पिछले तीन-चार वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस ने बहुत कुछ देखा। दुनिया के सबसे पुराने महानगरों में शुमार काशी को क्योटो बनाने जैसी तमाम बातें हुईं। वीवीआईपी क्षेत्र का रुतबा, मिनी पीएमओ जैसी व्यवस्थाएं और अक्सर पीएम मोदी के दौरे किसी शहर का हुलिया बदलने के लिए काफी होते हैं। फिर भी बहुत कुछ ऐसा है जो वहां सड़ रहा है। गुड गवर्नेंस के दावों के बीच लचर कानून-व्यवस्था है, जिसने लड़कियों का घरों से, हॉस्टलों से निकलना दूभर कर दिया है। इसकी एक बानगी यहां देखिए
यह बनारस का वो चेहरा है, जिससे लगातार मुंह मोड़ा जाता रहा। 'बेटी बचाओ' के नारे लगते रहे और उनका छेड़खानी से बचना भी मुश्किल होता गया। इस बीच, कथित गुंडाराज से मुक्ति के बाद 'केंद्र में मोदी और यूपी में योगी' का दिव्य कॉम्बिनेशन भी बन गया। उम्मीद थी अब कुछ बदलेगा। बनारस क्योटो बने, न बने। गंगा साफ हो, न हो। मगर कुछ न कुछ तो होगा।
हुआ क्या? छेड़खानी और यौन उत्पीड़न के डर से लड़कियों को देर शाम हॉस्टलों से बाहर न निकलने की नसीहतें दी जाने लगीं। मानो लड़कियों को कैद करना ही उन्हें सुरक्षित रखने का एकमात्र उपाय हो। फिर भी ये पिंजड़े तो टूटने ही हैं। सुरक्षित माहौल का संघर्ष आजादी की लड़ाई में तब्दील हो गया। दो दिन से सैकड़ों की तादाद में छात्राएं बीएचयू गेट पर आ डटी। और रात भर डटी रहीं। हिम्मत और एकजुटता की नई मिसाल पेश कर गईं। बड़े-बड़ों को रास्ते बदलने पर मजबूर कर दिया। बनारस ने आज तक कितने रोड शो देखे, कितने ही विरोध-प्रदर्शनों का गवाह रहा, लेकिन बीएचयू की छात्राओं का चक्का जाम अनूठा है। समूची राजनैतिक और सामाजिक व्यवस्था पर सवाल उठा रहा है। बेटी के सम्मान के वादों का हिसाब मांग रहा है।
#BHU तुम संघर्ष करो!!हम तुम्हारे साथ हैं! #NoMoreMoralPoliceing#NoMoreVictimBlaming#सुरक्षा_के_नाम_पर_कैदखाना_नहीं_चलेगा !! pic.twitter.com/QuXLYVXO8n
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) September 22, 2017
इस प्रकरण ने उस सच को नंगा कर दिया है, जो देश के तमाम छोटे-बड़े शहरों, कस्बों, गांव, गली-मुहल्लों में पूरी बेशर्मी से पनपा है। "संस्कृति बचाओ", "बेटी बचाओ" के नारों के बीच कुछ शोहदे लड़कियों के हॉस्टल को अपनी यौन कुंठाओं के प्रदर्शन का मैदान समझ कभी पत्थर उछालते हैं तो कभी भद्दे इशारे करते हैं। बरसों से ऐसा ही होता आया है। लेकिन यह न्यू इंडिया है। सरस्वती को दुर्गा बनने में देर नहीं लगती। ये बेटियां मुंहतोड़ जवाब देना भी जानती हैं और सड़कों पर उतरना भी।
BHU girls still on road in protest ag rampant sexual harassment in the campus. Their MP Modi is in Varanasi but ignored their plight pic.twitter.com/Gx5vXcyiBD
— Kanchan Srivastava (@Ms_Aflatoon) September 22, 2017
कल उन्होंने पीएम के काफिले को रास्ता बदलने के लिए मजबूर कर दिया। कल को अपने लिए नए रास्ते खोल भी लेंगी। शाम के बाद हॉस्टल से निकलती ही क्यों हो? दरवाजे-खिड़कियां बंद क्यों नहीं रखती? हॉस्टल से बाहर करने क्या जाती हो? इन बातों से इन्हें कैद नहीं किया जा सकता। अब वो सवाल करेंगी, जवाब मांगेगी, रास्ते रोकेंगी और चीजों को बदलकर रहेंगी। देते रहिए संस्कार और संस्कृति की दुहाई, मढ़ते रहिए राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप।
छेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न की घटनाओं को जिस तरह बीएचयू प्रशासन ने उल्टे लड़कियों पर ही पाबंदियां लगाकर हल करना चाहा, वह इस तरह के मामलों में दकियानूसी सोच को ही दर्शाता है। किसी गांव-देहात में भी इस तरह की घटनाओं का मतलब है लड़कियों बाहर आने-जाने पर पाबंदी। ताज्जुब है बीएचयू में भी यही होता है। फिर फर्क क्या रहा? फिर भी फर्क ये है कि अब ये पिंजड़े टूटने लगे हैं!
If you can not ensure freedom& security to women students in yr constituency,V can't trust U to run d country.
— Arfa Khanum Sherwani (@khanumarfa) September 23, 2017
Women's rights R human rights pic.twitter.com/crV8lVhanY