Advertisement

खादी: ‘फार्म टू फैशन’ की अवधारणा

बीसवीं सदी के दूसरे दशक में जब महात्मा गाँधी ने कहा था-खादी केवल वस्त्र नहीं,एक विचार है,तब यह...
खादी: ‘फार्म टू फैशन’ की अवधारणा

बीसवीं सदी के दूसरे दशक में जब महात्मा गाँधी ने कहा था-खादी केवल वस्त्र नहीं,एक विचार है,तब यह स्टार्टअप से भी आगे की बात थी। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में खादी का महत्व कौन नहीं जानता? आरम्भ में लोग चकित थे ,बिना अस्त्र-शस्त्र यह चरखा आजादी कैसे दिलवा सकता है? तब यह केवल विचार तक ही सीमित न रहा,बल्कि कार्यान्वित भी हुआ। घर-घर, गाँव-गाँव चरखा और करघा के प्रचार-प्रसार ने विदेशी मीलों को बंद करने पर मजबूर कर दिया। अंग्रेजों की आर्थिक व्यवस्था चरमराने लगी|वह देश छोड़ने पर मजबूर हुए। चरखा के स्वाबलंबन ने महिलाओं को भी आर्थिक आजादी दिलवायी। यह केवल सुनी–सुनायी बात नहीं,आँखों देखा यथार्थ है कि खादी ग्रामोद्योग द्वारा राष्ट्र ने गुलामी से और अग्रिम से अंतिम पंक्तियों तक खड़े मनुष्य ने आर्थिक आजादी पायी।

       खादी ग्रामोद्योग और चरखा संघ की स्थापना का मुख्य उद्द्येश्य था देश के सम्पूर्ण नागरिक आर्थिक स्वाबलंबन द्वारा आत्मसम्मानपूर्वक जिन्दगी जियें|भारत के प्रत्येक ग्राम और नगर में इसकी शाखाएँ थीं | अंचल विशिष्ट के ग्रामोद्योग संघ की शाखा से सभी व्यक्तियों को चरखा और रुई प्रदान करने की व्यवस्था थी|महिला हो या पुरुष ,इस उद्योग में प्रत्येक व्यक्ति की बिना भेदभाव के प्रतिभागिता थी |सूत काटकर वापस खादी ग्रामोद्योग में विक्रय उनके आर्थिक स्वाबलंबन का आधार था|सूत के बदले अन्न ,वस्त्र ,तेल,साबुन,अगरबत्ती इत्यादि भी लिए जा सकते थे |इस प्रकार खादी द्वारा जीवन जीने के सारे आवश्यक साधन सुलभ हो जाते |खादी कार्यकर्ताओं को बड़े सम्मान की दृष्टि से देखा जाता|बुनकरों के गाँव के गाँव बसे थे |आर्थिक रूप से कमजोर और बेसहारा महिलाएँ सूत काटकर जीवनयापन करतीं|बच्चों को विद्यालय में तकली और पूनी मिलती,जिससे वह सूत कातते |जन-जन तक पहुंचे इस रोजगार ने सामाजिक समरसता,सद्भाव और संस्कार की अखण्ड ज्योति जलायी|मुख्यधारा में सरकार और आमजन की सहकारिता तथा सहभागिता का इतना अच्छा उदाहरण फिर कभी नहीं दिखा |

    ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्रीजी  ने ‘राष्ट्र के लिए खादी,फैशन के लिए खादी,परिवर्तन के लिए खादी’ का नारा दिया |जिस तरह ‘मन की बात’ देश को दिशा देने एवं जन  जन से संवाद की एक नई पहल है ,वैसे ही चरखा को जन जन तक पहुँचाने की दूसरी पहल भी आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है|संस्कृति, कला ,वन,जल संरक्षण के साथ उन्होंने खादी के पुनरोत्थान की बात की है|यह योजना निर्विवाद रूप से शीघ्रातिशीघ्र लागू की जा सकती है,क्योंकि इसका पूर्व में बना –बनाया ढ़ांचा देश के पास है| खादी द्वारा कपास उत्पादन ,हथकरघा निर्माण तथा वस्त्र निर्माण द्वारा सम्पूर्ण समाज के तबकों किसान,बढ़ई इत्यादि सभी आमजन  का आर्थिक उत्थान करना गांधीजी की दूरदर्शिता थी|पूर्व में हम इसके लाभदायक परिणाम देख चुके हैं,इसलिए पुनः किसी प्रयोग की आवश्यकता नहीं|बस खादी के पुनरुद्धार की जरुरत है|

    विशिष्ट जनों  के लिए  खादी फैशन अवश्य बन गयी है,किन्तु राष्ट्र के आमजन इससे कितने लाभान्वित हो रहे हैं ?संभव है फैशन जगत ने खादी का व्यापार बढ़ाया हो,विदेशों में जाकर यह महंगी चीज बन गयी हो और राष्ट्र को वित्तीय लाभ भी हुए हों|खादी इंडिया भले ही बिक्री का रिकॉर्ड बना ले ,चरखा संग्रहालय में किसान चरखा का प्रदर्शन हो,लेकिन किसान और चरखा वाली हमारी नानी-दादी की पोटली अभी भी सूनी है| देश का वह वर्ग ,खादी जिनकी साँस थी,उसांसें ले रहा है|हाशिए का कोई नहीं होता ,सभी को उनकी क्षमता के अनुसार मुख्य धारा में बहने का अधिकार है|

      हमारी अनियंत्रित जनख्या के भरण-पोषण का स्थिर आधार हो सकती है खादी |ग्रामीण स्वरोजगार,राष्ट्र एकता  और आत्मनिर्भरता के लिए पुनः खादी को पुनर्जीवित करना चाहिए|इसे डिज़ाइनर से अधिक दैनंदिन वस्त्र के योग्य बनाना इसकी प्राथमिकता होनी चाहिए|खादी पारंपरिक और ऐतिहासिक रूप से हमारे सामाजिक उपयोगिता की वस्तु रही है,जो अपने मूल स्वरूप से अलग हो गयी है|गांधीजी के अनुसार सवतंत्रता आन्दोलन प्रत्येक व्यक्ति की सामाजिक,सांस्कृतिक और आर्थिक आजादी से जुड़ा है...जिसकी आजीविका  हाथ से कते सूत और बुने वस्त्रों से चलती है...जिसे अंग्रेजी व्यवस्था ने बेदखल कर दिया है|’ आत्मनिर्भर भारत के लिए महात्मा गाँधी के सोच को पुनः वापस लाना होगा |

       देश को फटे फैशन से अधिक खादी के मोटे-खुरदुरेपन की आवश्यकता है|पकिस्तान में आटे के लिए मारामारी की करुण और भयावह  ख़बरें देख अपना देश आश्वस्त करता है|अंतिम सांस तक फसलों की पैदावार करते किसान हमे कभी भूखों मरने की नौबत नहीं आने देंगे|अधिकतर समस्या कैश क्रौप की है,जहां व्यापारिक फसलें उगायी जाती हैं मसलन ,कपास ,अंगूर,मिर्च ,जूट ,तम्बाकू आदि नगदी हानि के कारण आत्महत्या होती है|खादी के पुनरुत्थान के द्वारा इस समस्या से भी बहुत हद तक छुटकारा पाया जा सकता है|जन जन अन्न और वस्त्र निर्माता हों ,तो रामराज्य जैसे स्वराज की कल्पना की जा सकती है |

