध्ययन किए जाते हैं। लेकिन इस प्रोजेक्ट में काफी गोपनीयता बरती गई और छिटपुट सूचनाएं ही बाहर आती रहीं।
विवाद प्रोजेक्ट के कंसल्टेंट बिमल पटेल को लेकर भी है। वे पहले भी प्रधानमंत्री मोदी के कई प्रोजेक्ट में काम कर चुके हैं। इनमें वाराणसी का विश्वनाथ धाम रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट, अहमदाबाद में साबरमती रिवरफ्रंट के अलावा गुजरात के कई प्रोजेक्ट शामिल हैं। 2016 में उन्होंने एक लेख में मोदी की तारीफ की थी और दिल्ली की औपनिवेशिक विरासत को ‘असंगति’ बताते हुए ‘खुद को अतीत की जकड़न से मुक्त करने’ की बात कही थी। इसलिए जब ‘नीलामी’ के बाद पटेल की एचसीपी डिजाइन प्लानिंग एंड मैनेजमेंट फर्म को प्रोजेक्ट का कंसल्टेंट चुना गया तो किसी को आश्चर्य नहीं हुआ।
प्रोजेक्ट का औचित्य बताते हुए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि मौजूदा संसद भवन में जगह की कमी है, ढांचा कमजोर हो रहा है। नई संसद में 900 से 1,200 सांसदों के बैठने की जगह होगी। केंद्र सरकार के अनेक कार्यालय किराए के भवनों में चल रहे हैं, इस प्रोजेक्ट से 1,000 करोड़ रुपये की बचत होगी। शहरी विकास मंत्री के अनुसार यह प्रोजेक्ट ‘मोदी जी का सपना’ है। प्रोजेक्ट को सही ठहराने के लिए उन्होंने यहां तक कह दिया कि मौजूदा भवन (जिन्हें गिराया जाना है) आधुनिक राष्ट्र के लिए अनफिट हैं। जाहिर है कि लुटियंस की दिल्ली के इस इलाके में अब दो साल तक कंस्ट्रक्शन का शोर होगा। कोरोना का प्रकोप खत्म होने के बाद आप वहां घूमने जाएं, तो हो सकता है इंडिया गेट लॉन में बैठकर परिवार के साथ भेलपुरी या आइसक्रीम खाने का मौका ही न मिले।