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ब्रिटेन को मंदी से बचा पाएंगे सुनक ?

ब्रिटेन के वित्त मंत्री जेरेमी हंट ने कहा है कि हमने भले ही मंदी को थोड़ा धकेल दिया हो लेकिन खतरा अभी...
ब्रिटेन को मंदी से बचा पाएंगे सुनक ?

ब्रिटेन के वित्त मंत्री जेरेमी हंट ने कहा है कि हमने भले ही मंदी को थोड़ा धकेल दिया हो लेकिन खतरा अभी टला नहीं है। उनका ये बयान ऐसे समय में आया है जब ब्रिटेन पिछले चार दशक में सबसे ज्यादा महंगाई के दौर से गुजर रहा है। महज पिछले डेढ़ साल में औसतन महंगाई 25 फीसदी से ज्यादा बढ़ गई है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवाएं यानी एनएचएस में स्टाफ की कमी की वजह से लोगों को इलाज के लिए काफी लंबा इंतजार करना पड़ रहा है और रेलवे से लेकर स्कूल तक हड़तालों का दौर जारी है। जेरेमी ने नवंबर 2022 में कहा था कि ब्रिटेन मंदी के दौर में प्रवेश कर चुका है, लेकिन अब उनके इस बयान से ये उम्मीद जगी है कि शायद आने वाले समय में ब्रिटेन की मंदी उतनी भयावह नहीं होगी जैसी की आशंका जताई जा रही थी, और जेरेमी के इस बयान के पीछे है ऑफिस फॉर नेशनल स्टैटिस्टिक्स यानी ONS के आँकड़े। इसमें बताया गया है कि पिछली तिमाही यानी अक्टूबर से दिसंबर में अर्थव्यवस्था में कोई गिरावट दर्ज नहीं की गई है जबकि उसके पहले वाले तिमाही यानी जुलाई से सितंबर के बीच 0.2 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी और मंदी तभी मानी जाएगी जब लगातार कम से कम दो तिमाही में अर्थव्यस्था में गिरावट दर्ज की जाए।

 

 

ओएऩएस के आँकड़े जारी करते ही वित्त मंत्री ने कहा कि आप ऐसा मान सकते हैं कि हम मंदी से बाल बाल बचे हैं। जाहिर है युवा प्रधानमंत्री और पूर्व वित्त मंत्री ऋषि सुनक के लिए ये काफी कठिन दौर है। कोविड के समय में ऋषि सुनक की योजनाओं ने ब्रिटेन को संकट से उबारने में काफी मदद की है लिहाजा लोगों की उम्मीदें उनसे काफी ज्यादा हैं। ऐसे में इन आंकड़ों ने सरकार को थोड़ी राहत तो जरूर दे दी है लेकिन चिंता की लकीरें बरकरार हैं। उसकी बड़ी वजह ये है कि ONS की रिपोर्ट से ये साफ हो गया है कि 2022 की आखिरी तिमाही में ब्रिटेन की अर्थव्यस्था में अगर गिरावट नहीं देखी गई है तो कोई तरक्की भी नहीं देखी गई है। इस आंकड़े को जहां सरकार अपने पक्ष में इस्तेमाल कर रही है वहीं विपक्षी लेबर पार्टी सरकार की नीतियों को अपेक्षित सुधार नहीं हो पाने के लिए जिम्मेदार मान रही है। 

 

ब्रिटेन के सबसे बड़े और केंद्रीय बैंक, बैंक ऑफ इंग्लैंड को अब भी आशंका है कि ब्रिटेन इस साल मंदी में प्रवेश करेगा, लेकिन साथ ही उसे लगता है कि यह पहले के पूर्वानुमान से छोटा और कम गंभीर होगा। बैंक ऑफ इंग्लैंड पिछले एक साल में ब्याज दरों में तीन से चार फीसदी की बढ़ोतरी कर चुका है ऐसे में ब्रिटेन के लोगों को भविष्य की मंदी का अंदेशा है और उसकी चिंताएं भी सता रही हैं लेकिन बैंक के इस बयान पर निश्चित तौर पर लोगों को थोड़ी राहत मिली होगी। उधर सरकार साल के आखिरी तिमाही में अर्थव्यस्था में गिरावट नहीं होने और उसे शून्य पर रोक पाने को अपनी उपलब्धि ही मान रही है। 

 

