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समावेशी हुआ वक्फ बोर्ड, एनडीए की एकजुटता से अचंभित हैं विपक्षी दल

संसद के दोनों सदनों से वक्फ संशोधन विधेयक के पास हो जाने के पश्चात् अब वक्फ बोर्ड में सुधार की राहें...
समावेशी हुआ वक्फ बोर्ड, एनडीए की एकजुटता से अचंभित हैं विपक्षी दल

संसद के दोनों सदनों से वक्फ संशोधन विधेयक के पास हो जाने के पश्चात् अब वक्फ बोर्ड में सुधार की राहें आसान हो गई हैं. धार्मिक विविधता मुल्क की पहचान है. लेकिन सियासी दलों की चुनावी राजनीति सुधार की प्रक्रिया को बाधित करती रही है. एनडीए में शामिल राजनीतिक दलों ने इस विधेयक के मामले में जिस तरह से एकजुटता दिखाई है उससे कांग्रेस ही नहीं बल्कि अन्य विपक्षी पार्टियां भी अचंभित हैं. 

जद(यू), टीडीपी, आरएलडी एवं लोजपा (आर) की ओर कथित सेक्यूलर पार्टियां हसरतभरी निगाहों से देख रही थीं कि ये दल अपनी चुनावी जीत के लिए मुस्लिम वोटरों की उम्मीदों पर खरे उतरेंगे. किंतु भारतीय राजनीति अब उस दौर से आगे बढ़ चुकी है जब गोधरा कांड के बाद हुई अप्रिय घटनाओं के कारण राम विलास पासवान ने अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था. तब पासवान को अपने मुस्लिम मतदाताओं की भावनाओं की फिक्र अधिक थी. हालांकि बाद के वर्षों में वे पुनः एनडीए में शामिल हुए और नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री भी बने. फिलहाल स्व पासवान के पुत्र चिराग पासवान उनकी विरासत के वारिस हैं. चिराग को मौसम वैज्ञानिक नहीं कहा जा सकता है क्योंकि वे पूर्ण रूप से मोदी सरकार की विचारधारा से सहमत प्रतीत होते हैं और उन्हें खुद को धर्मनिरपेक्ष बताने की व्यग्रता भी नहीं है. 

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू अपने फायदे के लिए सौदेबाजी करना जानते हैं और कई अवसरों पर उन्होंने अपने इस हुनर का प्रदर्शन भी किया है. इफ्तार पार्टी में नायडू टोपी पहन कर मुस्लिमों का दिल भी जीत लेते हैं. इसलिए उम्मीदें उनसे भी थीं कि आखिरी पलों में वे भाजपा का साथ छोड़ देंगे. लेकिन नायडू शायद धर्मनिरपेक्ष राजनीति की खोखली अवधारणा को समझ गए हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में प्रभाव रखने वाले जयंत चौधरी समाजवादी पार्टी के साथ कभी सहज नहीं रहे. भाजपा ने इस स्थिति का बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया. मोदी सरकार ने चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित कर जयंत को हमेशा-हमेशा के लिए अपने पाले में कर लिया है.

नीतीश कुमार की गिनती उन नेताओं में होती है जिनके साथ आने से भाजपा को बिहार में ही नहीं बल्कि अन्य हिंदी भाषी क्षेत्रों में भी व्यापक स्वीकार्यता मिली. 1990 के दशक में जब बिहार में समाजवाद का यादवीकरण हो चुका था और अन्य पिछड़ी जातियों को लालू यादव के मस्खरेपन में ही अपना भविष्य दिखता था तब जॉर्ज फर्नांडीज के नेतृत्व में नीतीश ने राज्य में राजनीति को नई दिशा दी थी. जॉर्ज भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के चहेते थे, यह स्थिति नीतीश के लिए फायदेमंद साबित हुई. हालांकि अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए वे दो बार लालू के साथ समझौता कर चुके हैं. लेकिन अब राजनीतिक सभाओं में नीतीश अपनी वफादारी की कसमें खा रहे हैं. उन्हें भरोसा है कि अति पिछड़ी जातियों, महादलितों एवं पसमांदा मुस्लिमों के उत्थान हेतु उन्होंने जो कल्याणकारी कार्य किए हैं उसके बलबूते उनकी एक विशिष्ट छवि निर्मित हुई है. वक्फ संशोधन विधेयक को समर्थन दिए जाने के बाद जद(यू) के कुछ मुस्लिम नेताओं के पार्टी छोड़ने की खबरें आई हैं. लेकिन केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह पार्टी छोड़ने वाले नेताओं के वजूद पर ही सवाल उठा रहे हैं और उन्हें अपना मानने से ही इंकार करते हैं. 

पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष सांसद संजय झा का मानना है कि मुस्लिम समुदाय में ज्यादा आबादी पसमांदा समाज की है और वे सभी नीतीश कुमार के साथ हैं. नाराजगी की खबरें तो आरएलडी से भी आ रही हैं. उम्मीद की जा सकती है कि असंतुष्ट नेता कुछ बड़ा फेरबदल नहीं कर पाएंगे.

मुस्लिम हितों की रखवाली को भारतीय राजनीति में धर्मनिरपेक्षता की कसौटी बना दी गई है. वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का उपयोग मुस्लिमों के कल्याण के लिए हो रहा है या नहीं, इस मुद्दे पर कांग्रेस सहित अन्य धर्मनिरपेक्ष दलों ने कभी सार्थक चर्चा नहीं होने दी. वक्फ की संपत्ति के कुप्रबंधन और इसके रख-रखाव में लापरवाही की शिकायतें नई नहीं हैं. वक्त के साथ परिवर्तन नहीं होने के कारण वक्फ की व्यवस्था में खामियां ढूंढी जाने लगीं. समाज के कमजोर व गरीब लोगों की भलाई के लिए दान देने की परंपरा को गलत नहीं माना जा सकता. ईश्वर की संपत्ति के रूप में मान्यता प्राप्त दान की इन संपत्तियों का व्यवस्थित लेखा-जोखा उपलब्ध नहीं होना विवादों को जन्म देता रहा. कांग्रेस वक्फ बोर्ड में सुधार को लेकर दृढ़ संकल्पित नहीं थी. सच्चर समिति की रिपोर्ट से कई तथ्य सामने आते हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार रक्षा और रेलवे के बाद तीसरा सबसे बड़ा भूमि बैंक होने के बावजूद, देश भर में लाखों एकड़ में फैली वक्फ संपत्तियों से 200 करोड़ रुपये से भी कम की मामूली आय होती है, जबकि संभावित न्यूनतम राजस्व सृजन 12,000 करोड़ रुपए प्रति वर्ष हो सकता है. 

मोदी सरकार की कोशिश है कि समाज का हित देखा जाए और वक्फ का सदुपयोग हो. नए प्रावधानों के मुताबिक अब बोर्ड में दो मुस्लिम महिलाएं एवं दो अन्य समुदाय के लोग भी होंगे. वक्फ एक्ट की धारा 40 यह कहती है कि वक्फ बोर्ड यह फैसला दे सकता है कि कोई संपत्ति वक्फ की संपत्ति है. यह अंतिम फैसला है. जब तक कि वक्फ ट्रिब्यूनल इसे संशोधित न कर दे. कमलेश जैन (वरिष्ठ अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय) के अनुसार, "संशोधन विधेयक यह कहता है कि अब यह अधिकार जिला कलेक्टर को रहेगा. किसी जमीन की लूट या गलत दावे से बचने के लिए कलेक्टर या सक्षम अधिकारी को पूरा अधिकार देना जरूरी है. संशोधन का मुख्य मकसद यह है कि वक्फ बोर्ड द्वारा कानून का गलत उपयोग जमीन लेने या जमीन कब्जा करने के लिए नहीं होना चाहिए." इस नई व्यवस्था से मुस्लिम बेचैन हैं.

कांग्रेस सांसद मो जावेद एवं एआईएमआईएम के रहनुमा सांसद असदुद्दीन ओवेसी ने इस संशोधन विधेयक को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. विरोध करने की मुहिम में विपक्षी दल के कोई भी नेता पीछे नहीं रहना चाहते हैं. आख्यान गढ़ा जा रहा है कि भाजपा ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे रही है. राजद सांसद मनोज झा सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हैं. उनका कहना है कि, "इस देश के हिंदूओं को मुसलमानों की और मुसलमानों को हिंदूओं की आदत है. सरकार यह आदत मत बदलवाए." पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का मानना है कि, "वक्फ संशोधन विधेयक समाज को स्थायी ध्रुवीकरण की स्थिति में बनाए रखने की रणनीति का हिस्सा है." जबकि केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू इन आरोपों का खंडन करते हैं. उन्होंने संसद के दोनों सदनों में सरकार का पक्ष प्रस्तुत करते हुए कहा कि, "इस्लाम के सभी वर्गों को वक्फ बोर्ड में स्थान दिया जाएगा. इसके पीछे सरकार की मंशा विधेयक को समावेशी बनाना है."

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