     अगर श्रम न हों,तो न उद्योग बच सकते हैं न कृषि|हम इतना तो कर सकते हैं कि मानव के परिश्रम को एक सही दिशा देकर ,संपूर्ण समाज को सवारें|राष्ट्र का  सम्पूर्ण विकास इसके बिना संभव नहीं|श्रम का सदुपयोग करने के लिए खादी ग्रामोद्योग की पुनर्स्थापना ,लघु ही सही अति आवश्यक है|उत्पादन,क्रय,-विक्रय की ईमानदार सुविधाजनक व्यवस्था ,संगठित खादी उद्योग के लिए किसी कॉर्पोरेट की जरूरत नहीं |बाजार कभी भी श्रमिकों का भाग्यविधाता नहीं बन सकता|आम जनता किसान,महिलाएँ ,अल्प शिक्षित इससे अधिक लाभ उठा सकते हैं|खादी ग्रामोद्योग देशहित के साथ दुनिया हित  का रास्ता भी दिखा सकता है|हमारे पास जो संसाधन हैं,जो थे हम क्यों भूल रहे है?स्टार्टअप के ,हमारे पुरखे सोने चांदी के रूप में अपनी बचत करते थे,अब फिर से वही स्थिति है| पुरानी कहावत है-सोना संपत्ति का श्रृंगार,विपत्ति का आहार|दुनिया के केन्द्रीय बैंक ,रिज़र्व बैंक सोना खरीद रहे हैं |अमेरिका और यूरोप में मंदी की आशंका है | जो बाइडन के अनुसार –“..अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद में छोटे करोबारियों का योगदान 40 फीसदी है |निजी क्षेत्र के सभी स्तरों पर लगभग आधे रोजगार लघु उद्योग ही पैदा करते हैं|...इन लघु उद्यमियों की अजेय भावना का जश्न मनाएँ|”

    खादी  ग्रामोद्योग का ह्रास प्रबंधन की अकुशलता ,अकर्मण्यता ,उपेक्षा और अव्यवस्था के कारण हुआ| आर्थिक सलाहकारों को इस पर तत्काल ध्यान देना चाहिए| इस दिशा में ‘उत्तराखंड कॉपरेटिव रेशम फेडरेशन’के द्वारा सेलाकुई में की गयी एक बड़ी पहल अनुकरणीय है|यहाँ  कोकून से बेहतर गुणवत्ता वाले कच्चे रेशम और रेशमी वस्त्र निर्माण के लिए पूरा दुरुस्त व्यवस्था की गयी है|निर्माण ,क्रय,विक्रय स्थानीय लोगों को प्रशिक्षण और रोजगार की सुव्यवस्था के साथ महिलाओं का आर्थिक स्वाबलंबन इसकी खास विशेषता है|सिल्क के अवशेष से तैयार उपयोगी धागे से आठ लाख की अतिरिक्त आय होती है | खादी ग्रामोद्योग का पुनरुद्धार भी इस तर्ज पर किया जा सकता है | ये ‘फार्म टू फैशन’ की अवधारणा पर कार्य कर रहे हैं|इसके पीछे मुख्य उद्द्येश्य रेशम कीट पालकों को पूर्णतः व्यावसायिक दृष्टिकोण से उनकी आय वृद्धि के साथ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उत्तराखंड रेशम को पहचान देना है| उत्तराखंड के सभी विश्वविद्यालयके लिए  अपने दीक्षांत समारोह में पहने जानेवाले परिधान दून  सिल्क से ही तैयार किए जाएँगे |आईएएस प्रशिक्षुओं ने इस वस्त्र में रूचि दिखायी है|

     खादी ग्रामोद्योग आयोग का उद्द्येश्य तभी सफल हो सकता है जब यह पुनः अपने पुराने स्वरूप में आमजन का उत्थान करे|सारी प्राचीन  व्यवस्थाएं अनुपयोगी नहीं होतीं|नवीन के साथ तालमेल के लिए प्राचीन आवश्यक हो जाता है|नित्य तीव्र गति से बदलते इस समय को कभी रुककर देखना चाहिए |वह प्राचीन लाभकारी योजनाएँ  भी राष्ट्र हित में जरुरी हैं ,जो प्रगति में अवरोधक नहीं|

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad