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घुटन का प्रस्फुटन है भीम आर्मी का उभार

सदियों के दमन से उपजी घुटन और अत्याचारों का मुकाबला करने के लिए दलितों के भीतर प्रतिकार की बलवती होती भावना का परिणाम ही ‘भीम आर्मी’ जैसे संगठन हैं।
घुटन का प्रस्फुटन है भीम आर्मी का उभार

पश्चिमी यूपी में दलित युवाओं के आक्रोशित समूह ‘भीम आर्मी’ के उभार को लेकर प्रशासन और समुदाय दोनों सकते में है। सहारनपुर में हाल ही में हुई हिंसा में भीम आर्मी के हाथ होने की बात पुलिस के आला अधिकारी कह रहे हैं। वहीँ ‘भीम आर्मी’ के पदाधिकारियों ने किसी भी हिंसक कार्यवाही में हाथ होने से साफ इंकार किया है। खैर सच्चाई तो जांच के बाद ही सामने आयेगी।

वैसे भीम आर्मी इतना भी खूंखार या रहस्यमय संगठन नहीं है, जैसा सत्ता और मीडिया प्रतिष्ठान उसे बनाने पर तुले हुए है। भीम आर्मी को लेकर काफी सामग्री सोशल मीडिया पर उपलब्ध है। जिसमें उसके कर्ताधर्ता नवजवान चंद्रशेखर रावण, सतीश कुमार, अंकित, अक्षय, रोहित राज और ममता के भाषण और इंटरव्यू मौजूद है। भीम आर्मी अपने सारे सार्वजनिक रूप से करती आई है। उनका दावा है कि भीम आर्मी दलित समुदाय के लोगों में आत्मरक्षा और स्वाभिमान का भाव जगाने के लिए कार्यरत है। कई गांव की दलित बस्तियों में भीम आर्मी के लोग, उनके बोर्ड और पोस्टर सहजता से उपलब्ध है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि दलित युवाओं के मध्य भीम आर्मी की जबरदस्त विश्वसनीयता और लोकप्रियता देखी जा सकती है।

क्यों पनपते हैं भीम आर्मी जैसे संगठन?

इसका जवाब कथित उच्च जाति वर्णों द्वारा किए जाने वाले दमन और शोषण में छिपा है। आज तकरीबन हर सवर्ण जाति केे नाम पर तरह-तरह की सेनाएं, संगठन हैं, जो अपनी जातीय गौरव के नाम पर कानून और व्यवस्था को जब चाहे तक पर रख देते हैं। जातिवादी सेनाओं का यह दौर बिहार में रणवीर सेना के दौर में चरम पर रहा। बीच का कुछ वक्त गुजरा जब इस प्रकार की सेनाओं की धमक कुछ कम सुनाई दी, लेकिन अब देश भर में तरह तरह की सेनाएं पूरे जोश हैं। कई बार इनके अन्याय और अत्याचार के सामने पुलिस व प्रशासन भी मौन रहता है।

इन संविधानेत्तर सेनाओं को इतना शक्तिशाली कर दिया गया है कि वे अब हर चीज़ को नियंत्रित करने लगी है। खासतौर पर मंडल कमीशन के लागू होने और राजनीतिक हिंदुत्व के उभार के बाद कई जातिसूचक सेनाएं अस्तित्व में आईं। अधिकांश जातिसूचक सेनाओं में दलितों के प्रति घृणा का जो भाव कूट-कूटकर भरा है वह आरक्षण विरोध के नाम पर पूरी ताकत से सामने आता रहा है। इन सेनाओं ने राष्ट्रीय प्रतीकों, महापुरुषों का भी जातिकरण करने का काम किया और उन्हें अपनी अपनी जाति की जागीर में बदल दिया है। शिवाजी महाराज हो या महाराणा प्रताप, इन्होंने किसी को नहीं छोड़ा। 