सरकार का मानना है कि दिसंबर महीने में रेल और पोस्टल सेवाओं की हड़ताल ने काफी कुछ बाधित किया है बावजूद इसके हम निगेटिव की ओर नहीं खिसके हैं तो निश्चित तौर पर अगली तिमाही में उसे बेहतर कर पाएँगे। जेरेमी ने ये भी बताया कि ONS ने जुलाई से सितंबर के बीच पहले 0.3 फीसदी की गिरावट की बात की थी बाद में अपनी रिपोर्ट को पूरे आंकड़ें आने के बाद दुरुस्त किया तो वो 0.2 फीसदी पर आ गया लिहाजा हो सकता है कि अभी शून्य पर दिखने वाली अर्थव्यवस्था कुछ अंकों के साथ उपर आ जाए। ONS भी इस बात से इंकार नहीं करता क्यूंकि ये करेक्शन एक सामान्य प्रक्रिया है और ऐसा संभव है। ONS की रिपोर्ट ये भी बताती है कि दिसंबर में स्कूलों में क्रिसमस की छुट्टियां शुरु होने से पहले ही बच्चों की संख्या कम देखी गई और देश में क्रिसमस का जश्न पहले की तरह नहीं देखा गया लिहाजा लोगों पर मंदी की मार तो पड़ ही रही है। 

 

इस रिपोर्ट को ठीक से समझें तो एक बात स्पष्ट होती है कि ब्रिटेन को मंदी से पूरी तरह अभी निकाल पाना उतना आसान नहीं दिखता। ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था पर तिहरी मार पड़ी है, पहले ब्रेग्जिट ने सरकार पर टैक्स के अतिरिक्त बोझ बढ़ा दिए, यूनियन से बाहर होते ही ब्रिटेन को यूरोप के दूसरे देशों से कारोबार में भी टैक्स देना पड़ रहा है जो पहले बिना टैक्स के होता था। फिर कोविड ने पूरी दुनिया समेत ब्रिटेन की रफ्तार भी रोक दी और रही सही कसर रूस-यूक्रेन युद्ध ने पूरी कर दी। 2021 की तुलना में 2022 में ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था 4% बढ़ी थी और यह उस दौरान के लिए सभी G7 देशों की सबसे बड़ी वृद्धि थी। 2021 की शुरुआत में लॉकडाउन शामिल था, कोविड का असर था तो 2022 की शुरुआत में रुस-यूक्रेन युद्ध शुरु हो चुका था। कोविड के दौरान तत्कालीन वित्त मंत्री की योजनाओं ने देश को संकट से उबारने का काम किया और लोगों का भरोसा सुनक में बढ़ा लेकिन जिस तरीके से पिछले 6 महीने में बैंक ब्याज दरें बढ़ीं हैं और महंगाई ने आम जीवन मुश्किल किया है वैसे में इन आंकड़ों पर देश की पैनी नजर लगी होती है। ब्रिटेन G7 का एकमात्र देश है जहां की अर्थव्यवस्था कोविड महामारी के पहले के स्तर तक नहीं पहुंच पाई है।

 

लिहाजा जो विपक्षी दल कोविड के दौरान सुनक का विरोध नहीं कर पा रहा था अब उनके खिलाफ मोर्चा खोल कर आर्थिक मोर्चे पर असफल साबित करने की भरसक कोशिश कर रहा है और ONS के आँकड़ों के सहारे सरकार को आने वाले दिनों के लिए चेतावनी दे रहा है। अप्रैल 2023 से गैस और बिजली के दामों में और बढ़ोतरी होने की बातें सरकार कर चुकी है, पिछले एक साल में इन दामों में पहले ही 35 से 55 फीसदी की बढोतरी हो चुकी है। जिस पर सरकार ने मार्च तक सब्सिडी की घोषणा कर रखी है। अगर समय रहते सुनक अपनी वैश्विक नीतियों के सहारे ब्रिटेन को उबारने की तरफ कदम नहीं बढ़ाएँगे तो अप्रैल से जहां आम जनता की मुश्किलें बढ़ेंगी और वहीं उनकी सरकार के लिए और कठिनाईयों का दौर शुरु होगा। ऐसे में ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि ब्रिटेन को भारत के साथ मुक्त व्यापार की दिशा में तेजी से बढ़ना ब्रिटेन के लिए फायदेमंद हो सकता है। दोनों देशों के हालात देखकर ये साफ साफ लगता है कि आर्थिक और व्यापारिक मोर्चे पर जितनी जरूरत भारत को ब्रिटेन की है उससे कई गुना ज्यादा जरूरत ब्रिटेन को भारत की है और ब्रिटेन के पहले हिन्दू प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के लिए कड़ी परीक्षा का दौर है। 

 

 

(लेखक पत्रकार हैं और इन दिनों इंग्लैंड में रहकर भारत-यूरोप संबंधों पर शोधरत हैं।) 

 

 

 

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