अगर पाकिस्तान को लेकर अमेरिका के रवैये की बात की जाए तो वह लगातार पाकिस्तान को नसीहत देता है कि वह आतंकवादियों के विरूद्ध ठोस कार्रवाई करे नहीं तो उसके विरूद्ध सख्त कदम उठाए जाएंगे और जब कार्रवाई करने की बात आती है तो अमेरिका पाकिस्तान के साथ खड़ा हो जाता है। कभी अमेरिका पाकिस्तान को हथियार बेचने के चक्कर में रहता है तो कभी अफगानिस्तान में पाकिस्तान के सहयोग को लेकर वह पाकिस्तान पर मेहरबानियां करता रहता है। इन्हीं दोहरी नीतियों के कारण आतंकवाद पर अंकुश नहीं लग पा रही है।
चीन भी इसी नीति के तहत आगे बढ़ रहा है। जब उसके नेता भारत के साथ बातचीत करते है तो वह आतंकवाद को लेकर गंभीर कदम उठाने की बात करते हैं और जब गंभीर कदम उठाने की बात आती है तो उस समय वह आतंकी देशों का साथ देने लगते हैं। चीन की यह दोहरी नीति हमें अभी कुछ महीनों पहले देखने को मिली जब भारत जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर पर बैन लगाने की कोशिश कर रहा था तो चीन ने इस आतंकवादी पर बैन लगाने के विरूद्ध वोट करके भारत की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। विकसित देशों द्वारा आतंक को लेकर जब विकासशील देशों के विरूद्ध ऐसी कार्रवाई की जाती है तो इससे न केवल आतंकवाद पर लगाम कसने में कठिनाई होती है बल्कि इससे आतंकवादियों के हौसले भी मजबूत होते हैं और फिर वह किसी भी अंजाम से डरते नहीं हैं।
चीन काफी समय से पाकिस्तान की आर्थिक मदद करता रहा है। इसके अलावा चीन, पाकिस्तान की आड़ में भारत के खिलाफ कुछ न कुछ साजिश करता रहा है। कभी वह पाक अधिकृत कश्मीर में सड़कें बनाकर तो कभी ग्वादर बंदरगाह में मदद करके भारत के लिए परेशानी खड़ी करता रहा है। लेकिन अब भारत ने चीन को उसी की भाषा में जवाब देते हुए ईरान के साथ मिलकर चाबहार परियोजना पर समझौता किया है। चाबहार परियोजना भारत के लिए एक रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकती है। चीन और पाकिस्तान के आर्थिक संबंधों को देखते हुए भारत और ईरान की चाबहार परियोजना काफी महत्व रखती है। जैसे चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह का इस्तेमाल किया है उसी तर्ज पर भारत भी चाबहार परियोजना का इस्तेमाल कर सकता है। इस समझौते से चीन को उसी की भाषा में जवाब मिल गया है।
विश्व में आतंकवाद फैलने का प्रमुख कारण यह है कि विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों के विरूद्ध जो नीति अपनाई जाती है वह सही नहीं है। विकसित देश अकसर अपने देश का स्वार्थ देखते हैं और हथियारों की बिक्री के लिए वह विकासशील देशों के खिलाफ दोहरी नीति से काम करते हैं। एक ओर तो वह आतंकी संगठनों को बढ़ावा देते हैं और दूसरी ओर वह उस देश में हथियारों को बेचने का काम करते हैं। जब तक विकसित देश ऐसी हरकतों से बाज नहीं आएंगे तब तक आतंकवाद पर अंकुश नहीं लग सकता है।
अगर हम आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान की बात करें तो पाकिस्तान ने आतंकवादियों को दी जा रही मदद की बात को कभी स्वीकार नहीं किया है लेकिन अब उसके नेता गाहे-बगाहे सच्चाई कबूल कर ही लेते हैं। अभी कुछ दिन पहले पाकिस्तान के एक मंत्री ने कबूल किया है कि देश के आतंकी संगठनों के खिलाफ लीगल एक्शन नहीं लिया जा सकता, क्योंकि इन आतंकी संगठनों के साथ सरकार भी मिली हुई है। एक साक्षात्कार में जब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के लॉ मिनिस्टर राणा सनाउल्लाह से यह सवाल पूछा गया कि आतंकी संगठनों के खिलाफ पाकिस्तान सरकार लीगल एक्शन क्यों नहीं लेती तो उन्होंने कहा- ‘जमात-उद-दावा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों के खिलाफ हम लीगल एक्शन कैसे ले सकते हैं? इनके पीछे तो शासन का हाथ रहता है।’
राणा ने यह भी कहा कि यह आतंकी संगठन भारत के खिलाफ आतंकी साजिशें रचते हैं और हमले करते हैं। भारत का तो शुरू से ही मानना है कि पाकिस्तान आतंकवादियों की मदद करता रहा है और अब यह बात पाकिस्तान के नेता भी स्वीकार कर रहे हैं। जमात और जैश जैसे संगठनों को लेकर पाकिस्तान का रुख हमेशा से अलग रहा है। भारत में कई आतंकी हमलों को अंजाम दे चुके इन संगठनों के बारे में पाकिस्तान ने हमेशा कहा है कि ये संगठन किसी आतंकी साजिश में शामिल नहीं रहे। हालांकि, भारत ने कई बार पाकिस्तान को इसके खिलाफ सबूत दिए हैं। गौरतलब है कि पठानकोट एयरबेस पर इसी साल जो आतंकी हमला किया गया था उस हमले में भी जैश-ए-मोहम्मद का हाथ होने के पुख्ता सबूत मिले थे। भारत इस हमले के मास्टरमाइंड जैश-ए-मोहम्मद चीफ मौलाना मसूद अजहर पर कार्रवाई का इंतजार कर रहा है। इसके अलावा भारत सरकार ने इस हमले के सारे सबूत पाकिस्तान को सौंप दिए हैं। लेकिन अभी तक पाकिस्तान द्वारा उस पर कोई खास कार्रवाई नहीं हुई है।