दमन का प्रस्फुटन है भीम आर्मी

गैर दलित जातियों की जाति सेनाओं की वजह से दलितों को शिक्षण संस्थानों से लेकर आजीविका के स्थानों और राजनीतिक अवसरों तक हर तरफ दमन का सामना करना पड़ रहा है। अनुसूचित जाति जन जाति अत्याचार निवारण अधिनियम का भी विरोध करना इन सवर्ण जातिवादी सेनाओं का प्रमुख काम रहा है। खुलेआम हिंसा के जरिये दलितों में दहशत पैदा करने को आतुर इन जाति सेनाओं को राजनीतिक प्रश्रय भी मिलता रहा है। नतीजा यह हुआ कि इन सेनाओं से पीड़ित दलितों में आक्रोश बढ़ता गया। इस दमन और घुटन का प्रस्फुटन भीम आर्मी जैसे संगठनों के उभार की असली वजह है। 

दलितों ने हमेशा संंविधान को माना 

अब नवजवान दलित पीढ़ी में शिक्षा आई है और सामर्थ्य भी। उन्होंने संविधान को समझा, कानून और व्यवस्था का आदर किया तथा संविधान के दायरे में रह कर न्याय के लिए संघर्ष किया है। देश की 70 साल की आज़ादी के इतिहास में एक भी स्थान पर दलितों के संगठित सशस्त्र संघर्ष का कोई उदहारण नहीं मिलता है। दलितों ने सदैव संविधान को माना और आज भी वे पूरी तरह से संविधान के दायरे में ही अपने संगठन निर्माण और जन जागरण का काम करते दिखाई पड़ते है।

जहां तक भीम आर्मी का सवाल है, वह भी संविधान की हदों में रहकर ही कार्यरत है। लेकिन जहां दलितों के साथ गंभीर हिंसा की घटनाएं हुई हैं, वहां प्रतिरोध में आवाज उठाने का काम भी भीम आर्मी ने किया है। इसके अलावा कोई रास्ता भी उनके पास नहीं था।

सहारनपुर की सच्चाई 

हाल ही में जो घटनाक्रम सहारनपुर जिले में हुआ है, उसमें पहले अम्बेडकर जयंती के नाम पर सत्तारूढ़ दल के लोगों द्वारा दलितों और मुसलमानों को भिड़ाने की कोशिश की गई। इसमें सफलता नहीं मिली तो दलित बस्ती पर हमले किये गये, रविदास का मंदिर तोडा गया, अम्बेडकर की प्रतिमा खंडित की गई, दलितों के घर जलाये गये, दलित महिलाओं के हाथ काटे गये। जमकर हिंसा का तांडव शब्बीरपुर में किया गया। इस वारदात के घटित होने के चार दिन बाद भी कोई कार्यवाही नहीं की गई तो आक्रोशित दलित समुदाय ने भीम आर्मी के बैनर तले महापंचायत की इजाजत मांगी जो नहीं दी गई। महापंचायत में शिरकत करने जा रहे युवाओं को भड़काने के लिए उन पर जगह-जगह लाठी चार्ज किया गया। अंततः आक्रोशित भीड़ ने कानून व्यवस्था को हाथ में ले लिया। अब शासन, प्रशासन और मीडिया सब तरफ से आवाज उठ रही है कि भीम आर्मी पर प्रतिबन्ध लगाओ, क्योंकि वह हिंसक है। उसके नेताओं पर रासुका लगाओ, क्योंकि वे राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा बन चुके है।

मगर सवाल यह है कि जब तक दलित मार खाता रहे, तब तक वह राष्ट्र की सुरक्षा के लिए कोई खतरा नहीं है। जब तक सवर्ण सेनाओं की मनमानी दलित सहे, तब तक वह भला है लेकिन जैसे ही वह जवाब देने लगे तो खतरा बन जाता है। यह दोगलापन है, यह पाखंड है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

जब से सहारनपुर हिंसा के लिए सिर्फ भीम आर्मी को गुनहगार ठहराने की कोशिशें चली हैं, दलितों के दिल में भीम आर्मी के प्रति जबर्दस्त सहानुभूति और समर्थन की लहर उठ खड़ी हुई है। दलित राजनेता और बुद्धिजीवी भले ही भीम आर्मी की आलोचना करते दिख रहे हो मगर जो लोग शासन में है वो भीम आर्मी को मिल रहे जन समर्थन से अनजान नहीं होंगे। 

 (लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं दलित चिंंतक हैं )

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