यात्रा और पर्यटन मेला के दौरान कुमाऊं मंडल विकास निगम के उपाध्यक्ष गोपाल दत्त भट्ट ने कहा, ‘पहले हमें लगा था कि नए मार्ग के खुलने से पुराना मार्ग अपना आकर्षण खो देगा लेकिन इस साल हमें लगभग 3000 तीर्थयात्रियों के आवेदन प्राप्त हुए जो उत्तराखंड में लिपुलेख दर्रे के माध्यम से कैलाश मानसरोवर की यात्रा करना चाहते हैं। दूसरे मार्ग के खुल जाने से हम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।’
उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में निगम पर्यटन यह जिम्मेदारी संभालता है। विदेश मंत्रालय द्वारा किए गए कंप्यूटरीकृत ड्रॉ के बाद इस साल उत्तराखंड मार्ग से मानसरोवर जाने के लिए 1080 यात्रियों का चुनाव किया गया था।
इस यात्रा में पुराने मार्ग से जाने में 25 दिन लगते हैं और लगभग डेढ़ लाख रूपये का खर्च आता है। इस यात्रा मार्ग से यात्रियों के 18 जत्थे जाएंगे।
दूसरा नया मार्ग सिक्किम में नाथूला दर्रे से होकर जाता है जिसमें दो दिन कम समय लगता है लेकिन इस मार्ग से पुराने मार्ग के बजाय 20,000 रूपये ज्यादा का खर्च आता है। इस मार्ग से जाने के लिए यात्रियों की संख्या 250 नियत की गई है। इस मार्ग से यात्रियों को पैदल नहीं जाना होता क्योंकि इस मार्ग से पूरी यात्रा वाहन से पूरी की जा सकती है।
उत्तराखंड मार्ग के अभी भी तीर्थ यात्रियों के बीच लोकप्रिय बने रहने की वजह बताते हुए भट्ट ने कहा कि मानसरोवर तीर्थ की यात्रा के लिए सनातन काल से हमारे संत उत्तराखंड के रास्ते को मूल मार्ग बताते आए हैं।
तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र में स्थित इस पवित्र यात्रा के लिए निगम भारत की तरफ रहने-खाने और परिवहन के सारे इंतजाम करता है।
उत्तराखंड मार्ग से इस पवित्र पर्वत के दर्शन के लिए की जाने वाली यात्रा में 19,500 फुट उंचाई तक की चढ़ाई चढ़नी होती है। यह पवित्र स्थान भगवान शिव से जुड़ा माना जाता है।