पहले सत्र में वर्तमान का 'सामाजिक और सांस्कृतिक संकट तथा दलित साहित्य के समक्ष चुनौतियां' विषय की अध्यक्षता करते हुए प्रो. यादव ने कलबुर्गी, पानसारे आदि लेखकों की ह्त्या की चिंता के साथ कहा भक्तिकाल में भी ब्राह्मणवाद विरोधी लेखकों की हत्याएं हुई हैं। उन्होंने कहा कि रामराज्य को आदर्श बनाकर पेश करने वाली चेतना ने दलित संत कवि रैदास की कल्याणकारी राज्य की संकल्पना बेगमपुरा को तवज्जो तक नहीं दी, जबकि रैदास कहते हैं : 'ऐसा चाहूं राज मैं जहं मिलै सबन को अन्न, छोट-बड़े सब सम बसै रैदास रहे प्रसन्न।’ सत्र की शुरुआत में लेखिका रजनी तिलक ने चिंता जताई कि अभी दलित साहित्य अपनी अस्मिता की दावेदारी के साथ दर्ज हो रहा है कि 'दलित शब्द' पर ही मतभेद उठने लगा है।’
रामजस कॉलेज सहित हालिया घटनाओं से चिंतित दलित-विमर्शकार बजरंगबिहारी तिवारी ने कहा, जिस भाषा और भंगिमा के साथ राष्ट्रवाद को परोसा जा रहा, इस पर विचार करना होगा।
युवा आलोचक गंगा सहाय मीणा ने सारे संघर्षों को एक साथ आने का आह्वान करते हुए कहा, अंबेडकरवाद को समझने के लिए जय भीम, लाल सलाम के साथ जय भीम जोहार जयपाल और गंगा साही तक आना होगा।
'समता की समग्र समझ: दलित स्त्रीवाद' विषयक दूसरे सत्र में शोधछात्रा अपराजिता ने ‘सबको सलाम’ के बाद दलित पैंथर घोषणापत्र के रेफरेंस में दलित शब्द के भीतर महिला अस्मिता को शामिल किए जाने की ऐतिहासिकता की बात रखी। रजनी दिसोदिया ने दलित स्त्री के संघर्ष में सामूहिकता और सवर्ण स्त्री के संघर्ष में निजता को चिह्नित किया।
'समता की समग्र समझ : दलित स्त्रीवाद' विषयक सत्र की अध्यक्षता करते हुए कवयित्री/आलोचक अनिता भारती ने दलित स्त्री और सवर्ण स्त्री के लेखन में विषय और ट्रीटमेंट के भेद पर भी बात की।
‘स्त्रीकाल’ के संपादक संजीव चंदन ने व्यवस्था को चुनौती देने के लिए ऐसे आयोजनों पर जोर दिया। अरविंद जैन, महेश ठोलिया और हरेश पंवार ने भी हिस्सा लिया।
संचालन अरुण कुमार और धर्मवीर सिंह ने किया। इस अवसर पर अनिता भारती के अतिथि संपादन में आई 'दलित स्त्रीवाद', मजीद अहमद का 'मेरा कमरा', रजनी तिलक की किताब ‘पत्रकारिता एवं दलित स्त्रीवाद,’ टेकचंद का उपन्यास ‘दाई,’ सुशीला टाकभोरे का उपन्यास ‘तुम्हें बदलना ही होगा’ और कावेरी की आत्मकथा ‘टुकड़ा टुकड़ा जीवन’ आदि का लोकार्पण किया गया। जयराम यादव, चेयरमैन संतोष देवी चैरिटेबल ट्रस्ट, जखराना का विशेष योगदान रहा।